श्रीनगर 12 जुलाई (वार्ता) ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने शुक्रवार को कहा कि संगठन जम्मू-कश्मीर के लोगों की सम्माान की रक्षा की विरासत को कायम रखेगा और उनकी आकांक्षाओं को साकार करने का प्रयास करेगा।
यहां ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में आज सभा को संबोधित करते हुए श्री फारूक ने कहा कि वे 13 जुलाई, 1931 को मारे गए लोगों के छोड़े गए संघर्ष का शांतिपूर्ण अंत चाहते हैं।
गौरतलब है कि 13 जुलाई, 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर हुए विरोध प्रदर्शन में कम से कम 22 नागरिक मारे गए थे। यह विरोध तब शुरू हुआ जब लोगों को अब्दुल कादिर की अदालती कार्यवाही में शामिल होने से रोक गया, जिस पर राजशाही के खिलाफ उग्र भाषण देने के लिए मुकदमा चलाया गया था।
जम्मू-कश्मीर में पिछले कई वर्षों से 13 जुलाई को 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है और इस दिन राजकीय अवकाश होता है, लेकिन अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद सरकार ने 'राजकीय अवकाश' का दर्जा खत्म कर दिया। तब से, पुराने शहर में कब्रिस्तान में कोई राजकीय समारोह आयोजित नहीं किया जाता है और न ही तोपों की सलामी दी जाती है, जैसा कि पहले होता था।
श्री उमर ने 1931 में मारे गए लोगों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी और कहा कि ये लोग उस समय के तानाशाह के खिलाफ खड़े हुए और न्याय के मार्ग पर और प्रदेश के लोगों के अधिकारों का दावा करने और उनके सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
उन्होंने कहा कि उनकी वीरता को हमेशा याद किया जाएगा। ‘शहीद-ए-मिल्लत मीरवाइज फारूक के समय से यह परंपरा थी कि शहीदों की कब्रगाह तक जुलूस उनके नेतृत्व में निकाला जाता था और उसके बाद इस अवसर को मनाने और शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक रैली आयोजित की जाती थी। मीरवाइज बनने के बाद भी यह परंपरा जारी रही, लेकिन अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण अब ऐसा कोई आयोजन संभव नहीं है। इसलिए आज एक दिन पहले जामा मस्जिद में हम इन शहीदों और उनके बलिदानों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
उन्होंने कहा, “हम हमेशा जम्मू-कश्मीर के लोगों की गरिमा की रक्षा और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने और संघर्ष को शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त करने की उनकी विरासत को कायम रखेंगे।”
सोनिया, उप्रेती
वार्ता