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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


बचाव वाले कैंसर से अधिक मर रही हैं महिलाएं

बचाव वाले कैंसर से अधिक मर रही हैं महिलाएं

(डॉ़ आशा मिश्रा उपाध्याय से)


नयी दिल्ली 26 जनवरी (वार्ता) चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौतीपूर्ण और सामाजिक संरचना के लिए बेहद घातक संकेत है कि देश में हर सात मिनट में एक महिला की मौत उस कैंसर से हो रही है जिससे आसानी से बचा जा सकता है। देश की आधी आबादी सबसे अधिक सर्वाइकल(गर्भाशय) कैंसर के कारण काल के गाल में समा रही हैं जबकि विश्वभर में प्रति वर्ष करीब दो लाख 66 हजार महिलाएं इस कैंसर का ग्रास बन रही हैं। विश्व स्वाथ्स्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की कम्युनिकेशंस अधिकारी लॉरा स्मींकी के अनुसार पिछले 30 वर्षों के दौरान समय से जांच और इलाज के कारण विकसित देशों में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों में कमी आयी है जबकि विकासशील देशों में यह स्थिति विपरीत है। डब्ल्यूएचओ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और अन्य विकासशील देशों में इस कैंसर से सबसे अधिक महिलाएं मर रही हैं । इससे पहले स्तन कैंसर से इन देशों में सर्वाधिक महिलाओं की जान जा रही थी। लॉरा स्मींकी के अनुसार विश्वभर की महिलाओं की मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण सर्वाइकल कैंसर है। यह भी देखने वाली बात है कि विश्वभर में 15 से 44 वर्ष की उम्र वर्ग की महिलाओं की मौत का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है। हर साल सर्वाइकल कैंसर के पांच लाख 27 हजार 624 नये मामले सामने आ रहे हैं जिनमें दो लाख 65 हजार 672 महिलाओं की मौत हो जाती है। ग्लोबल भाटिया अस्पताल की स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डॉ़ इंदु भाटिया ने यूनीवार्ता से आज कहा, “यह बहुत ही अफसोस की बात है कि जिस बीमारी से 100 प्रतिशत तक बचा जा सकता है वही बीमारी हमारी महिलाओं की जान ले रही है। इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। एक तरफ हम गरीबी और अशिक्षा को इसका कारण मान सकते हैं तो दूसरी तरफ अपने स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं की सदियों पुरानी लापरवाह और टालमटोल की आदत को भी दोष दे सकते हैं। हां, इस बीमारी के प्रति जागरुकता की कमी भी इसके मुख्य कारणों में से एक है।”


           डा भाटिया ने कहा कि इस बीमारी से बचने के लिए काफी उन्नत तकनीक और वैक्सीन आसानी से उपलब्ध हैं। दशकों पहले इस कैंसर की चपेट में 45 की उम्र की बाद की महिलाएं आती थीं लेकिन अब कम उम्र की युवतियां भी इसका शिकार हो रही है। उन्होंने कहा, “हम चिकित्सकों की सलाह है कि 35 साल की हर महिला को एक बेहद अासान और कम खर्चीली जांच ‘पेपस्मीयर’ करा लेना चाहिए। इस जांच की खास बात यह है कि ग्रीवा(सर्विक्स) की कोशिकाओं की बनावट और उसमें आये बदलाव से तीन साल बाद होने वाले कैंसर के बारे में भी पता चल जाता है। इस जांच से हम मालूम कर सकते हैं कि क्या तीन साल बाद कोशिकाओं का यह बदलाव भयंकर सर्वाइकल कैंसर का रूप ले सकता है। एक बार इस जांच को कराने के बाद किसी तरह की गड़बड़ी नहीं पायी गयी तो हर तीन साल में इसे दोहराना चाहिए। ” उन्होंने कहा कि आजकल उन्नत किस्म की पेपस्मीयर जांच पद्धति विकसित हो गयी जिससे लिक्वीड बेस्ड साइटोलाॅजी (एबीसी) और ह्यूमन पैपिलोमा वायरस(एचपीबी) की जांच एक साथ हो जाती है। पेपस्मीयर जांच में किसी तरह की शंका होने पर कॉल्पोस्कोपी और बायोप्सी की जाती है। इन जांचों में इस कैंसर की प्रारंभिक अथवा प्री कैंसरर्स अवस्था की जानकारी मिल जाती है और समुचित इलाज से इससे बचा जा सकता है। डाॅ़ भाटिया ने कहा, “सुकून देने वाली बात है कि सर्वाइकल कैंसर के लिए वैक्सीन भी आ गयी है। इसे 10 से 45 साल की उम्र में तीन चरणों में लगाया जाता है। अमेरिकी फूड एडं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने तीन वैक्सीन गारडसिल ,गारडसिल 9 और सरवरिक्स को स्वीकृति दी है। पहली वैक्सीन लगाने के एक माह के बाद दूसरी लगायी जाती है और पांच माह के बाद तीसरी वैक्सीन लगायी जाती है। वैक्सीन लगाने के बाद सर्वाइकल कैंसर की 90 प्रतिशत आशंकाएं खत्म हो जाती हैं। लेकिन वैक्सीन लगाने के बाद भी पेपस्मीयर की रूटीन जांच जरूरी है। महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वैक्सीन के बीच में वे मां बनने की तैयारी नहीं करें इससे बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है।” डाॅ़ भाटिया ने कहा,“ तीनों वैक्सीन लगाने का कुल खर्चा छह हजार रुपये आता है और पेपस्मीयर जांच में करीब एक हजार से 12 सौ रुपये लगते हैं। लड़कियों और महिलाओं पर यह खर्च जीवन का एक अावश्यक अंग बन जाये तो हम अपने देश से सर्वाइकल कैंसर को खदेड़ सकते हैं। लेकिन बेहद चिंता की बात है कि कई कारणों से ऐसा नहीं हो रहा है। गरीब और अशिक्षित महिलाओं की बात अगर हम छोड़ भी दें तो अमीर और शिक्षित महिलाएं भी इसके लिए कहां सामने आ रहीं हैं ? हम अगर उन्हें एक बार कहते हैं कि आप ये जांच करवा लें तो वे इसको हल्के में लेती हैं। जब तक महिलाओं में इसको लेकर जागरुकता और प्रतिबद्धता नहीं आयेगी तब तक वे डाॅक्टरों की सलाह को टालती रहेगीं। हम उन्हें एक बार कह सकते हैं ,दूसरी बार कहने पर शायद उन्हें यही लगता है कि इसमें जरुर डॉक्टर का हित छिपा है। वे अपनी सुरक्षा को दरकिनार करके मौज -मस्ती में व्यस्त हो जाती हैं क्योंकि इस कैंसर के काेई खास लक्षण नहीं होते हैं और जो लक्षण हैं उनके बारे में उन्हें को मालूम नहीं होता।” यह पूछने पर कि इस कैंसर से बचाव के लिए क्या कदम उठाने होगें ,उन्होंने कहा, “ मेरा तो मानना है कि सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन को पोलियो की वैक्सीन की तरह अनिवार्य किये जाने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है। सरकारी अस्पतालों में पेपस्मीयर से लेकर इससे संबंधित सभी जांच मुफ्त की जाती हैं। महिलाओं के कुछ वर्ग में लापरवाही का आलम यह है कि पेपस्मीयर जांच में कुछ गड़बड़ी आने पर उन्हें पत्र भेजकर भी बुलाया जाता है तो वे दूसरी बार जांच के लिए नहीं आती । एेसा इसलिए है क्योंकि वे इस बात से अंजान है कि वे अपनी जान से खेल रही हैं। नहीं तो जान किसे नहीं प्यारी है।” उन्होंने कहा कि कम में उम्र में शादी, एक से अधिक व्यक्ति से यौन संबंध और अधिक बच्चे पैदा करने से इस कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। अनियमित, दुर्गंधयुक्त एवं डाॅट के रूप में मासिक आना और रजस्वा के बाद भी खून निकलना इसके कुछ लक्षण हो सकते हैं।


       बालाजी एक्शन अस्पताल की सीनियर डॉक्टर एस के दास ने कहा, “चार फरवरी को अंतरराष्ट्रीय कैंसर दिवस मनाया जाता है लेकिन न तो हमारे देश में कैंसर के मामलों में कमी आ रही है और न ही लोगों में जागरुकता देखी जा रही है। मेट्रो सिटी में जहां देर से शादी, स्तनपान से परहेज आैर खराब जीवन शैली के कारण स्तन कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं वहीं गरीब ,ग्रामीण और अशिक्षित महिलाएं गर्भाशय कैंसर की अत्याधिक शिकार हो रही हैं।” डॉ़ दास ने कहा कि भारत में जहां हर सात मिनट में एक महिला की मौत सर्वाइकल कैंसर से हो रही है वहीं हर 10 मिनट एक महिला स्तन कैंसर के कारण दम तोड़ रही है। दोनों कैंसर ऐसे हैं जिनके बारे में जागरुक रहने और समय से जांच कराये जाने पर बचाव हो सकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2025 तक इन कैंसरों से होने वाली मौतें बढ़ जायेंगी और हर 4़ 6 पर एक मौत सर्वाइकल कैंसर से और हर 6़ 2 मिनट पर एक मौत स्तन कैंसर से होगी। उन्होंने कहा कि विकसित देशों में भी यह कैंसर कम जानलेवा नहीं है। ब्रिटेन में हर रोज नौ महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का मामला सामने आ रहा है और इनमें से तीन की मौत हो जाती है। डॉ़ दास ने कहा कि गत वर्ष स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने राज्यसभा में कहा था कि देश की महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामले स्तन कैंसर से अधिक सामने आ रहे हैं। इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार गत दो वर्षाें में सर्वाइकल कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि डाॅ़ नड्डा ने घोषणा की थी कि गृह मंत्रालय ‘यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम’ में एचपीवी वैक्सीन को शामिल करने पर विचार कर रहा है। इस वैक्सीन से सर्वाइकल कैंसर के 80 प्रतिशत से अधिक मामलों पर पूर्ण विराम लग सकेगा। डॉ़ दास ने कहा “ डाॅक्टर नड्डा ने राज्यसभा में स्वीकार किया था कि हाल में अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन अलाएंस गैवी (जीएवीआई) ने भारत को इस वैक्सीन के लिए 50 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी थी। लेकिन अभी तक इस दिशा में उठाए गये सरकारी कदमों की आहट भी नहीं सुनायी नहीं दे रही है।” इस बीच जर्मनी की डॉ़ जॉहाना बडविग प्रोटोकॉल के तहत कैंसर की वैकल्पिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा से देश में कैंसर का इलाज करने वाले डॉ़ ओम प्रकाश वर्मा ने कहा कि महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर आम बीमारी होती जा रही है। डॉ़ वर्मा ने कहा,“ हमारे ‘बडविग वेलनेल सेंटर’ में भी सर्वाइकल कैंसर से ग्रसित महिलाएं अधिक आती हैं। अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल और विशेष विधि से तैयार पनीर तथा स्वस्थ आहार-विहार पर आधारित डॉ़ जॉहाना बडविग द्वारा विकसित प्राकृतिक उपचार से इस कैंसर में भी बहुत अच्छा नतीजा मिलता है। यदि उपचार लेने में रोगी कोई गलती नहीं करे तो 90 प्रतिशत सफलता मिलती है। यह उपचार कैंसर के मूल कारण,कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी पर काम करता है तथा सामान्य कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुँचाए, कैंसर कोशिकाओं को ऑक्सीजन से भर देता है।

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