खेलPosted at: Aug 28 2018 10:22PM जब जीत कर भी फफक पड़ा था हाकी का जादूगर
झांसी, 28 अगस्त (वार्ता) कलाइयों के दम पर दुनिया भर में एक दशक से भी ज्यादा समय तक भारतीय हाकी का एकछत्र साम्राज्य स्थापित करने वाले ध्यानचंद के जीवन ऐसा लम्हा भी आया था जब ओलम्पिक में जीत हासिल करने वाली पूरी भारतीय टीम जश्न में डूबी हुयी थी और उनकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे।
29 अगस्त 1905 में इलाहाबाद में जन्मे विख्यात ध्यानचंद में देशभक्ति और राष्ट्रीयता इस हद तक कूट कूट कर भरी थी कि वर्ष 1936 बर्लिन ओलम्पिक में जीत के बाद जब झंडे के नीचे भारतीय टीम खड़ी थी तब वह रो रहे थे। साथी खिलाड़ियों ने उनसे रोने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा ‘ काश इस समय यहां यूनियन जैक की जगह मेरा तिरंगा फहरा रहा होता।’
उन्होंने गुलाम भारत की टीम को एक नहीं तीन बार ओलंपिक मे स्वर्ण पदक दिलाया। वर्ष 1936 में बर्लिन ओलंपिक में तो ध्यानचंद ने अपने जादुई खेल का वह करिश्मा दिखाया कि फाइनल में अपनी टीम की पराजय नाजी तानाशाह हिटलर भी नहीं देख पाया और मैच के बीच से उठकर चला गया। वह मैच बेहद खराब परिस्थितयों मे खेला गया।
फाइनल मैच से पहले जबरदस्त बरसात हुई और बरसात के कारण मैच 14 अगस्त की जगह 15 अगस्त को खेला गया लेकिन मैदान काफी भीगा हुआ था और उस पर साधारण जूते पहनकर खेल रही भारतीय टीम को काफी दिक्कतें हो रहीं थी, इसी कारण मैच में मध्याहन से पहले भारत जर्मनी के खिलाफ केवल एक ही गोल कर पाया था। इस मैच में ध्यानचंद और उनके भाई रूपसिंह दोनों ही खेल रहे थे । ब्रेक के दौरान दोनों भाइयों ने कुछ विचारविमर्श किया और दोबारा मैच शुरू होने पर उन्होंने अपने जूते उतार दिये और नंगे पैर ही हॉकी स्टिक लेकर मैदान पर उतर आये।
इसके बाद ध्यानचंद ने उस अद्भुत और रोंगटे खडे़ कर देने वाले खेल का प्रदर्शन किया कि दूसरे हाफ में भारतीय टीम ने जर्मनी के खिलाफ सात गोल दागे। न केवल सात गोल दागे बल्कि कई बार गोल के सामने पहुंचकर भी “ अब गोल नहीं करना है यह सोचकर” गोल नहीं किये। जर्मनी को एक गुलाम देश की टीम से मिली इस तरह शर्मनाक हार को हिटलर देख नहीं पाया और मैच बीच में ही छोडकर चला गया।
हिटलर ने मैच तो बीच में ही छोड दिया लेकिन दद्दा की खेल प्रतिभा का लोहा उसने भी माना और ध्यानचंद को अपने देश की टीम की ओर से खेलने का प्रस्ताव भी दिया। उस समय भारतीय टीम में जबरदस्त अभाव का सामना करने के बावजूद उन्होंने हिटलर के इस प्रस्ताव को बेहद शालीनता के साथ ठुकरा दिया और साबित किया कि उनकी नजर में देश से बढकर और कुछ भी नहीं ।
देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों के क्षेत्र में पहचान दिलाने वाले हॉकी के इस बाजीगर ने कभी अपने या अपने परिवार के लिए सरकार से किसी तरह की सहायता की उम्मीद नहीं की। हॉकी के प्रति इस जुनून और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान रखने वाले दद्दा को देश ने भी काफी सम्मान दिया और भारत अकेला ऐसा देश बना जहां किसी खिलाड़ी के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ध्यानचंद ने न केवल हॉकी बल्कि खेलों के प्रति तत्कालीन भारत और यहां के सियासी लोगों की सोच मे एक बड़ा बदलाव किया और इसी कारण उनके इस योगदान को सलाम करते हुए 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया।
इतना ही नहीं इस अवसर में मेजर ध्यानचंद पुरस्कार से भी खिलाडियों को नवाजा जाता है साथ ही दिल्ली के स्टेडियम का नाम उनके नाम पर ही रखा गया और उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किया गया। ध्यानचंद ने 48 साल खेलने के बाद 1948 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संयास ले लिया लेकिन सेना के लिए वह हॉकी खेलते रहे और 1956 में पूरी तरह से हॉकी स्टिक को छोड दिया।
हॉकी का पर्याय माने जाने वाले इस धुरंधर खिलाड़ी का जीवन आर्थिक रूप से खराब बीता लेकिन उनके जीवन के आखिरी दिनों में तो देश ने उन्हें पूरी तरह से भुला दिया था। इन आखिरी दिनों में जबरदस्त आर्थिक अभाव में रहे उन्हें लिवर कैंसर हो गया और एम्स के जनरल वार्ड में किसी मामूली आदमी के जैसे इस अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हॉकी के बाजीगर ने अपनी आखिरी सांसे लीं। उनके जीते जी देश ने उन्हें भुला दिया ।
ध्यानचंद की मौत के बाद देश में उन्हें काफी सम्मान दिया गया लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव स्थापित करने वाले इस महान देशभक्त खिलाड़ी को देश का सर्वोच्च सम्मान “ भारत रत्न ” अभी तक न देकर एक बार फिर समय समय पर सत्ता में आने वाली विभिन्न दलों की सरकारों ने धोखा दिया। न तो कोई सरकार उन्हें यह सम्मान दे पायी और न ही देश की जनता अपनी सरकार पर इसके लिए दबाव बना पायी।
हालांकि दद्दा के खेलों में योगदान की बात की जाएं तो उसके लिए शब्द ही नहीं हैं ऐसे में भारत रत्न उन्हें देने से यह सम्मान भी सम्मानित होगा लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाना कहीं न कहीं हर देशभक्त भारतीय के दिल में एक गहरी टीस पैदा करता है।