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ब्रज के मंदिरों में लगी है फूल बंगला बनवाने की होड़

ब्रज के मंदिरों में लगी है फूल बंगला बनवाने की होड़

मथुरा, 02 जून  (वार्ता) आसमान से बरस रही आग के बीच उत्तर प्रदेश में कान्हा की नगरी मथुरा में ठाकुर को गर्मी से निजात दिलाने के लिए मंदिरों में फूल बंगला बनाने की होड़ लग गई है।


      ब्रज के मंदिरों में फूल बंगला बनाने की परंपरा की शुरूवात स्वामी हरिदास ने की थी तो बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों के बंगले बनाने में  बल्लभाचार्य महराज का योगदान मांनते हैं। जनश्रुति के अनुसार स्वामी हरिदास  प्रिया एवं प्रियतम को रिझाने के लिए जंगल जाते थे तथा वहां से रंग बिरंगे फूल लाकर ठाकुर का श्रंगार करते थे। इसके बाद बड़ के पत्ते पर कलियों के द्वारा नई नई कला बनाने की शुरूवात हुई।

      बांकेबिहारी मंदिर में सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी के अनुसार फूल बंगलों की वर्तमान कला के जनक हरदासीय सम्प्रदाय के पन्द्रहवें आचार्य छबीले बल्लभ महराज थे जिन्होंने कला की विविधता से फूल बंगला कला को ऐसा स्वरूप दिया जो दिन पर दिन निखार लेता गया।वे जाल तोड़ने में माहिर थे ।

      फूल बंगले की सभी टटियाओं में अलग अलग तरह के जाल तोड़कर उन्होंने बंगले को नवीनता प्रदान की। उनके द्वारा कपड़े व कागज की बनाई कलाकृतियां आज तक उदाहरण बनी हुई हैं। रूई का बोलता हुआ लंगूर उनके बाद आज तक कोई नही बना पाया। बंगला परंपरा को उसके बाद बाबा कृष्ण चन्द्र अवधूत, सेठ हरगूलाल बेरीवाला, प्रतापचन्द्र चाण्डक, ज्वाला प्रसाद भण्डासीवाला, अर्जुन दास, रामजीलाला, छाजूराम रानीला, राधाकृष्ण गाडोदिया आदि और निखार दिया।

बांके बिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में वर्तमान में तीन मंजिल के बंगले बनाए जा रहे है तथा इन बंगलों में लिली, रायबेल, मौल श्री, माेगरा, गुलाब, रजनीगंधा, मोतिया तथा गेंदे के फूल का प्रयोग किया जाता है । गेंदे के फूल का प्रयोग केवल वाह्य सजावट के लिए किया है। फूलों की लड़ी बनाकर फिर उसका जाल बनाया जाता है। केले के तने के अंदर का भाग फूल बंगले में चार चांद लगा देता है।

     मंदिर के राजभोग सेवा अधिकारी ज्ञानेन्द्र किशोर गोस्वामी ने बताया कि जहां पिछले वर्षों तक बांके बिहारी मंदिर में फूल बंगले केवल सायंकालीन सत्र में ही बनते थे लेकिन इस बार से प्रातःकालीन एवं सायंकालीन सत्र में फूल बंगले बनाए जा रहे है जिसके कारण मंदिर आनेवाला कोई भी भक्त बंगला दर्शन से वंचित नही होता है। फूल बंगले में बिहारी जी महराज चूंकि मंदिर के जगमोहन में विराजते हैं इसलिए भक्तों को बहुत भव्य दर्शन मिलते हैं।

     उन्होंने बताया कि अब बंगले का विस्तार  मंदिर के अंदर से लेकर मंदिर के बाहर तक हो गया है। फूल बंगले के साथ मंदिर के चौक में फुहारे चलाने के साथ साथ भक्तों पर समय समय पर पिचकारी से गुलाबजल डालने से वातावारण पर्यावरण का आदर्श नमूना बन जाता है।

ब्रज में वैसे तो द्वारकाधीश मंदिर, राधारमण मंदिर, राधा श्यामसुन्दर मंदिर, राधा दामोदर मंदिर,गोपीनाथ मंदिर, प्राचीन केशवदेव मंदिर, श्रीकृष्ण जन्मस्थान के मंदिर, मुकुट मुखारबिन्द गोवर्धन, दानघाटी मंदिर गोवर्धन एवं मुखारबिन्द मंदिर जतीपुरा फूल बंगला बनाने की कला में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं पर गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में स्थित श्रीनाथ मंदिर का फूल बंगला इतना भव्य बनता है कि भक्त देखते ही रह जाता है।

     श्रीनाथ जी मंदिर पूंछरी के सेवायत आचार्य चन्द्रप्रकाश शर्मा ने बताया कि इस मंदिर में ठाकुर को गर्मी से निजात दिलाने के लिए न केवल फूल बंगला बनाते हैं बल्कि ठाकुर को शीतलता प्रदान करने के लिए खस की टटिया भी लगाते हैं। रायबेल, मोगरा, मौलश्री, मोतिया आदि से लगभग पांच घंटे में बंगला तैयार होता है।

     फूल बंगला वास्तव में भक्त की भाव प्रधान ठाकुर सेवा होती है जिसमें भक्त का प्रयास रहता है कि जिस दिन उसकी सेवा हो उस दिन किसी प्रकार से ठाकुर को गर्भी का अनुभव न हो। कुल मिलाकर वर्तमान में ब्रज के मंदिरों में फूल बंगला सेवा के अंदर ब्रज के मंदिरों में वर्तमान में श्रद्धा , भक्ति और संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है।

सं प्रदीप

वार्ता

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