मुंबई, 18 फरवरी (वार्ता) पंकज मल्लिक को एक ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने अभिनय, पार्श्वगायन और संगीत निर्देशन से बंगला फिल्मों के साथ ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। पंकज मल्लिक का जन्म 10 मई 1905 को कोलकाता में एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता मनमोहन मल्लिक की संगीत में गहरी रूचि थी और वह अक्सर धार्मिक कार्यक्रमों में अपना संगीत पेश किया करते थे। पंकज मल्लिक ने शिक्षा कोलकाता के मशहूर स्काटिश चर्च कॉलेज से पूरी की। घर में संगीत का माहौल रहने के कारण पंकज मल्लिक का रूझान भी संगीत की ओर हो गया और वह संगीतकार बनने का सपना देखने लगे। पिता ने संगीत के प्रति बढ़ते रूझान को पहचान लिया और उन्हें इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने दुर्गा दास बंद्योपाध्याय और रवीन्द्र नाथ टैगोर के रिश्तेदार धीरेन्द्र नाथ टैगोर से संगीत की शिक्षा ली। वर्ष 1926 में महज 18 वर्ष की उम्र में कोलकाता की मशहूर कंपनी ‘वीडियोफोन’ के लिये रवीन्द्र नाथ टैगोर के गीत ‘नीमचे आज प्रथोम बदल’ के लिये पंकज मल्लिक को संगीत देने का अवसर मिला। बाद में उन्होंने टैगोर के कई गीतों के लिये संगीत निर्देशन किया। पंकज मल्लिक ने अपने कैरियर की शुरूआत कोलकाता के इंडियन ब्राॅडकास्टिंग कंपनी से की। बाद में वह कई वर्षो तक ऑल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे।
वर्ष 1933 में पंकज मल्लिक ‘न्यू थियेटर’ से जुड़ गये जहां उन्हें फिल्म ‘यहूदी की लड़की’ में संगीत निर्देशन का मौका मिला। न्यू थियेटर में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध संगीतकार आर. सी. बोराल से हुई जिनके साथ उन्होंने धूप छांव, प्रेसिडेंट, मंजिल और करोड़पति जैसी कई सफल फिल्मों में बेमिसाल संगीत दिया। वर्ष 1936 में प्रदर्शित फिल्म ‘देवदास’ बतौर संगीत निर्देशक पंकज मल्लिक के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। शरतचंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में कुंदन लाल सहगल ने मुख्य भूमिका निभाई थी। पी. सी. बरूआ के निर्देशन में बनी इस फिल्म में भी पंकज मल्लिक को एक बार फिर से आर. सी. बोराल के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म और संगीत की सफलता के साथ ही पंकज मल्लिक बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गये। सहगल उनके प्रिय अभिनेता और पार्श्वगायक हो गये। बाद में पंकज मल्लिक ने कई फिल्मों में सहगल के गाये गीतों के लिये संगीत निर्देशन किया। पंकज मल्लिक ने संगीत निर्देशन और पार्श्वगायन के अलावा कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया। इनमें मुक्ति, अधिकार, अलोछाया, डॉक्टर और नर्तकी जैसी फिल्में प्रमुख है। इन सबके साथ ही पंकज मल्लिक ने कई किताबें भी लिखी। इनमें गीत वाल्मीकि, स्वर लिपिका, गीत मंजरी और महिषासुर मर्दनी शामिल है।
पंकज मल्लिक ने टैगोर रचित कई कविताओं के लिये भी संगीत दिया। पंकज मल्लिक के गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर से जुड़ने का वाकया दिलचस्प है। एक बार पंकज मल्लिक को कॉलेज के किसी कार्यक्रम में टैगोर की एक कविता पर संगीत निर्देशन करना था। जब पंकज मल्लिक टैगोर से इस बारे में बातचीत करने पहुंचे तो उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा। बाद में टैगोर ने अपनी एक कविता ‘दिनेर शेषे घूमर देशे’ पंकज मल्लिक को सुनाई और उस पर संगीत बनाने को कहा। पंकज मल्लिक ने तुंरत उस कविता पर संगीत बनाकर टैगोर को सुनाया जिसे सुनकर टैगोर काफी प्रभावित हुये और अपनी कविता पर पंकज मल्लिक को कॉलेज में संगीत देने के लिये राजी हो गये । संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये पंकज मल्लिक वर्ष 1970 में भारत सरकार की ओर से पदमश्री से सम्मानित किये गये। वर्ष 1972 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा फाल्के पुरस्कार से भी पंकज मल्लिक को सम्मानित किया गया। अपने जादुई संगीत निर्देशन से श्रोताओं के बीच खास पहचान बनाने वाले यह महान संगीतकार 19 फरवरी 1978 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।