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आजादी के लिए किए गए बलिदान को भुलाया नहीं जाना चाहिए: कर्ण सिंह

आजादी के लिए किए गए बलिदान को भुलाया नहीं जाना चाहिए: कर्ण सिंह

कोलकाता, 30 सितंबर (वार्ता) जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ़ कर्ण सिंह ने लोगों से आह्वान किया है कि देश की आजादी के लिए देशवासियों ने जो कीमत चुकाई थी उसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। डा़ सिंह ने कहा “हम अपना स्वतंत्रता दिवस बहुत अच्छे तरीके से मनाते हैं लेकिन मैं हमेशा कहता हूं कि उस बलिदान को कभी मत भूलना जो आजादी के लिए चुकाया गया था। हम अंग्रेजों के खिलाफ उतने हिंसक नहीं थे, जितने विभाजन के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ थे।” दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, राजनयिक, लेखक, विचारक डॉ़ सिंह ने कोलकाता के प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित “एक मुलाकात विशेष” के एक आभासी सत्र में लिली अगेंस्ट ह्यूमन ट्रैफिकिंग की संस्थापक-अध्यक्ष लेडी मोहिनी केंट नून, लेखक और के साथ बातचीत में यह विचार व्यक्त किए हैें।

उन्होंने कहा “विभाजन के दौरान अविश्वसनीय क्रूरताओं को अंजाम दिया गया था और सवाल यह है कि क्या हमें उन्हें सामने लाकर उनका सामना करना चाहिए या इसे प्रचारित करना चाहिए। एक सिद्धांत यह है कि इन्हें फिर से याद करने से पुरानी नफरत और यादें फिर से जीवित हो जाएंगी और दूसरा सिद्धांत यह है कि जो हुआ था उसका सामना करना होगा। आप इसे अनदेखा नहीं कर सकते। आपको भारत की आजादी के लिए चुकाई गई कीमत से लोगों को अवगत कराना होगा। तीन पीढ़ियाँ बीत चुकी हैं और वह आघात अभी भी है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक बार फिर सांप्रदायिक दंगे होने लगे हैं जिनकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हम धर्म के आधार पर हुए विभाजन की भयावहता से गुजरे हैं। हमें वेदांत और उपनिषदों की समन्वित परंपरा को जारी रखना चाहिए।” समाज में धर्म की भूमिका पर एक सवाल के जवाब में, डा़ सिंह ने अंतरधार्मिक बैठकों के महत्व की ओर इशारा करते हुए कहा, “मैं पिछले चार दशकों से अंतरधार्मिक आंदोलन में शामिल रहा हूं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि लाेग मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारों और अन्य धार्मिक इमारतें बनवाने पर करोड़ों रूपए खर्च कर देते है लेकिन अंतरधार्मिक बैठकों पर कोई ध्यान नहीं देता है। हम अभी भी लोगों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे और विभिन्न धर्माें के बीच आपसी समझ को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि धर्म के प्रतिमानों को लेकर हमारे दिमाग में कठोर विचार हैं और इससे बचने का एकमात्र यही उपाय है कि आप विभिन्न धर्मों के लोगों से मिलकर बातचीत करें।

व्यापक शिक्षा प्रणाली और हमारे पाठ्यक्रम में वैदिक ज्ञान की आवश्यकता पर डा़ कर्ण सिंह ने कहा, “भारत में मैकाले की छवि को बहुत धूमिल किया गया है , लेकिन जिन लोगों ने अंग्रेजी शिक्षा हासिल की थी उन्होंने दुनिया में अपनी पहचान बनाई है और उनमें से कईं को नोबेल पुरस्कार भी मिला है। इसलिए हमें पूरी प्रणाली को खत्म नहीं करना चाहिए। हमारा संविधान हमें धर्म की शिक्षा देने से रोकता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप उपनिषदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों की अद्भुत नैतिक कहानियों को नहीं बता सकते। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में बौद्धिकता का समावेश करने की जरूरत है और यह हमारे प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शैक्षणिक विधियों का एक संयोजन हो सकता है। जितेन्द्र वार्ता

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