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मानव सेवा से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखा रहा है उज्जैन का सेवाधाम आश्रम

मानव सेवा से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखा रहा है उज्जैन का सेवाधाम आश्रम

उज्जैन 09 जनवरी (वार्ता) भगवान शिव, श्री कृष्ण और भगवती दुर्गा, काल भैरव की नगरी उज्जैन में सैकड़ों अनाथों, अपाहिजों, वंचितों एवं शोषितों की सेवा का एक मंदिर मानव सेवा से प्रभु प्राप्ति का संदेश दे रहा है जहां प्रेम आत्मीयता एवं विश्वास की ज्योति से मनुष्यता की अलख जागृत है।

उज्जैन से करीब 20 किलोमीटर दूर अंबोदिया में गंभीर नदी पर बांध के समीप करीब 14 बीघा के क्षेत्र में बने इस सेवाधाम आश्रम में करीब 700 बेसहारा, विक्षिप्त, अर्द्धविक्षिप्त, एचआईवी पीड़ितों, बलात्कार पीड़िताएं, उनकी संतानें, घरों से निकाल दिये गये वृद्ध पुरुष एवं महिलाएं ना केवल भोजन, वस्त्र एवं आश्रय पा रहे हैं बल्कि विभिन्न प्रकार की कलाएं सीख कर अपने जीवन को एक अर्थ भी दे रहे हैं।

बड़े व्यापारी एवं उद्योगपति घराने में जन्म लेने के बावजूद अपने पारिवारिक पेशे को ठुकरा कर और डॉक्टर बनने का सपना छोड़ कर मानव सेवा के लिए जीवन समर्पित करने वाले सुधीर भाई गोयल ने लगभग 32 वर्ष पूर्व सेवाधाम की स्थापना की और एक पिता की तरह आठ हजार से अधिक लोगों के जीवन को सहारा प्रदान किया। देश के जाने माने पोद्दार उद्योग घराने से ताल्लुक रखने वाली उनकी भार्या कांता देवी और उनकी पुत्रियां मोनिका एवं गौरी भी आश्रम में साधारण तरीके से बनी कुटी में सुधीर भाई के साथ रहतीं हैं और उनका सहयोग करतीं हैं।

सुधीर भाई और कांता देवी ने आश्रम में रहने वाले अनाथ बच्चों को उनके माता पिता के तौर पर अपना नाम दिया है। साढ़े तीन सौ से अधिक लोगों के आधार कार्ड में माता पिता के रूप में उनका नाम अंकित है। उन्होंने 52 से अधिक लड़कियों का विवाह कराके उनकी गृहस्थी बसायी। ये लड़कियां तीज त्योहारों पर मायके की तरह आश्रम आतीं हैं और उन्हें उसी तरह से प्रेम एवं सम्मान मिलता है। सरकार के सहयोग के बिना ही मानव सेवा की उनकी यात्रा अनवरत जारी है। सेवा के इस अद्भुत प्रकल्प में अपने एकमात्र पुत्र अंकित और पिता की असमय मृत्यु, इकलौती बहन की पति के क्रूर हाथों हत्या, 1979 में पंचमढ़ी में वंचित बच्चों की जीवन रक्षा में अपनी बांयी आंख की रोशनी खो देने के बाद भी वह अपने ध्येय से विचलित नही हुए।

महान संत श्री रणछोड़दास जी महाराज के शिष्य सुधीर भाई और सेवाधाम आश्रम के पुण्य कार्यों के प्रशंसकों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, सत्यनारायण जटिया, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल, मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचन्द गेहलोत, पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सौलंकी, पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा, पूर्व राज्यपाल उर्मिला सिंह शामिल रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा और दिग्विजय सिंह और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह सहित अनेक जननेताओं ने भी ‘सेवाधाम आश्रम को देखा एवं सुधीर भाई द्वारा किये जा रहे मानव सेवा की सराहना की है। इनमें से अनेक नेताओं ने बहुत से पीड़ितों को मदद के लिए आश्रम भेजा है और सुधीर भाई ने उनकी सेवा भी की है।

बाबा आम्टे और फिर मदर टेरेसा से प्रेरित होकर मानवसेवा के इस कंटीले मार्ग को चुनने वाले सुधीर भाई की पवित्र भावनाओं की गवाही आश्रम परिसर में रहने वाले पशु-पक्षी भी देते हैं। वानर समूह, कौवे तोते आदि पक्षी सुधीर भाई की आवाज सुन कर भोजन पाने के लिए तुरंत आ जाते हैं और उनके हाथों से अनुशासित होकर भोजन ग्रहण करते हैं। गौशाला में डेढ़ सौ से अधिक गायें उन्हें देख कर आकर्षित होकर रंभाना शुरू कर देतीं हैं और बछड़े बछिया उन्हें घेर लेते हैं और प्यार से चाटने लगते हैं। उनका मानना है कि जब ईसाई मिशनरियां दीन दुखियों की सेवा के कार्यों को कर सकते हैं तो भारतीय संस्थाएं क्यों नहीं कर सकतीं हैं। उनके आश्रम में प्रतिदिन सुबह शाम रामधुन का गान एवं कीर्तन हाेता है।

कुल जमा तीन श्वेत वस्त्र धारण करने वाले सुधीर भाई असीम धैर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति की प्रतिमूर्ति दिखते हैं। उनके सेवाधाम आश्रम को देश के विभिन्न प्रतिष्ठित सम्मान मिले हैं। सर्वश्रेष्ठ संस्था के रूप में केन्द्रीय सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वयोश्रेष्ठ सम्मान, मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिव्यांग सेवा हेतु महर्षि दधिचि अवार्ड, भयाजी दाणी अवार्ड, ग्राड फ्रे फिलिप, स्वामी राम अवार्ड, महावीर अवार्ड से सम्मानित किया। इसके साथ ही साथ संस्था को 300 से अधिक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय संस्थाओं द्वारा सराहा एवं सम्मानित किया गया है।

सुधीर भाई ने यूनीवार्ता से बातचीत में अपनी जीवन यात्रा का विवरण साझा किया। अपने बचपन को याद करते हुए वह कहते हैं कि उन्हें सेवा एवं अनुशासन के संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिले जिन्हें उज्जैन में महाकाल शाखा में उन्होंने बाल्यकाल में ग्रहण किया। उन्होंने बताया कि उनके नाना गोपालदास जी मथुरावाले स्वतंत्रता सेनानी थे। जबकि उनके मामा विक्षिप्त थे और उनकी बड़ी दादी शारीरिक-मानसिक-दिव्यांग थीं। वृद्ध नाना एवं विक्षिप्त मामाजी के साथ अपने एक मित्र के दिव्यांग भाई की असहनीय पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती थी। इसी से उन्हें उन जैसे लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा जगी। इसी बीच स्वामी विवेकानंद, महावीर स्वामी और महात्मा गांधी के विचारों के पठन पाठन से उनके मन में संकल्प बना। इसी के फलस्वरूप 13 वर्ष की बाल्यावस्था में वर्ष 1970 में उज्जैन जिले के घट्टिया तहसील के ग्राम अजनोटी में स्वामी विवेकानंद मण्डल की स्थापना कर बच्चों की शिक्षा हेतु ग्राम विद्यालय की स्थापना की। विद्यालय के खर्च के लिए उन्होंने पिता की दुकान के गल्ले से पैसे भी चुराए और मार भी खाई। लेकिन सही बात का पता चलने पर पिता ने प्रोत्साहित भी किया।

सुधीर भाई ने बताया कि विनोबा भावे से मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। दरअसल पहले वह डॉक्टर बनकर दूरस्थ वनवासी क्षेत्र में सेवा कार्य करना चाहते थे। वर्ष 1976 में महात्मा गांधी की निजी चिकित्सक डाॅ. सुशीला नैय्यर के माध्यम से वर्धा स्थित गांधी मेडिकल काॅलेज में उन्हें प्रवेश मिला। लेकिन एक दिन वह अचानक पवनार पहुंचे, आचार्य विनोबा भावे के आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त कर अपना सम्पूर्ण जीवन ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में उपेक्षित, वंचित, तिरस्कृत-बहिष्कृत दिव्यांग वर्ग को समर्पित करने का प्रण ले लिया।

उन्होंने बताया कि विनोबा भावे के संपर्क में आने के बाद अनेक सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से दूरस्थ आदिवासी ग्रामीण-श्रमिक झुग्गी झोपड़ी और गंदी बस्तियों में निराश्रित-मरणासन्न, निःशक्त वृद्धों, मनोरोगियों निःसहाय, असहाय, पीड़ित, शोषित वर्ग की सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन और सद्भाव से संबंधित पंच सूत्रीय प्रकल्पों को लेकर 1986 में उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की और कुष्ठधाम हामूखेड़ी में नारकीय जीवन जी रहे महारोगियों की पीड़ा को समझा। उन्होंने सामाजिक विरोध के बीच मरणासन्न लकवा पीड़ित कुष्ठरोगी नारायण को अपने ऑफिस गैरेज में लाकर अंतिम सांस तक उसके घावों की मरहम पट्टी के साथ सेवा की।

सुधीर भाई ने कहा कि उज्जैन में एक संस्थागत कार्यक्रम में 13 मार्च 1987 को मदर टेरेसा और 1988 में बाबा आमटे से हुई मुलाकात के बाद उन्होंने सभी प्रकार के सुख और वैभव को छोड़कर उज्जैन से 15 किलोमीटर दूर ग्राम अम्बोदिया में 14 बीघा भूमिदान देकर आश्रम की स्थापना की जो आज पीड़ित मानवता की सेवा के क्षेत्र में ‘अंकित ग्राम’ सेवाधाम आश्रम की स्थापना की जिसने जल संरक्षण और पर्यावरण के क्षेत्र में अपने कार्यों से देश विदेश में सराहना हासिल की।

उन्होंने सेवा की इस यात्रा में घर परिवार में सामाजिक चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी ससुराल के पक्ष से उन्हें इस बात का बेहद दबाव झेलना पड़ा कि वह कोई बड़ा उद्योग या कारोबार शुरू करें लेकिन उन्होंने इस दबाव को स्वीकार नहीं किया। वह अपनी सहधर्मिणी के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं कि कांता देवी ने उनका बहुत साथ दिया। इसी से उनकी यात्रा सुगम हो सकी। वर्ष 1984 में जन्मे उनके पुत्र अंकित की सात वर्ष की अवस्था में ही देहांत हो गया। जिसकी स्मृति उन्हें आज भी ताजा है। उन्होंने सेवाधाम आश्रम में बने आश्रय स्थलों के समूह को अंकित ग्राम का नाम दिया है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1994 में उन्होंने वस्त्र त्याग दिये और शरीर पर केवल तीन श्वेत वस्त्र धारण करना शुरू किया।

सुधीर भाई ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2000 में सदी के भीषणतम कच्छ-भुज में आए भूकम्प के समय सेवाधाम आश्रम के माध्यम से क्षत विक्षत शवों के अंतिम संस्कार के साथ ही अंजार, पीरवाड़ी शिविर में पीड़ितो की सेवा के अतिरिक्त अंजार और इन्द्रप्रस्थ में शारीरिक पुनर्वास केन्द्र की स्थापना की। सेवा के इस कार्य के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखकर सेवा कार्य की प्रशंसा की और उज्जैन प्रवास आने पर सेवाधाम आश्रम आने का आश्वासन दिया।

उन्होंने कहा कि सेवाधाम आश्रम ने जल संकट से निपटने के लिए वर्ष 1994-95 से 2004-05 के दौरान व्यापक स्तर पर जिला प्रशासन और जनसहयोग से शिप्रा श्रमदान अभियान का संचालन किया और हजारों टन मलबा साफ किया। इस अभियान में धर्माचार्यों, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संस्थाओं, प्रबुद्धजनों, व्यापारियों के साथ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने सहभागिता की। वह याद करते हैं कि उनके गुरू महान संत रणछोड़दास जी महाराज ने कई वर्ष उनके आश्रम में व्यतीत करके उन्हें आशीष दिया।

वह बताते हैं कि आश्रम में अब तक 8000 से अधिक निराश्रित-मरणासन्न पीड़ितों एवं निःशक्तजनों को सहारा मिला है। तीन हजार से अधिक हिन्दू,मुस्लिम, बोहरा, सिक्ख एवं ईसाई समाज के पीड़ितों की मृत्यु होने पर उनके धर्मानुसार अंतिम संस्कार किया गया। आश्रम में 40 हजार वर्गफुट में अवेदना केन्द्र ‘‘हाॅस्पाईस’’ का निर्माण कराया गया। दिव्यांगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पुनर्वास एवं कल्याण कार्यक्रम चलाया गया है। कुष्ठ सेवा केन्द्र के अंतर्गत वृद्ध संरक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है। महिलाओं और बच्चों हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। ढाई सौ से अधिक नेत्र एवं स्वास्थ्य शिविर के आयोजन हो चुके हैं। निराश्रित, परित्यक्ता एवं विधवा महिलाओं का विवाह और पुनर्वास किया जाता है। नशीले पदार्थों एवं घातक बीमारियों के विरूद्ध जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। मानसिक एवं शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों हेतु अंकित विनय विहार सेवाधाम की स्थापना की गयी है। इसके अलावा परिवार समन्वय सेवाओं एवं साम्प्रदायिक सद्भाव के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं।

सेवाधाम आश्रम के न्यास के निवर्तमान अध्यक्ष जाने माने पत्रकार वेदप्रताव वैदिक हैं। आश्रम की भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर सुधीर भाई ने बताया कि वह करीब 400 बिस्तरों वाले एक सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल खोलना चाहते हैं। अपने जीवन की सार्थकता एवं परिपूर्णता के बारे में एक सवाल पर सुधीर भाई सजल नेत्रों एवं भावुक स्वरों में इतना ही कह पाये, “ऐसे बेसहारा, बीमार और पीड़ितों की सेवा सुश्रुषा करके जब उनके मुरझाए चेहरे पर जो मुस्कान आती है उसीमें मुझे मेरे प्रभु के दर्शन होते है।”

सचिन, उप्रेती

वार्ता

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