नयी दिल्ली 22 जून(वार्ता) आर्थराइटिस और कूल्हे के जोड़ों में दर्द से पीड़ित लाेगों के लिये टोटल हिप रिप्लेसमेंट एक क्रांतिकारी चिकित्सा के रूप में सामने आयी है, जिसके जरिये चलने-फिरने में असमर्थ और उम्मीद खो चुके लोग फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी कूल्हे की जोड़ में आर्थराइटिस या चोट के कारण लंबे समय से होने वाले दर्द से राहत दिलाने और जीवन में गतिशीलता को बनाये रखने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी प्रक्रिया है। इस सर्जरी के जरिये कृत्रिम अंग (प्रोस्थेसिस) को सही जगह पर स्थापित करने में मदद मिलती है। रोगी की चलने-फिरने की प्राकृतिक प्रक्रिया को बहाल रखने के लिए रोगी की शारीरिक संरचना के अनुसार ही प्रतिस्थापित किये जाने वाले जोड़ की प्रतिकृति बनायी जाती है। शल्य चिकित्सा तकनीकों के उन्नयन से अब यह प्रक्रिया सरल और सुरक्षित हो गयी है और इसके अधिक अच्छे परिणाम सामने आये हैं। अस्थि रोग विशेषज्ञों के मुताबिक कूल्हे का जोड़ दो कारकों से बना होता है - बाॅल और साॅकिट ज्वाइंट। जांघ की हड्डी का ऊपरी सिरा बाॅल के आकार का होता है। ये बाॅल के आकार की हड्डी कप के आकार के साॅकिट में फिट बैठ जाती है जिसे कूल्हे की हड्डी में ऐसीटैबुलम नाम दिया गया है। ये बाॅल और साॅकिट जोडों को 360 डिग्री तक घूमने देते है। बाॅल और साॅकिट चिकने पदार्थ कार्टिलेज को संरक्षित करते है। कार्टिलेज घर्षण को कम करता है जिससे गतिशीलता बढ़ती है। कूल्हे के जोड़ में टूट फूट होने से यही कार्टिलेज खत्म होकर घिसने लगता है जिससे दो हड्डियों के बीच के जोड़ की जगह कम होने लगती है। इससे हड्डियां आपस में घिसने लगती है और क्षतिग्रस्त हड्डियां बाहर की तरफ आने लगती हैं तथा उनमें गांठ पड़ जाती है। इसके असर से दर्द और अकड़न के साथ ही पैरों की गतिशीलता भी कम होने लगती है। आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सीनियर ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन राजू वैश्य का कहना है कि बुजुर्गों में आर्थराइटिस की समस्या होना आम बात है , लेकिन आजकल युवा, महिला एवं पुरुष वर्ग , विशेष तौर पर अधिक खेलकूद अथवा बहुत ज्यादा शारीरिक गतिविधियों में सक्रिय लाेगों में ये समस्या देखने को मिल रही है। अचानक गिरने या दुर्घटना के अलावा कई बार तेजी से दौड़ने -भागने पर कूल्हों के जोड़ के कार्टिलेज या ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
डाॅ. वैश्य ने कहा कि आर्थराइटिस एवं जोड़ों की अन्य समस्याओं के कारण कूल्हे और घुटने जैसे जोड़ों को काफी अधिक क्षति हो सकती है । दवा लेने के बावजूद लगातार दर्द होता रहता है तथा फिजियोथिरेपी से भी लाभ नहीं मिलता है। अगर शुरुआती दौर में जोड़ों के विकार का पता चल जाएं तो दवाइयों, विभिन्न थेरेपियाें के अलावा दिनचर्या की शैली में बदलाव के जरिये इसका इलाज किया जा सकता है। अगर मरीज इससे ठीक न हो पाए और अगर डाॅक्टर शल्य चिकित्सा की सलाह देता है तो इसमें देरी करना सही नहीं होगा , क्योंकि इससे दर्द बढ़ता जाएगा और बाद में विकृति तक हो सकती है। उन्होने बताया कि टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के तहत कूल्हे की जोड़ के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर उनकी जगह कृत्रिम अंग (प्रोस्थेटिक्स) का प्रत्यारोपण कर दिया जाता है जिससे जोड़ों की सक्रियता को बनाये रखने में मदद मिलती है। इस सर्जरी से जोड़ के आसपास के किसी भी कटे-फटे लिगामेंट की भी मरम्मत की जाती है जिससे इम्प्लांट को सहारा देने में मदद मिलती है और सामान्य हलचल को बनाये रखने में मदद मिलती है। डाॅ. वैश्य ने कहा कि युवा रोगियों के मामले में सक्रिय जिंदगी बिताने के लिए स्थिरता एवं स्थायित्व दो महत्वपूर्ण मुद्दे होते है। ऐसे में आधुनिक तकनीक से लैस कूल्हे का प्रत्यारोपण सबसे कारगर इलाज उभरकर सामने आया है। आजकल डुएल मोबिलिटी हिप ज्वाइंट सिस्टम और मिनिमली इनवैसिव सर्जरी आधुनिक तकनीकों ने प्रत्यारोपण को आसान कर दिया है। उन्होंने बताया कि डुएल मोबिलिटी सिस्टम की शुरुआत होने से हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को नया आयाम मिला है। इसमें दो बातें बहुत महत्वपूर्ण है, पहला, आर्टिकुलेशन से सभी दिशाओं में गतिशीलता दी जा सकती है और दूसरा, पारम्परिक डिजाइन के मुकाबले कृत्रिम ज्वाइंट में घिसाव कम होगा। हिप सिस्टम को एक्स 3 प्रौद्योगिकी के साथ पेटेंट कराया गया है। एक्स 3 पहली ऐसी उच्च क्राॅस लिंक पाॅलीइथिलीन है जो पारम्परिक हिप रिप्लेसमेंट प्रत्यारोपण के प्रमुख मुद्दों को हल करती है। प्रत्यारोपण में इस्तेमाल किया जाने वाला पाॅलीइथिलीन कमजोर नहीं होता और यह बेहतरीन स्थायित्व प्रदान करता है। इसे बनाने में लागत भी कम आती है और इसका प्रत्यारोपण काफी बेहतर है।
मौजूदा समय में एमआईएस (मिनिमली इनवैसिव सर्जरी) की मदद से टोटल हिप रिप्लेसमेंट किया जाने लगा है जिससे अधिक उम्र के लोगों में भी कूल्हे को सफलतापूर्वक बदलना संभव हो गया है। मिनिमली इनवेसिव सर्जरी में क्षतिग्रस्त अंगों की जगह नए कृत्रिम अंग लगाने के लिए शल्य चिकित्सक केवल एक छोटा-सा चीरा लगाते हैं और चीरे के जरिए ही कृत्रिम अंग यानी प्रॉस्थेसिस को क्षतिग्रस्त अंग की जगह पुनः स्थापित कर देते हैं। डॉ. वैश्य ने बताया कि भारत में कूल्हे एवं घुटने के प्रत्यारोपण को बदलने की सर्जरी में कम्प्यूटर नेविगेशन तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है। इस तकनीक की मदद से आपरेशन किये जाने पर मरीज के साथ जटिलताएं उत्पन्न होने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है। मरीज को तेजी से स्वास्थ्य लाभ होता है और वह शीघ्र सामान्य कामकाज करने लगता है। इस तकनीक में मरीज एक्स-रे अथवा सीटी स्कैन जैसी मशीनों के विकिरण के संपर्क में आने से बच जाते हैं। यह तकनीक आपरेशन को न केवल अधिक कारगर, सटीक और सुरक्षित बनाती है बल्कि इसमें समय भी कम लगता है तथा मरीजों को आपरेशन के दौरान कम से कम परेशानी उठानी पड़ती है।