लोकरुचिPosted at: Oct 5 2020 12:00PM सुलतानपुर में बदल गई 80 मुसहरों की दशा दिशा
सुलतानपुर, 05 अक्टूबर (वार्ता) सोच अगर अच्छी हो तो समाज के दबे कुचले वर्ग के लिये काफी कुछ किया जा सकता है और ऐसा ही हुआ उत्तर प्रदेश में सुलतानपुर के दूबेपुर ब्लाक में रहने वाले चौदह परिवार के 80 लोगों के साथ ।
समाज के निम्न तबके में आते हैं मुसगर । चूकि ये चूहा खाते इसलिये इनकी जाति का नाम मुसहर पड़ा ।
सत्तर के दशक मेें एक फिल्म आयी थी पार जिसमें नसीरउद्दीन शाह और शबाना आजमी ने काम किया था । इसकी पटकथा पत्रकार एसपी सिंह ने लिखी थी । फिल्म में मुसहरों की कठिन जिंदगी को दिखाया गया था । पार को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था ।
मुसहरों में न तो शिक्षा होती और न विकास की कोई जानकारी । सरकारी योजनायें क्या होती हैं ,ये इनको पता ही नहीं होता है । लेकिन अगर सरकारी महकमा अपनी जिम्मेवारी के प्रति गंभीर हो तो समाज के इन निम्न समुदाय के लोगों को भी विकास की किरन दिखाई जा सकती है । और यही किया दूबेपुर ब्लाक के खण्ड विकास अधिकारी व ग्राम प्रधान ने । मानवीयता और सरकारी योजनाओं के प्रति सकारात्मक सोच ने विकास शब्द से अनभिज्ञ चौदह परिवार के करीब 80 लोगों की दशा और दिशा ही बदल दी।
दुबेपुर गांव दिखाैली में करीब तीन दशक से रह गए मुसहर परिवार पत्तल-दोने बना अपना जीवनयापन कर रहे थे । किंतु उन्हें अभी तक छत मुहैया नहीं थी। न तो मकान था न शौचालय। खाने कमाने का जरिया न होने से इनकी आर्थिक स्थिति भी दयनीय थी । इनकी बस्ती में काेई सुविधा नहीं थी। जीवन स्तर निम्न होने से इन्हें नीची निगाह से देखा जाता था । मेहनत मजदूरी कर दो रोटी के जुगाड़ में ही इनकी सुबह से शाम खत्म हो जाती है जबकि मुसहर बहुत मेहनती और जीवट वाले होते हैं ।
इनकी इस स्थिति की जानकारी खण्ड विकास अधिकारी संतोष गुप्ता को हुई तो उन्होंने ग्राम प्रधान राजेश सिंह से विमर्श के बाद इन उपेक्षित परिवारों के लिए स्वालंबन की राह आसान करने और इन्हें घर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने पर काम शुरू कर दिया। खंड विकास अधिकारी ने गांव का दौरा किया और ग्राम प्रधान राजेश सिंह से मिलकर समस्त शासकीय योजनाओं के कन्वर्जेंस के माध्यम से सुधार का काम शुरू कर दिया।
समाज की मुख्यधारा से वंचित इन लोगों के उत्थान के लिए ब्लॉक के जिम्मेदारों की कोशिश रंग लाई और मुसहरो की बस्ती का कायाकल्प कर घर, शौचालय व रोजगार के साधनों की बहाली ने उनके चेहरे पर मुस्कान पैदा कर दी। योजना के तहत सभी परिवारों को मुख्यमंत्री आवास व शौचालय देने के साथ-साथ जल निकासी की भी उत्तम व्यवस्था कर दी गई। पेयजल सुविधा के लिए हैंडपंप लगवाए गए। करीब दो दर्जन से अधिक स्कूल से दूर बच्चों को विद्यालय जोड़ने की कोशिश शुरू की गई। खुले में शौच जाने व व्यवस्थित घर न होने से हो रही गंदगियों पर पूर्ण विराम लग गया।
रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से बकरी पालन के लिए 55-55 हजार रुपये की लागत से सभी परिवारों के मुखिया के लिए 14 गोट सेड बनवाए गए। अब इनकी बकरियां इसी सेड में सुरक्षित रहती हैं। पशुपालन विभाग से अतिरिक्त बकरियां उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया जा रहा है।
बीडीओ संतोष गुप्ता ने कहा कि इनके गांव में वर्क शेड बनवाया जा रहा है। महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ दिया गया हैं। महिलाएं अपने पुराने और मूल व्यवसाय दोना-पत्तल का निर्माण कर रही हैं ।
सं विनोद
वार्ता