नयी दिल्ली 21 मई (वार्ता) चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने भारत एवं चीन के बीच सभ्यतागत संबंधों को मज़बूत बनाने पर बल देते हुए मंगलवार को कहा कि दोनों देशों की सबसे पुरानी जीवंत सभ्यता के बीच आध्यात्मिक एवं भौतिक संपर्क के उतने ही पुराने बीज मौजूद हैं और उनके बीच संवाद एवं आदान प्रदान बढ़ने से समूची मानव जाति को लाभ होगा।
चीन के दूतावास में यहां ‘भारत-चीन संबंध : सभ्यता के दृष्टिकोण’ विषय पर एक परिचर्चा में भाग लेते हुए श्री लुओ झाअोहुई ने ये विचार व्यक्त किये।
परिचर्चा में भारत सांस्कृतिक संबंध परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रो. लोकेश चंद्र, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के पूर्व अध्यक्ष सुधीन्द्र कुलकर्णी, वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी एवं मनीष चंद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीन विभाग के अध्यक्ष प्रो. बी आर दीपक तथा राष्ट्रीय संग्रहालय के डॉ. बिनय सहाय ने भाग लिया। चीनी दूतावास में मिनिस्टर एवं डिप्टी चीफ ऑफ मिशन जी बिजियान, सीनियर काउंसलर झू शिआओहोंग, प्रेस काउंसलर जी रोंग और प्रेस निदेशक यिलियांग सुन भी उपस्थित थे।
चीनी राजदूत ने कहा कि सभ्यताओं के दो पहलू होते हैं - आध्यात्मिक एवं भौतिक। उन्होंने कहा कि सभ्यताओं विशेष रूप से भारतीय सभ्यता के प्रति दिलचस्पी एवं प्रेम ही उन्हें चीन की विदेश सेवा में लेकर आया है। गंगा की सभ्यता से लेकर सिंधु घाटी की हड़प्पा मोहनजोदड़ो की सभ्यता से उन्हें आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि भारत एवं चीन के बीच 3000 साल से अधिक सभ्यतागत आदान-प्रदान बहुत हुआ और बहुत सारी साझा भी बहुत चीज़ें हुईं। उन्होंने कहा कि हमें आगे बढ़ने के लिए इतिहास से सीख लेनी चाहिए। इसी विचार के कारण वुहान शिखर बैठक का आयोजन किया गया।
श्री लुओ झाओहुई ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा द्वितीय एशियाई सभ्यता संवाद के आयोजन को इसी विचार का परिणाम बताया। उन्होंने वैश्वीकरण एवं व्यापार को भी इसी सभ्यतागत संपर्क का अंग बताया और कहा कि समकालीन संबंधों में एेसे उतार चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि अाज वैश्वीकरण एवं व्यापारिक उतार चढ़ाव को सभ्यताओं का संघर्ष कहा जा रहा है। उन्होंने इससे निपटने के लिए भारत एवं चीन के बीच सभ्यतागत संबंधों के इतिहास को उजागर करने पर बल दिया तथा दोनों देशों के बीच लंबित मसलों को सहयोग के इतिहास में बहुत तुच्छ एवं क्षुद्र करार दिया।
भारतीय ललित कला के शोधार्थी रहे चीनी राजदूत भारत में दो वर्ष अाठ माह के कार्यकाल के बाद विदेश उप मंत्री के रूप में बीजिंग लौट रहे हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में दोनों देशों के बीच सभ्यतागत संपर्कों को बढ़ावा देने के प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों के मजबूत होने का समूची मानव जाति को लाभ होगा। उन्होंने सिक्किम में नाथू ला दर्रे से होकर हाेने वाले व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा उदासीनता बरते जाने पर निराशा व्यक्त की। उन्होंने व्यापार को 30 वस्तुओं से आगे अन्य वस्तुओं को भी शामिल करने, सीमावर्ती क्षेत्र में संचार नेटवर्क दुरुस्त करने की भी अपेक्षा जतायी। उन्होंने कैलास मानसरोवर के यात्रियों के लिए नाथू ला से पार चीन के तिब्बत क्षेत्र में यादोंग में शानदार इंतजाम करने का उदाहरण दिया।
सचिन.श्रवण
जारी.वार्ता