नयी दिल्ली, 04 सितंबर (वार्ता) अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की उच्चतम न्यायालय में बुधवार को 19वें दिन की सुनवाई के दौरान एक मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि भगवान राम की मूर्ति को चबूतरा से हटा कर बीच वाले गुंबद के नीचे रख दिया गया था, ऐसे में ‘जन्म स्थान’ शब्द निरर्थक है।
मुस्लिम पक्षकार के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ को बताया कि हिंदुओं ने 1885 में रघुवर दास के महंत होने से इन्कार कर दिया था और बाद में स्वीकार कर लिया।
उच्चतम न्यायालय के समक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गयी हैं जिनके तहत अयोध्या की विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया गया था।
डॉ. धवन ने अपीलकर्ता इकबाल अंसारी पर हुए हमले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने पीठ से जब यह मसला सुलझाने को कहा तो उन्होंने अन्य न्यायाधीशों के साथ चर्चा के बाद कहा, “हम इस मामले को निश्चित तौर पर देखेंगे।”
अधिवक्ता ने इस पर विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि वह किसी पर आरोप नहीं लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अंसारी पर उनके दिल्ली स्थित उस मकान में हमला हुआ जिसमें एक ताला तक नहीं लगा हुआ था लेकिन हैरत की बात यह है कि अंसारी को पुलिस सुरक्षा मिलने के बाद भी उन पर हमला कैसे हुआ।
गौरतलब है कि इस विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने की सभी कोशिशें विफल रहने के बाद उच्चतम न्यायालय में गत छह अगस्त से रोजमर्रा के आधार पर इस मामले की सुनवाई की जा रही है।
यामिनी.श्रवण
वार्ता