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सिलवर स्क्रीन पर हरदम रहा है करवाचौथ का सुंदर रूप ..अशोक टंडन से..

सिलवर स्क्रीन पर हरदम रहा है करवाचौथ का सुंदर रूप         ..अशोक टंडन से..

नयी दिल्ली, 16 अक्टूबर (वार्ता) बॉलीवुड फिल्मों में गीतों और प्रसंगों के जरिए सुहाग के प्रति प्रेम एवं समर्पण के प्रतीक करवाचौथ पर्व का सुंदर रूप जब-तब दिखाई देता रहता है। बहुत से फिल्मकारों ने करवाचौथ के गीतों के माध्यम से नायक-नायिका के प्रेमाभिव्यक्ति को सिलवर स्क्रीन पर प्रस्तुत किया है।

करवाचौथ के सामयिक गीतों की विशेषता यह रही है कि इनका फिल्मांकन बेहद प्रभावी ढंग से किया गया है। करवाचौथ के ज्यादातर गीतों में पति-पत्नी के किरदारों को अभिनीत करते समय नायक-नायिका अपनी मोहब्बत का इजहार करते हुए एक दूसरे की हमेशा सलामती की दुआ मांगते नजर आते हैं जबकि कुछ गीतों में विरह की व्याकुलता को प्रदर्शित किया गया है।

कुछेक पुरानी फिल्मों में करवाचौथ के गीतों को बेहद सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ऐसी प्रस्तुति आज भी कुछ फिल्मकार यदा-कदा अपनी फिल्मों में दे रहे हैं। साठ-सत्तर के दशक में एक फिल्म ‘सुहाग रात’ आयी थी, जिसमें एक गीत ‘जब तक गंगा मैया में पानी रहे, मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे, में करवाचौथ की महत्ता को प्रदर्शित किया गया था। सुहागरात को ही घर छोड़कर कहीं चले गये पति के प्रति पत्नी का विश्वास एवं समर्पण भाव के साथ ही भारतीय नारी की एकनिष्ठा की छवि इस गीत में नजर आती है।

भारतीय समाज में पारंपरिक विवाह के साथ ही गंधर्व विवाह भी एक अलग वजूद रखता है। दक्षिण भारत की एक फिल्म के हिन्दी रीमेक ‘मांग भरो सजना’ ऐसे ही संदर्भ से प्रेरित थी। फिल्म के नायक का नायिका से पारंपरिक विवाह होता है जबकि उसका पहले ही सहनायिका से गंधर्व विवाह हो चुका रहता है। एक पति के प्रति दोनों पत्नियों का एक जैसा प्रेम और समर्पण करवाचौथ के गीत " दीपक मेरे सुहाग का जलता रहे, जलता रहे, चांद सूरज बनके निकलता रहे, में अभिव्यक्त होता है। अपने समय का यह सुपरहिट गीत आज भी करवाचौथ के मौके पर सुनाई दे जाता है।

हिन्दू सामाजिक मान्यता के मुताबिक करवाचौथ का व्रत पति या भावी पति के लिए रखा जाता है। आदित्य चोपड़ा की फिल्म ' दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे ' में नायिका भावी पति के बजाय अपने प्रेमी की छवि दिल में संजोए रखती है, और करवाचौथ का व्रत भी वह भावी पति के बजाय प्रेमी का अक्श देखकर ही तोड़ती है।

नये फिल्मकारों ने अपनी पारिवारिक फिल्मों के गीतों में करवाचौथ को सामयिक संदर्भों में स्थान दिया है। चाहे वह करण जौहर की ‘कभी खुशी कभी गम’ हो या संजय लीला भंसाली की ‘हम दिल दे चुके सनम’ हो। इन फिल्मों में करवाचौथ के दौरान पुरानी पीढ़ी के किरदारों के साथ ही नयी पीढ़ी की नायिकाएं अपने नायक से प्रेम की अठखेलियां करती नजर आती हैं। ‘हम दिल दे चुके सनम’ फिल्म में करवाचौथ के चांद को इंगित करके ‘चांद छुपा बादल में शरमा के, मेरी जाना सीने से लग जा तू’ गीत के जरिए नायिका से अपनी मोहब्बत का इजहार करता है।

आम धारणा है कि पत्नी ही पति के लिए करवाचौथ का व्रत रखती है, लेकिन बदलते दौर में बहुत से पति भी इस दिन पत्नी के साथ उपवास रखते हैं। रवि चोपड़ा की फिल्म ‘बागबां’ में केंद्रीय किरदार अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी करवाचौथ का व्रत रखते हैं। इस मौके पर परिस्थितिजन्य दोनों अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं लेकिन टेलीफोन पर वार्तालाप के जरिए अपनी विरह वेदना व्यक्त करते हैं। इस फिल्म ने ऐसी छाप छोड़ी है कि निजी जीवन में भी अनेक पति करवाचौथ पर उपवास करने लगे हैं।

बड़े परदे पर करवाचौथ का फिल्मांकन हुआ है, जबकि प्रत्येक त्योहार और मांगलिक अवसरों को भुनाने वाले टेलीविजन के मनोरंजन चैनलों ने अपने धारावाहिकों में इस पर्व को कहानी में ट्विस्ट के रूप में भी प्रस्तुत किया है। आमतौर पर ऐसे धारावाहिकों में करवाचौथ के दौरान दुख-दर्द और हास-परिहास के उभय पक्षों की प्रस्तुति रहती है। टेलीविजन फिल्मकार एकता कपूर ने कुछ साल पहले अपनी धारावाहिक ‘कसौटी जिंदगी की’ में करवाचौथ के मौके को नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत किया था। इसमें करवाचौथ के दिन ही पत्नी अपने पति की हत्या कर देती है।

बहरहाल फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में करवाचौथ के गीतों और प्रसंगों का फिल्मांकन गाहे-बगाहे जारी है, और आगे भी इसका सामयिक पक्ष नजर आता रहेगा।

टंडन.श्रवण

वार्ता

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