Saturday, Apr 20 2024 | Time 09:39 Hrs(IST)
image
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है टिशू कल्चर बाजार

15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है टिशू कल्चर बाजार

नयी दिल्ली, 03 जुलाई (वार्ता) जलवायु परिवर्तन के दौर में विपरीत मौसम में भी फसलों की ज्यादा उत्पादन वाली किस्मों की बढ़ती माँग से देश में टिशू कल्चर वाले पौधों का उद्योग 15 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, इस समय देश में टिशू कल्चर वाले पौधों का बाजार 500 करोड़ रुपये का है और यह सालाना 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इसमें न/न सिर्फ घरेलू बाजार का बल्कि निर्यात का भी योगदान है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, बेल्जियम, सिंगापुर, कोरिया, जापान, न्यूजीलैंड, कनाडा, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया में भारत के टिशू कल्चर वाले सजावटी पौधों की माँग बढ़ रही है। पिछले दो दशक में कृषि, वानिकी, वृक्षारोपण तथा फूलों की बागवानी के लिए उत्तम गुणवत्ता और ज्यादा उत्पादन वाले रोग प्रतिरोधी पौधों की माँग बढ़ रही है। इस समय देश में केले, अनन्नास, झड़बेर, गन्ना, आलू, हल्दी, अदरक, वनीला, इलायची, एलोवेरा, गुलनार, एंथूरियम, कुमुद, सिंगोनियम, सिम्बीडियम, सागवान, बाँस, यूकेलिप्टस, पॉप्यूलस, जैटरोफा और पोंगेमिया के टिशू कल्चर पौधों का इस्तेमाल खेती में बड़े पैमाने पर हो रहा है। इस उद्योग से जुड़ी कंपनियों के लिए इस पद्धति से उगाये गये पौधों की अच्छी गुणवत्ता तथा उनका बीमारियों से मुक्त होना सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। देश में इस समय टिशू कल्चर के क्षेत्र में 96 मान्यता प्राप्त कंपनियाँ और पाँच मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएँ हैं। अब तक टिशू कल्चर के जरिये सात करोड़ से अधिक पौधों को सर्टिफाइ किया जा चुका है। सरकार ने इस पद्धति से उगाये गये पौधों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नेशनल सर्टिफिकेशन सिस्टम फॉर टिशू कल्चर रेज्ड प्लांट्स (एनसीएस-टीसीपी) शुरू की है जिसके तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग कंपनियों और प्रयोगशालाओं को मान्यता देता है। यह टिशू कल्चर की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए दुनिया की पहली प्रणाली है। फिलहाल एनसीएस-टीसीपी से मान्यता लेनी जरूरी नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाली 90 प्रतिशत से अधिक कंपनियाँ स्वेच्छा से मान्यता हासिल कर चुकी हैं। अजीत, यामिनी वार्ता

There is no row at position 0.
image