नई दिल्ली, 19 जनवरी (वार्ता) उच्चतम न्यायालय की कॉलेजियम ने केंद्र सरकार की आपत्तियों को खारिज करते हुए सार्वजनिक तौर पर खुद को समलैंगिक बताने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाने की एक बार फिर सिफारिश की है।
उच्चतम न्यायालय की ओर से गुरुवार को जारी एक बयान में यह जानकारी दी गई।
बयान के मुताबिक, 17 जनवरी को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम की बैठक में कॉलेजियम ने अपने 11 नवंबर 2021 की सिफारिश को दोहराते हुए 50 वर्षीय श्री कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायाधीश का न्यायाधीश बनाने की केंद्र सरकार से पुनः सिफारिश की है।
श्री कृपाल संविधान पीठ के समक्ष बहस करने वाले उन अधिवक्ताओं में शामिल थे, जिसने नवतेज सिंह जोहोर के मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
कोलेजियम ने उनके यौन रुझान और स्विस 'पार्टनर' के बारे में केंद्र सरकार की आपत्तियों को खारिज कर दिया।
श्री कृपाल ने अपने यौन रुझान और स्विस 'पार्टनर' के बारे में खुद जानकारी दी थी।
कॉलेजियम ने श्री कृपाल के समलैंगिक होने के संबंध में कहा कि उम्मीदवार को यह सलाह दी जा सकती है कि वह उन कारणों के संबंध में प्रेस से बात न करें, जो आयोग की सिफारिशों में अहम हो सकते हैं। हालांकि, इस पहलू को एक नकारात्मक विशेषता के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, खासकर जब से नाम पांच साल से अधिक समय से लंबित है।
कॉलेजियम ने कहा, “संवैधानिक पदों के वर्तमान और इससे पहले उच्च पदों पर कई व्यक्तियों के पति-पत्नी विदेशी नागरिक हैं और रहे हैं। इसलिए सिद्धांत के तौर पर श्री कृपाल की उम्मीदवारी पर इस आधार पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती है कि उनका साथी एक विदेशी नागरिक है।”
श्री कृपाल को न्यायाधीश बनाने के लिए पहली बार 13 अक्टूबर 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने सिफारिश की थी।
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश भूपिंदर नाथ कृपाल के पुत्र सौरभ कृपाल ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद विदेश में कानून की पढ़ाई की। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की डिग्री हासिल करने के लिए छात्रवृत्ति पर वहां गए और उसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने जेनेवा में थोड़े समय के लिए संयुक्त राष्ट्र में काम किया और वहां से 1990 के दशक में भारत लौट आए। दो दशकों से अधिक समय तक शीर्ष अदालत में बड़े पैमाने वकालत की।
उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के सहयोगी के रूप में भी काम किया।
बीरेंद्र सैनी
वार्ता