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लोकरुचि


मथुरा में गिर्राज जी की तलहटी में नववर्ष पर अनूठा छप्पन भोग

मथुरा में गिर्राज जी की तलहटी में नववर्ष पर अनूठा छप्पन भोग

मथुरा, 29 दिसम्बर (वार्ता) बृज नगरी में गिर्राज जी की तलहटी में नववर्ष की पूर्व बेला में 31 दिसम्बर को एक अनूठे छप्पन भोग का आयोजन किया जा रहा है।

वैसे तो गिर्राज जी की तलहटी में छप्पन भोग का आयोजन कोई नई परंपरा नही है क्योंकि ब्रजभूमि में तो समय-समय पर छप्पन भोग लगते ही रहते हैं और अनन्त चतुर्दशी के बाद से छप्पन भोग आयोजनों की होड़ सी लग जाती है, लेकिन यह छप्पन भोग कई मायनो में अनूठा है। यह छप्पन भोग जम्मू के तपस्वी संत बालक योगेश्वर महराज द्वारा पिछले सात साल से गिर्राज जी की तलहटी में राधाकुंड में उस स्थल पर आयोजित किया जा रहा है जहां पर श्यामाश्याम ने बात-बात में दो कुंण्डों की स्थापना द्वापर में कर दी थी और ये दोनो कुंड एक दूसरे से न केवल मिले हुए है बल्कि दोनो कुंडो को मिलने वाले उस पावन स्थल को संगम कहा जाता है। यह आयोजन सैनिक शहीदों की स्मृति में किया जा रहा है।

छप्पन भोग के आयोजक बालक योगेश्वर महाराज ने आज यहां बताया कि देश के लिए बलिदान देनेवाले सेना के अमर शहीदों की स्मृति में यह पिछले सात साल से न केवल शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जाता है, बल्कि शहीद परिवारों को यह अहसास कराने के लिए भी किया जाता है कि ठाकुर जी का अब उन्हें आशीर्वाद मिल गया है । इसलिए उनके जीवन में अब बाधाएं फूल बनकर आएंगी क्योकिं ’’तुम साथ हो जेा मेरे किस बात की कमी है’’। उनका कहना था कि इसका प्रत्यक्ष अनुभव कराने के लिए ब्रजवासियों के साथ उनके द्वारा गिर्राज की सप्त कोसी परिक्रमा का कार्यक्रम भी हर साल रखा जाता है। योगेश्वर महाराज ले बताया कि छप्पन भोग वास्तव में एक सामूहिक आराधना का पर्व है । मान्यता है कि सात वर्ष के कान्हा ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली में सात दिन रात-दिन धारण कर न/न केवल इन्द्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी। इतना ही नहीं गोवर्धन पर्वत को उठाने में ब्रजवासियों को भी उन्होंने इसलिए शामिल किया था कि वे इसके माध्यम से यह संदेश भी देना चाहते थे कि सामूहिक रूप से किये गए कार्य में सफलता निश्चित होती है। इसलिए हर व्यक्ति को समाज से हमेशा जुड़े रहने का प्रयास करना चाहिए। इन्द्र का मान मर्दन करने के बाद कन्हैया ने छप्पन भोग को सामूहिक आराधना का पर्व उस समय बनाया था जब उन्होंने ब्रजवासियों से गिर्राज का पूजन करने केा कहा था । ब्रजवासी अपने अपने घर से नाना प्रकार के व्यंजन बनाकर लाए थे। उस समय व्यंजनों की संख्या 56 हो गई थी इसलिए इसे छप्पन भोग कहा जाने लगा।

इस छप्पन भोग की एक अन्य विशेषता के बारे में कार्यक्रम के संयोजक समाजसेवी निर्भय गोस्वामी ने बताया इसमें 108 टन का जो भोग लगाया जाएगा उसमें देश के विभिन्न भागों में उपलब्ध फलों की मात्रा बहुत अधिक होती है, क्योंकि फल का ठाकुर का प्रसाद बहुत अधिक फलदायक माना जाता है। इसके अलावा इसमें नाना प्रकार की मिठाइयां होती हैं। इस छप्पन भोग की विशेषता यह भी है कि इसे राधाकुड में आए शहीद सैनिक परिवारों तथा अन्य सामान्य लोगों में वितरित किया जाता है।

उन्होंने बताया कि कार्यक्रम की शुरूवात आज कन्या पूजन से हो गई है। 30 दिसम्बर को हवन होगा तथा 31 दिसम्बर की शाम छप्पन भोग का आयोजन किया जाएगा। नये साल के पहले दिन राधाकुंड आए दर्जनों सैनिक परिवार ब्रजवासियों के साथ गिर्राज जी की सप्तकोसी परिक्रमा देंगे। उनका यह भी कहना था कि जिन सैनिकों ने देश के लिए कुर्बानी दी उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का यह कार्यक्रम आगे भी जारी रहेगा। ब्रजवासियों में भी इस कार्यक्रम के लिए बहुत अधिक जोश है राधाकुड नई नवेली दुल्हन की तरह सजने लगा है तथा राधाकुंड का छप्पन भोग स्थल कृष्णमय हो गया है।

सं त्यागी

वार्ता

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