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लोकरुचि


मथुरा में बाल रामलीला में नही किया जाता रावण के पुतले का दहन

मथुरा में बाल रामलीला में नही किया जाता रावण के पुतले का दहन

मथुरा 03 नवम्बर (वार्ता)उत्तर प्रदेश में मथुरा में चल रही बाल रामलीला में रावण के पुतले का दहन नही किया जाता हैँ।

श्रीबाल रामलीला कमेटी के मंत्री एवं ब्रज संस्कृति के मर्मज्ञ राधा बिहारी गोस्वामी ने शनिवार को यहां बताया कि बाल रामलीला मथुरा में पिछले 125 साल से हो रही है। यह रामलीला दशहरे के बाद से शुरू होती है। इसमें लीला का समापन रावण के पुतला दहन से नही होता है तथा राजगद्दी भगवान राम को सौपने के बाद ही लीला समाप्त हो जाती है। इस बार यह लीला पांच नवम्बर को राम वाटिका में श्रीराम राज्याभिषेक, श्वान का न्याय एवं हनुमान कल्प लीला से समाप्त होगी।

उन्होने बताया कि रावण के पुतले का दहन न तो पौराणिक दृष्टि से उचित है और न ही सांस्कृतिक या पर्यावरण की दृष्टि से उचित है। रावण का अंतिम संस्कार मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने अपनी उपस्थिति में विभीषण से कराया था। हिंदू संस्कृति के अनुसार किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार केवल एक बार होता है। जब रावण का अंतिम संस्कार स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने करा दिया तो फिर दुबारा अंतिम संस्कार एक प्रकार से प्रभु श्रीराम का भी असम्मान है। इन्ही सब कारणों से बाल रामलीला में रावण के पुतले का दहन नही किया जाता।

रामलीला में श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, रावण और यहां तक विदूषक नथुआ की भूमिका निभा चुके बाल रामलीला कमेटी के मंत्री राधा बिहारी गोस्वामी ने बताया कि मथुरा में रामलीला की शुरूआत काबिली सिंह महराज ने कराई थी। वे रामनगर की रामलीला देखकर आए थे और फिर गऊघाट पर बच्चों से यह लीला प्रारंभ कराई गई थी। उस समय एक श्रंगारिया और एक ही लीला मंत्री होता था तथा हारमोनियम, तबले एवं मंजीरे ही वाद्य यंत्र होते थे। मेकप में जहां कोयले से दाढ़ी मूछें बनाई जाती थीं वहीं श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता के वन गमन को दिखाने के लिए उनके अंग में मुल्तानी मिट्टी या पेवरी लगाई जाती थी। लीला मिट्टी के तेल के हंडे के प्रकाश में होती थी और चूंकि उस समय लाउडस्पीकर नही था अतः ऐसे ही पात्र चुने जाते थे जिनकी आवाज बुलन्द हो।

उन्होंने बताया कि बालरामलीला में विभिन्न भूमिका निभा चुके बैजनाथ चतुर्वेदी मुम्बई में चौपाटी रामलीला करते हैं तथा इस लीला ने एक से एक बढ़कर कलाकार तैयार किये। उन्होेंने बताया कि यद्यपि टेलीविजन के कारण रामलीला में दर्शकों की संख्या कम हो गई है लेकिन बाल रामलीला के जीवंत प्रस्तुतीकरण के कारण दर्शकों की संख्या में कोई खास अंतर नही पड़ा है।

 

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