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हम क्यों जगदगुरू थे, इसका चिन्तन होना चाहिये-टंडन

हम क्यों जगदगुरू थे, इसका चिन्तन होना चाहिये-टंडन

उज्जैन 02 दिसम्बर (वार्ता) मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा कि हम उस परम्परा के वारिस है, जिसने भारत को जगदगुरू बनाया है। संस्कृत को जीवित रखने के प्रयास होना चाहिये। हमारी सम्पूर्ण संस्कृति संस्कृत में ही है। हम क्यों जगदगुरू थे, इसका चिन्तन होना चाहिये।

श्री टंडन आज यहां महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय का प्रथम दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की जो उपलब्धियां हैं, उसका उद्भव संस्कृत भाषा से हुआ है। महर्षि पाणिनी पर हमें गर्व होना चाहिये। दुनिया यह जानती है कि भारत ने ही सबसे पहले शल्य चिकित्साशास्त्र दिया। यह निर्विवाद है कि आचार्य सुश्रुत ने सर्जरी में सबसे मुश्किल विद्या प्लास्टिक सर्जरी को जन्म दिया। हमारे पूर्वजों ने विश्व को शून्य एवं दशमलव का अविष्कार करके दिया।

उन्होंने कहा कि संस्कृत जितनी सिकुड़ती गई उतनी ही हमारी संस्कृति पीछे जाती रही है। संस्कृत और हिन्दी में परस्पर सामंजस्य होना चाहिये। जो संस्कृत में कहा जा रहा है, वह हिन्दी में अनुवादित होना चाहिये। राज्यपाल ने कहा कि उज्जैन के सान्दीपनि गुरू ने गुरूकुल शिक्षा पद्धति दुनिया को दी है। कृष्ण भगवान वेदान्त के ज्ञाता होने के बाद भी कृषि और गोपालन के ज्ञाता थे। हमारी शिक्षा पद्धति श्रुति व स्मृति से जुड़ी रही है, इसी कारण अनेक कालों में हमारे विचार नष्ट नहीं हो सके। संस्कृत भाषा पढ़ने का मतलब यह है कि हम अपनी धरोहर की रक्षा कर रहे हैं। नव-दीक्षित संस्कृत के विद्यार्थियों पर यह दायित्व है कि वे संस्कृत साहित्य की रक्षा करें और इसे आगे बढ़ायें।

प्रथम दीक्षान्त समारोह में राज्यपाल ने विभिन्न पीएचडी स्नातकोत्तर एवं स्नातक उपाधि प्राप्तकर्ता छात्रों, स्वर्ण पदक प्राप्तकर्ता छात्रों, रजत एवं कांस्य पदक प्राप्तकर्ता छात्रों को उपाधि एवं पदक प्रदान किये। इस अवसर पर उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी, दीक्षान्त समारोह की सारस्वत अतिथि प्रो.उमा वैद्य सहित गणमान्य अतिथि मौजूद थे।

सं नाग

वार्ता

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