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लोकरुचि


राधारमण मंदिर में 475 वर्षों से बिना माचिस के प्रयोग से हो रही ठाकुरजी की आरती

राधारमण मंदिर में 475 वर्षों से बिना माचिस के प्रयोग से हो रही ठाकुरजी की आरती

मथुरा, 08 मई (वार्ता) उत्तर प्रदेश में राधारानी की नगरी वृन्दावन के सप्त देवालयों राधारमण मंदिर में पिछले पौने पांच सौ वर्ष से बिना माचिस के प्रयोग के ही ठाकुरजी की आरती हो रही है। इस मंदिर के मुख्य श्री विग्रह का प्राकट्योत्सव 10 मई को मनाया जाएगा। मंदिर के सेवायत आचार्य पद्मनाभ गोस्वामी ने बताया कि गोपाल भट्ट स्वामी पर ठाकुर की बहुत अधिक कृपा थी इसी वजह से ठाकुर ने प्राकट्य के लिए उन्हें ही माध्यम बनाया था। मंदिर की प्रथम आरती के लिए अग्नि वैदिक मंत्रों के माध्यम से आज से 475 वर्ष पहले प्रकट की गई थी। इसके लिए अरण्य मंथन का सहारा लिया गया था। उसके बाद ही ठाकुर ने गोपाल भट्ट स्वामी के मन में यह भाव पैदा किया कि इसी अग्नि से भविष्य में ठाकुर की आरती की जाय। यहीं कारण है कि इस मंदिर में करीब पौने पांच सौ वर्ष से माचिस का प्रयोग नही किया गया। आज भी ठाकुर की आरती पौने पांच सौ वर्ष पूर्व प्रकट अग्नि से की जाती है। इस मंदिर की दूसरी विशेषता यह है कि इस मंदिर के श्रीविगृह में मदनमोहन, गोपीनाथ एवं गोविन्ददेव के दर्शन होते हैं, ऐसा अदभुत दर्शन ब्रज के किसी मंदिर में नही मिलेगा। 


          राधा रमण मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने तीन मंदिरों के विगृह के राधारमण मंदिर में दर्शन के रहस्य का उद्घाटन करते हुए बताया कि ठाकुर हमेशा भक्त के भक्ति के वशीभूत रहते हैं। गोपाल भट्ट की अटूट भक्ति के कारण ही उन्हेांने उनकी मनोकामना पूरी हुई। उन्होंने बताया कि माता- पिता की आज्ञा पाकर जब गोपाल भट्ट वृन्दावन को रवाना हुए तेा उनके मुख से हरिनाम की ध्वनि गूंज रही थी। उनकी भक्ति ऐसी अटूट थी कि बीहड़ जंगलों से होकर जब वे वृन्दावन जा रहे थे तो रास्ते में हिंसक जीव भी उन्हें आगे जाने का रास्ता दे देते थे। श्रीकृष्ण के दर्शन की अभिलाषा में वृन्दावन जा रहे गोपाल भट्ट को एक दिन निद्रा आ गई और उसी समय उन्होंने देखा कि पीताम्बर धारण किए मुरली लिए ठाकुर उनके सामने खड़े हुए हैं। निद्रा खुलने पर उन्होने अपने आपको वृन्दावन में यमुना तट पर तमाल, कदम्ब, आम,मौलश्री से युक्त रमणीक वन में पाया । वे इस अनुपम छटा को देखकर नृत्य करने लगे। जब वे रूप, सनातन के साथ कृष्णभक्ति का प्रचार करने लगे तो एक दिन चैतन्य महाप्रभु ने उनके पास अपना डोर कौपीन और अपने बैठने का पट्टा भेजा था जो राधारमण मंदिर के विशेष उत्सवों में दर्शनीय होता है। 


            आचार्य गोस्वामी जी ने बताया कि गोपाल भट्ट हरीनाम की धारा प्रवाहित करते हुए एक दिन नेपाल पहुंचे जहां तीसरे दिन गंडकी नदी में स्नान के दौरान जैसे ही उन्होंने गोता लगाया उनके उत्तरीय में दिव्य शालिग्राम आ गए। उन्होंने एक बार उसे नदी में ही प्रवाहित कर दिया किंतु दूसरी बार गोता लगाते ही वे फिर उनके उत्तरेय में आ गए और आकाशवाणी हुई कि गोपाल भट्ट इसी के अन्दर तुम्हारी अमूल्य निधि विराजमान है। वे उसे लेकर वृन्दावन आ गए। यहां वे उसकी सेवा पूजा करने लगे। दिनेशचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि वृन्दावन में सनातन गोस्वामी मदनमोहन जी की, रूप गोस्वामी गोविन्द देव जी की तथा मधु पण्डित गोपीनाथ जी की सेवा और श्रंगार किया करते थे। ठाकुर- श्रंगार में प्रवीण होने के कारण गोपाल भट्ट उक्त तीनो विगृह का श्रंगार नित्य किया करते थे। अधिक आयु होने पर तीन तीन जगह का श्रंगार करने में जब उन्हें कुछ अधिक समय लगने लगा तो नृसिंह चतुर्दशी को संध्या समय शालिग्राम जी का अभिषेक करते समय उन्होंने राधारमण मंदिर के श्री विगृह के सामने ठाकुर जी से आराधना की और कहा कि हे प्रभु छोटे बालक प्रहलाद के लिए तो आप खंभ चीरकर प्रकट हुए थे किंतु उन पर कृपा क्यों नही हो रही है। उन्होंने स्वयं ठाकुर से कहा कि तीनो विगृह का श्रंगार करने में काफी समय लग जाता है यदि तीनो ही स्वरूप (मदनमोहन, गोपीनाथ एवं गोविन्ददेव मंदिरों के श्री विगृह)इसी श्री विगृह में समाहित हो जांय तो वे इसका और भव्य श्रंगार कर अपने को धन्य कर सकते हैं। इतना कहने के साथ ही गोपालभट्ट गोस्वामी उसी रासस्थली की पुलिन भूमि पर मूर्छित हो गए। यह अवसर वैशाखी पूर्णिमा की प्रभात बेला का था। 


            ठाकुर को अपने समर्पित भक्त का करुण क्रन्दन स्वीकार नही होता इसीलिए वे प्रकट हो गए और कहने लगे,’’ अरे गोपालभट्ट उठो, मैं तुम्हारे प्रेमबंधन में बंधकर आ गया हूं। जैसा तुम चाहते हो मै उसी रूप में आया हूं। गोविन्द के समान मुख कांति, गोपीनाथ के समान वक्षस्थल छटा तथा मदनमोहन के समान चरण माधुरी धारण कर एक ही विगृह में मैं तुम्हारे पास आया हूं।’’ इसके बाद ही उनकी मूर्छा दूर हुई तो उन्होंने मंजूषा में जैसे ही देखा तो उन्हें एक साथ ही उससे सहस्त्र प्रकाश की किरणे दिखाई पड़ीं। -पीठ पर रेखा दोऊ अंसन में चक्र, सौले, अंगुर कौ वपु श्याम अनुपम तन है। गोविन्ददेव कौ सो मुख गोपीनाथ कौ सो हीय, मदनमोहन कौ सो राजत चरन हैं। उसके बाद गोपाल भट्ट ने श्री राधारमण विग्रह का महाभिषेक रूप गोस्वामी एवं सनातन गोस्वामी के सानिध्य में 1599 विक्रमीय की बैशाखी पूर्णिमा पर किया क्योंकि इस दिन का मंगल प्रभात प्रभु के लिए शुभ संदेश लेकर आया था। श्रंगार करते समय वे इतने पुलकित थे कि उनके नेत्र सजल हो गए। इस विलक्षण मंदिर में प्राकट्योत्सव पर ठाकुर जी के दर्शन मोक्ष के द्वार खोलते हैं इसीलिए इस मंदिर के प्राकट्येात्सव पर इस मंदिर में तीर्थयात्रियों के साथ साथ समूचा ब्रजमंडल समायोजित हो जाना चाहता है। 


 

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