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न्याय व्यवस्था में समानता लाना सबसे बड़ी चुनौती : कमलनाथ

न्याय व्यवस्था में समानता लाना सबसे बड़ी चुनौती : कमलनाथ

भोपाल, 07 दिसंबर(वार्ता) मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि मजबूत जन-तंत्र के लिए न्याय पालिका, कार्यपालिका और विधायिका में आज के संदर्भ में सुधार लाने की जरूरत है। सबको न्याय मिले, समय पर मिले, इसमें समानता हो,आज हमारे सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है।

मुख्यमंत्री आज मध्यप्रदेश विधानसभा के सभागार मानसरोवर में कॉन्फेडरेशन ऑफ एल्युमिनी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी फाउंडेशन (कॉन) द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में जनसंपर्क एवं विधि विधायी मंत्री पी.सी. शर्मा, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस श्री जे.के. माहेश्वरी, आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल के चेयरमैन जस्टिस श्री राजेन्द्र मेनन, बार कौंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन के. मिश्रा एवं मध्यप्रदेश के एडवोकेट जनरल शशांक शेखर उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि हर क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के संदर्भ में हमारी मौजूदा व्यवस्था को देखना होगा। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता समानता हमारे देश की एकता का आधार है जिसे हम न्याय व्यवस्था के जरिए लोगों को उपलब्ध करवाते हैं। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में भारत जैसा कोई देश नहीं और न ही भारत जैसा किसी देश का संविधान है। जब भारत आजाद हुआ तो संविधान बनाने की चुनौती थी। यह सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत विविधताओं का देश है। उत्तर से दक्षिण तक खाने और पहनावे में ही विविधताएं हैं। बोलियों और संस्कृतियों, रीति-रिवाजों में विविधता है। ऐसे देश के लिए एक संविधान बनाना चुनौतीपूर्ण काम था। इसी संविधान से कार्यपालिका, न्यायपालिका आैर विधायिका अस्तित्व में आई और कानून का शासन जैसे मूल तत्व हमें मिले।

श्री कमलनाथ ने कहा कि आज यह चुनौती है कि दुनिया में हो रहे परिवर्तनों के साथ हम कैंसे चलें और कैंसे उन्हें अपनाने में कामयाब रहें। एक और चुनौती है कि परिवर्तनों को देखते हुए किस प्रकार के सुधार कार्यपालिका एवं न्यायपलिका में करें। हमारे पास उद्यमियों की सबसे बड़ी संख्या है। सबसे विशाल युवा मानव संसाधन है। अब से दस साल पहले ज्ञान और टेक्नोलॉजी तक युवाओं की पहुँच सीमित थीं। आज इंटरनेट की वजह से यह बढ़ गई है। इस परिवर्तन को न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को कैंसे अपनाना चाहिए ,यह चुनौती है।

मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने कहा कि न्यायपालिका और विधायिका को मिलकर आने वाले समय में कैसे बेहतर व्यवस्था लोगों को दे सकें, इस पर गहनता से विचार करना चाहिए।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस ए.के. मित्तल ने कहा न्याय के लिए आधारभूत संरचना के साथ ही हमें न्यायिक व्यवस्था में भी मूलभूत परिवर्तन समय के साथ लाना होगा। न्यायिक जागरुकता लाने के साथ ही जमीनीस्तर पर भी न्याय व्यवस्था में सुधार लाना होगा। उन्होंने कहा कि कानून से जुड़े छात्रों और वकीलों सहित सभी को मिलकर हमें अपनी कार्य प्रक्रिया में बदलाव लाकर बेहतर न्याय की व्यवस्था बनाना है। उन्होंने कहा कि कानून की शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थी एक साल ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर इंटर्नशिप करें ऐसी नीति बनाना होगी। इससे हम लोगों की अपेक्षाएं जान सकेंगे। उन्होंने कहा कि कानून के छात्र अपनी शिक्षा के जरिए करियर तो बनाएं लेकिन साथ ही कर्तव्य की भावना से भी इस शिक्षा को लें क्योंकि यह लोगों को न्याय दिलाने से जुड़ी हुई शिक्षा है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.एम. खानविलकर ने कहा कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों ने कॉन फाउंडेशन के जरिए शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवा की जो पहल की है, वह सबसे बड़ी मानव सेवा है। उन्होंने कहा कि हमारी न्याय प्रणाली की नींव का भी आधार समाज का वह वर्ग है जो गरीब है, साधन विहीन है। उसे न्याय मिले यह इसका लक्ष्य है। श्री खानविलकर ने कहा कि शिक्षा से उत्कृष्ट मानव विकास होता है। राष्ट्रीय विधि संस्थान इस दृष्टि से एक सक्षम मानव संसाधन तैयार कर रहा है।

सांसद विवेक तन्खा ने भी सेमिनार को संबोधित किया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया। मुख्यमंत्री ने कॉन फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका चंद्रगुप्त का विमोचन किया। कॉन फाउंडेशन के सी.ई.ओ. सिद्धार्थ आर. गुप्ता ने फाउंडेशन के उद्देश्य और संचालित की जाने वाली गतिविधियों की जानकारी दी।

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