नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (वार्ता)सुलभ स्वच्छता मिशन फाउंडेशन की ओर से मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) को लेकर सोमवार को जारी रिपोर्ट में बताया गया कि देश में मासिक धर्म को लेकर बहुत बात नहीं की जाती है इस मसले पर अधिकतर चुप्पी रहती है, जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधित जटिलताएं उत्पन्न हो रही हैं।
“ रजोदर्शन से रजोनिवृत्ति तक चुप्पी का मुकाबला” शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट हाशिए पर, दूरदराज और कमजोर आबादी पर केंद्रित है और मासिक धर्म स्वच्छता और स्वास्थ्य संसाधनों तक समान पहुंच के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें करती है।
रिपोर्ट सामुदायिक मान्यताओं और वर्जनाओं को दर्शाती है और मौजूदा एमएचएम प्रथाओं, अंतरक्षेत्रीय सहसंबंधों, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक नीति के साथ महिलाओं की भागीदारी पर डेटा प्रदान करती है।
फाउंडेशन की ओर से किए गए अध्ययन में मासिक धर्म के लिए एक जीवनचक्र दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया गया है और इसमें किशोर अवस्था से आगे यानी 24-49 वर्ष के बीच की महिलाओं और उम्रदराज़ मासिक धर्म वाली महिलाओं (ईएएमडब्ल्यू) की राय ली गयी है।
रिपोर्ट जारी करने के बाद सभा को संबोधित करते हुए सुलभ इंटरनेशनल के अध्यक्ष कुमार दिलीप ने कहा, “ यह शोध एमएचएम में चुनौतियों को लेकर एक महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करता है। इसका देश में विशेष रूप से बुजुर्ग और उम्रदराज़ मासिक धर्म वाली महिलाओं के साथ-साथ सुदूर, पिछड़े और गरीब इलाके की किशोरियों को अधिक सामना करना पड़ता है।”
उन्होंने कहा, “ मैं आशावादी हूं कि यह अध्ययन नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और एमएचएम में काम करने वालों को नई नीतियों और कार्यक्रमों को अपनाने के लिए मार्गदर्शन करेगा, जो भारत में महिलाओं और लड़कियों की भलाई के लिए इस महत्वपूर्ण आवश्यकता को संबोधित करेंगे।”
इस अध्ययन को करने वाली टीम का नेतृत्व करने वाली नीरजा भटनागर ने कहा, “ रजोदर्शन ने रजोनवृति तक का सफर एक महिला के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। फिर भी मासिक धर्म को लेकर बहुत अधिक लांछन और चुप्पी है, जिसके कारण बड़ी स्वास्थ्य जटिलताएँ पैदा होती हैं। एमएचएम पैड वितरित करने के बारे में नहीं है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हानिकारक सांस्कृतिक प्रथाओं, महिलाओं की आवाज और स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छता और धुलाई सुविधाओं तक उनकी सुरक्षित पहुंच को संबोधित करने के बारे में है।'
उन्होंने कहा, “ सुलभ पांच दशकों से अधिक समय से पानी, स्वच्छता और सफाई (डब्ल्यूएएसएच) के मुद्दे पर सबसे आगे रहा है और इस शोध के माध्यम से यह एमएचएम रोडमैप को लेकर एक मजबूत बनाने में हितधारकों के साथ जुड़ना चाहता है, जिसे हम पूरे देश में लागू कर सकते हैं।”
आधिकारिक बयान के अनुसार यह अध्ययन भारत के सात राज्यों असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु के 14 जिलों (11 जिलों आकांक्षी) में किया गया हैं।
इसमें कहा गया है कि शोध में देश के दूरदराज के इलाकों में विभिन्न जातियों को कवर करने वाले 22 प्रखंडों और 84 गांवों की 4839 महिलाओं और युवतियों को शामिल किया गया है।
बयान में कहा गया “ रिपोर्ट के निष्कर्षों से भारत सरकार की मासिक धर्म स्वच्छता नीति और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता के पूरक होने की उम्मीद है।”
संतोष, सोनिया
वार्ता