नयी दिल्ली 30 दिसंबर (वार्ता) भारतीय पूँजी और सर्राफा बाजार 2015 में लगभग पूरे साल अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के दबाव में रहा, लेकिन वास्तव में जब अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ीं तो बाजार में अफरा-तफरी की जगह तेजी दर्ज की गयी। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस साल जनवरी में हुई बैठक के बाद जारी बयान में यह कह कर उम्मीदों का बाजार गर्म कर दिया कि सरकारी कोष की ब्याज दरों में बढ़ोतरी ‘मौजूदा अनुमानों से कहीं पहले की जा सकती है।’ मार्च के बयान में उसने सिर्फ इतना कहा कि अप्रैल में दरों में बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। अप्रैल, जून, जुलाई और सितंबर की बैठकों में कोई स्पष्ट संकेत दिये बिना वह कहती रही कि दरें बढ़ाने से पहले वह अर्थव्यवस्था में और सुधार का इंतजार कर रहा है। फेड रिजर्व ने जनवरी के बाद भले ही ब्याज दर बढ़ाने के बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन इस बीच कयासों का बाजार इस प्रकार हिचकोले खाता रहा कि इसका असर दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत पर भी देखा गया। जैसे-जैसे समय गुजरता गया विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पूँजी बाजार से पैसा निकालने का सिलसिला तेज करते रहे। साल के पहले चार महीने में अप्रैल तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शेयरों तथा डेट में कुल 94307.90 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, लेकिन अगले आठ महीने में उन्होंने 29537.74 करोड़ रुपये निकाल लिये। इस प्रकार 29 दिसंबर तक पूरे साल का उनका शुद्ध निवेश घटकर 64770 करोड़ रुपये (1076.34 करोड़ डॉलर) रह गया। मई से दिसंबर तक आठ महीने के दौरान छह महीने उनकी बिकवाली लिवाली से ज्यादा रही। अजीत .शेखर जारी (वार्ता)