..पुण्यतिथि 30 सितंबर ..
मुंबई 29 सितंबर (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में अपनी नृत्य शैली और दिलकश अदाओं से दर्शको को दीवाना बनाने वाली न जाने कितनी अभिनेत्रियां हुयीं लेकिन चालीस के दशक में एक ऐसी अभिनेत्री भी हुयी जिसे ‘डांसिग क्वीन’ कहा जाता था और आज के सिने प्रेमी शायद उससे अपरिचित होंगे। लेकिन उस समय शोहरत की बुलदियां छूने वाली उस अभिनेत्री का नाम कुक्कू था।
कुक्कू मूल नाम कुक्के मोरे का जन्म वर्ष 1928 में हुआ था। चालीस के दशक में कुक्कू ने फिल्म ‘लैला मजनू’ के जरिये फिल्म इंडस्ट्री में कदम रख दिया। इस फिल्म में उन्हें समूह नृत्य में नृत्य करने का मौका मिला। वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म ‘मन की जीत’ में उन्हें एक बार फिर से नृत्य करने का मौका मिला। इस फिल्म में उन पर फिल्माया यह गीत ..मेरे जोवन का देखा उभार.. श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।
वर्ष 1946 में कुक्कू को बतौर अभिनेत्री फिल्म ‘अरब का सौदागर’ और वर्ष 1947 में फिल्म ‘सोना चांदी’ में काम करने का अवसर मिला। लेकिन दुर्भाग्य से दोनो ही फिल्में टिकट खिड़की पर असफल साबित हुयी। कुक्कू पर फिल्माये गीत हालांकि दर्शको के बीच काफी पसंद किये गये। वर्ष 1948 में कुक्कू को महबूब खान की फिल्म ‘अनोखी अदा’ में भी काम करने का अवसर मिला। फिल्म की सफलता के बाद कुक्कू बतौर डांसर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हो गयी। वर्ष 1949 में कुक्कू को निर्माता..निर्देशक राजकपूर के बैनर तले बनी फिल्म ‘बरसात’ में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में मुकेश की आवाज में उनपर फिल्माया यह गीत ..पतली कमर है तिरछी नजर है ..उन दिनों श्रोताओं के बीच क्रेज बन गया था और आज भी श्रोताओं के बीच शिद्धत के साथ याद किया जाता है।
वर्ष 1951 में कुक्कू को एक बार फिर से राजकपूर की फिल्म ‘आवारा’ में काम करने का अवसर मिला। यूं तो फिल्म आवारा के सभी गीत लोकप्रिय हुये लेकिन कुक्कू पर फिल्माया यह गीत ..एक दो तीन आजा मौसम है रंगीन.. आज भी श्रोताओं को झूमने को विवश कर देता है। वर्ष 1954 में किशोर शाहू की बहुचर्चित फिल्म ‘मयूर पंख’ में गीत.संगीत के विविघ प्रसंग इस्तेमाल किये गये थे लेकिन इस फिल्म में कुक्कू के गीत को शामिल किया गया। इसी तरह फिल्म ‘आन’ में भी कुक्कू पर एक नृत्य ऐसा फिल्माया गया जिसमें केवल संगीत का इस्तेमाल किया गया था बावजूद इसके कुक्कू ने अपनी नृत्य शैली से दर्शकों को रोमांचित कर दिया।
वर्ष 1952 में महबूब खान निर्मित इस फिल्म की खास बात यह थी कि यह हिंदुस्तान में बनी पहली टेक्नीकलर फिल्म थी और इसे काफी खर्च के साथ वृहत पैमाने पर बनाया गया था। दिलीप कुमार, प्रेमनाथ और नादिरा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि भारत में बनी यह पहली फिल्म थी जो पूरे विश्व में एक साथ प्रदर्शित की गयी।
पचास के दशक में कुक्कू की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन दिनों जब फिल्म बनने के बाद उसकी पहली झलक वितरक को दिखायी जाती तो वह कहते फिल्म में कुक्कू कहां है? बाद में फिल्म में कुक्कू को शामिल किया जाता और उसपर एक या दो गीत अवश्य फिल्माये जाते। कुक्कू को नये डिजाइन की फैशेनबल चप्पल पहनने का शौक था। जब कभी वह फिल्म स्टूडियों में डिजानइनर चप्पले या जूते पहनकर आती तो देखने वाले उन्हें देखते रह जाते। माना जाता है कि कुक्कू के पास विभिन्न डिजाइन वाले लगभग 5000 जोड़ी चप्पले थीं। मशहूर नृत्यांगना हेलेन को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिये कुक्कू ने अहम भूमिका निभाई। कुक्कू की सिफारिश की वजह से हेलेन को शबिस्तान और फिर आवारा (1951) फिल्मों में नर्तकों के समूह में काम करने का करने का मौका मिला।
वर्ष 1945 से वर्ष 1965 तक कुक्कू ने फिल्म इंडस्ट्री पर एकछत्र राज किया। उन्होंने आजीवन विवाह नही किया। नितांत अकेले रहने वाली कुक्कू को इस दौरान कैंसर जैसी जटिल बीमारी का शिकार हो गयी अपने अपने गम को भुलाने के लिये शराब का सेवन करने लगीं। फिल्म इंडस्ट्री में लगभग दो दशक तक अपनी नृत्य शैली से दर्शको के बीच खास पहचान बनाने वाली कुक्कू 30 सितंबर 1981 को इस दुनिया को अलविदा कह गयीं। कुक्कू ने अपने दो दशक लंबे सिने करियर में कई फिल्मों में काम किया। उनके करियर की उल्लेखनीय फिल्मों में विद्या, शबनम, पतंगा पारस अंदाज, हमारी बेटी, खिलाड़ी, आरजू, बावरेनैन, शबिस्तान, हलचल, मिस्टर एंड मिसेज 55, यहूदी, फागुन, चलती का नाम गाड़ी, गैंबलर, मुझे जीने दो आदि शामिल हैं।