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शिकार करने से उल्लू की तादाद में आई गिरावट-जाजू

शिकार करने से उल्लू की तादाद में आई गिरावट-जाजू

भीलवाड़ा 26 अक्टूबर (वार्ता) तंत्र साधना और सिद्धि पाने के लिए दिवाली पर लक्ष्मी के वाहन माने जाने वाले उल्लू की बलि देने के अंधविश्वास के चलते लुप्तप्राय इस पक्षी की तादाद में लगातार गिरावट होती जा रही है।

उल्लू की कम होती जा रही संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए वन्यजीव संरक्षण संस्था पीपुल फॉर एनिमल्स (पीएफए) के प्रदेश प्रभारी एवं पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू ने आज यह बात कही। श्री जाजू ने बताया कि इस कारण पूरे देश में दीपावली के मौके उल्लू शिकारियों और तस्करों के निशाने पर होते है तथा इस समय उल्लू का शिकार में इजाफा होता है। दिवाली के पहले ही शिकारी एवं तस्कर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। इस कारण की संख्या में लगातार गिरावट होती जा रही हैं जो चिंताजनक है।

श्री जाजू ने बताया कि देश के कई राज्यों में तांत्रिकों में तंत्र साधना के लिए दिवाली से पूर्व उल्लू की बलि चढ़ाने का अंध विश्वास रहता है। इसके कारण उल्लू की मांग काफी बढ़ जाती है और शिकारी एवं तस्कर उल्लुओं को पकड़ने के लिए जंगलों को खंगालने में जुट जाते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ वर्षों पहले तक उल्लू बहुतायत में पाये जाते थे। ईमली, बरगद एवं पीपल के पेड़ों में खोली जगह में रहने वाले उल्लू की संख्या में पहले ही जंगल घटने से तादाद में कमी आई और प्रजनन की दर भी कम हो गयी और लुप्तप्राय इस पक्षी पर तस्करों का खतरा लगातार बरकरार है।

उन्होंने वर्ष 1990 में भारत में उल्लुओं के व्यापार, पकड़ने एवं शिकार करने पर वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम 1972 के तहत रोक लगा दी गयी थी। लेकिन इसके बाद भी उल्लू की तस्करी पर रोकथाम पूरी तरह नहीं लग पाई है। तंत्र मंत्र के साथ ही शक्ति और सिद्धी प्राप्ती के लिए उल्लुओं को उपयोग किया जा रहा है, इसके कारण तांत्रिक उल्लुओं की खोज में रहते हैं। उन्होंने बताया कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, सहित देशभर में उल्लू की आठ प्रजातियां पाई जाती है। इनमें बार्न उल्लू, ग्रेट होर्नेड उल्लू, यूरेशियन ईगल उल्लुओं के हालात बहुत ही दयनीय हैं।

देशभर में उल्लुओं की गणना ही नहीं की जाती, इसलिए इनकी तादाद का पता लगाया जाना मुश्किल है। राजस्थान सहित देशभर में उल्लुओं के संरक्षण के लिए पीएफए की ओर से केंद्रीय वन एवं पर्यारवण मंत्री को पत्र लिख कर उल्लू के संरक्षण की मांग उठाई है ताकि वक्त रहते उल्लुओं को बचाया जा सके और गिद्ध की तरह इसे भी केवल चित्रों में ही न दिखाना पड़े।

उन्होंने कहा कि उल्लू के संरक्षण के लिए वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के तहत शिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के साथ जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए।

जोरा

वार्ता

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