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सरकारी उपेक्षा के चलते बदहाल हुआ झांसी के मऊरानीपुर का टेरीकॉट उद्योग

सरकारी उपेक्षा के चलते बदहाल हुआ झांसी के मऊरानीपुर का टेरीकॉट उद्योग

झांसी 07 जनवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश में झांसी के मऊरानीपुर में कभी प्रसिद्ध कपडा बनाया जाता था जो “ रानीपुर टेरीकॉट ” के नाम से पूरे देश में विख्यात था। मऊरानीपुर तहसील का यह नगर यहां बनाये जाने वाले उच्च कोटि के कपड़े की वजह से “ मिनी मुम्बई ” के नाम से जाना जाता था ।

मऊरानीपुर तहसील के रानीपुर कस्बे में 1890 से शुरू हुआ यह उद्योग आज पूरी तरह से बदहाल है। बड़े पैमाने पर लोगों को स्वरोजगार मुहैया कराने वाला यह उद्योग पूरी तरह से किस तरह बरबाद हुआ इसका आकलन भी बेहद जरूरी है। इस इलाके में कपड़े के काम की शुरूआत 1890 के करीब हुई थी, उस समय जनता साड़ी, जेजम, खेस, कासमी आदि बनाये जाते थे।

टेरीकॉट कपड़े का व्यापार 1975 के आस पास रानीपुर में शुरू हुआ जिसमें पैंट, शर्ट, सूटिंग-शर्टिंग, गलीचा, पर्या, चादर और कुर्ता -पायजामा बनाया जाता था। रानीपुर में 1975 से 1995 का समय इस उद्योग का स्वर्णिम काल रहा। इस दौरान रानीपुर के घर-घर में कपड़े का काम होता था। यहां के लोगों को उनके घर पर ही काम मिल जाता था। बडे पैमाने पर लोगों की रोजी रोटी का जरिया घर-घर होने वाला हैंडलूम और पावरलूम का काम था।

                             रानीपुर टेरीकॉट का यह उद्योग 1995 के बाद कई अव्यवस्थाओं का शिकार होकर मरणासन्न हालत में आ गया। उद्योगों के लिए बिजली की अबाध आपूर्ति जीवनरेखा का काम करती है लेकिन 1995 के बाद इस इलाके में बिजली की स्थिति लगातार खराब होती चली गयी, जिसके परिणामस्वरूप घर-घर चलने वाले इस उद्योग का उत्पादन प्रभावित होने लगा। बिजली न मिलने से पावरलूम का काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ। दूसरी ओर कपड़ा बनाने वालों और खरीदारों के बीच बिचौलिये दुकानदारों की संख्या बेहद बढने के कारण बुनकरों को ज्यादा से ज्यादा दलाली देने के लिए बाध्य होना पड़ा।

एक ओर उत्पादन में कमी आयी दूसरी ओर दलाली का प्रतिशत बढ़ा, ऐसे में प्रशासन की ओर से बुनकरों के लिये अपने सामान के क्रय-विक्रय के लिए अच्छे केंद्रों की स्थापना भी नहीं की गयी। इन सभी कारणों ने मिलकर इस काम में लगे लोगों को लगातार निरूत्साहित कर दिया।

हालांकि सरकार ने बीच में इन बुनकरों की मदद के लिए समितियों का गठन किया। इन्हें लाखों रूपयों की मदद भी दी गयी लेकिन इस समितियों में भी भ्रष्टाचार के चलते इनके माध्यम से मात्र कुछ लोगों को ही लाभ मिल सका।

इन सभी कारणों के चलते ‘रानीपुर टेरीकॉट’ के नाम से जाने जाने वाला मऊरानीपुर देश के कपड़ा उद्योग के मानचित्र से गायब होने लगा और आज हालात यह हैं कि कभी अपने घर में ही काम धंधे में लगे बुनकरों के आगे महानगरों की ओर पलायन करने के अलावा और कोई चार नहीं रह गया। ऐसे कामगार अब शहरों में दिहाड़ी मजदूर बन अमानवीय हालातों में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं और जो बुनकर अब तक किसी न किसी तरह इसी उद्योग में बने हैं वह केवल तौलिया और चादर बनाकर किसी तरह अपना गुजर बसर चला रहे हैं।


                            कपड़े का काम बुरी तरह से प्रभावित होने के कारण कभी पावरलूम की मालकिन रही रामरती आज केवल एक मजदूर बनकर रह गयी है। रामरती ने बताया कि कपड़े का काम बंद होने के कारण उनके परिवार को मजबूरी में यहां से पलायन होने को मजबूर हुआ।

रामरती ने बताया कि पति की मौत के बाद उसे फिर वापस आकर सूत की पिंडी बनाने का काम करना पड़ा और इससे वह एक दिन में केवल चालीस रूपये ही कमा पाती है और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती है तभी परिवार का भरण पोषण किसी तरह संभव हो पाता है।

यह हालत केवल एक परिवार की नहीं बल्कि कपड़े के काम में लगे कमोबेश हर परिवार की है। इस इलाके में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पुराने दिनों की याद करते आज भी जैसे कहीं खो जाते है। उन्होंने बताया कि कभी रानीपुर की गलियां और बाजार गुलजार हुआ करते थे हालात कुछ इस तरह के थे कि गांव-गांव ठेला और साइकिल पर भी कपड़े बेचकर लोग लगभग 800 रूपये रोज कमा लेते थे। इस समय यहां की प्रति व्यक्ति आय बुंदेलखंड में सबसे अधिक होती थी लेकिन आज वही बुनकर 100 रूपये रोज भी नहीं कमा पर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि यहां बनने वाले कपड़े की गुणवत्ता बड़ी-बड़ी कम्पनियों मे बनने वाले कपड़े के बराबर ही होती थी। यहां का बना कपड़ा न केवल देश बल्कि विदेशों में भी जाना जाता था। सरकारी उपेक्षा के चलते लोगों की खुशहाली का कारण रहा यह उद्योग अब पूरी तरह से बरबाद हो चुका है। हालात यह हैं कि जिस कपड़े को देश-विदेश में पहना और इस्तेमाल किया जाता था आज उसे रानीपुर के लोग भी इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।


सभी राजनीतिक दलों के लिए भी यह बुनकर एक राजनीतिक मुद्दे से ज्यादा कुछ नहीं रहे। लगातार बरबाद होते उद्योग के लिए सभी राजनीतिक दलों ने वायदे तो हजार किये लेकिन केवल चुनाव होने तक, इसके बाद किसी को भुखमरी की कगार पर पहुंचे इन बुनकरों की ओर रूख करने का न तो समय मिला और न ही उन्हें इसकी कोई जरूरत महसूस हुई।

दो दशक से भी लंबे समय तक फले फूले इस उद्योग के बरबाद होने के दौरान प्रदेश में सभी राजनीतिक दल कभी न कभी सत्ता में आये और गये लेकिन धीरे धीरे मरणासन्न अवस्था में पहुंच रहे रानीपुर के टेरीकॉट उद्योग की दशा सुधारने की कोशिश किसी ने नहीं की।

ऐसे हालात में रानीपुर के बुनकर भुखमरी के शिकार होते जा रहे हैं लेकिन इस काम में लगे लोगों ने उम्मीद का दामन अब भी नहीं छोड़ा है । बुनकरों का अभी भी कहना है कि अगर सरकार उनकी मदद करे और इस उद्योग को दोबारा खड़ा करने की कोशिश करें तो वह अपने पुश्तैनी काम को दोबारा शुरू कर सकते हैं।


 

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