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लोकरुचि


दीघा से दूर हो रहा विश्वप्रसिद्ध दूधिया मालदह आम

दीघा से दूर हो रहा विश्वप्रसिद्ध दूधिया मालदह आम

पटना 29 मई (वार्ता) शहरों के विस्तार के कारण अपनी मिठास और खुशूबू से सबका दिल जीतने वाले बिहार की राजधानी पटना के दीघा में विश्वप्रसिद्ध ‘दूधिया मालदह’ आम के बागीचे धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।

कभी पटना के दीघा ,कुर्जी और राजीव नगर में दूधिया मालदाह आम के बागों का साम्राज्य था। बीघा-बीघा खेत केवल इस आम के ही बगानों से भरे पड़े थे। ज्यादा बगान रहने के चलते उत्पादन भी जबर्दस्त होता था। सस्ते होने की वजह से खरीददारों में इसकी मांग भी काफी रहती थी। लेकिन, आज बगानों की जगह बड़े-बड़े भवनों ने ले ली है और ‘दूधिया मालदह’ के पेड़ कई इलाकों से गायब हो गए। बाजारवादी संस्कृति के चलते आम के बगानों की जगह अपार्टमेंट खड़े हो गए और इस अनोखे और स्वादिष्ट आम की पहचान आज मिटने के कगार पर है। सौ साल पहले लगाए गए पेड़ अब बूढ़े हो गए हैं। नए पेड़ उस अनुपात में लगाए नहीं गए। कुछ पेड़ हैं, जो दूधिया मालदह के वजूद को जिंदा रखे हुए हैं।

पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था तरुमित्र के संयोजक फादर रॉबर्ट एथिकल ने “यूनीवार्ता” को दूरभाष पर बताया कि प्रदूषण और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने के कारण दूधिया मालदह के पेड़ों पर भी संकट छाया है। तरूमित्र में मालदह आम के एक-दो पेड़ बचे हैं। उन्होंने कहा कि दीघा इलाके में तेजी से हुए भवन निर्माण के कारण दीघा मालदह के बागान और पेड़ बहुत ही कम हो गए हैं ,और जो बचे भी हैं वे लगातार तेजी से सूख रहे हैं। उन्होंने बताया कि पचास साल पहले जब वह पटना आये थे तब दीघा में चारो ओर मालदह आम की खूशबू फैला करती थी।

श्री एथिकल ने बताया कि संत जेवियर्स कॉलेज अहाते में के बगान में कभी करीब पांच सौ के करीब पेड़ थे। लेकिन कुछ ही बर्षों के करीब चार सौ पेड़ सूख गए। अब करीब 100-150 पेड़ ही बचे हुये हैं।उन्होंने कहा कि सरकार को दूधिया मालदह आम के संरक्षण पर गंभीरता से विचार करना चाहिये। आम की किस्में तो कई हैं लेकिन दीघा आम की बात ही कुछ और है।दीघा मालदह के पेड़ों को सूबे के दूसरे हिस्सों में भी बड़े पैमाने पर लगाने की जरूरत है। किसानों को अनुदान देकर इस दिशा में काम करने की जरूरत है।इन धरोहरों को बचाने के लिए हर लोगों को आगे आने की जरूरत है। दीघा की मिट्टी उर्वरक होने के साथ उपजाऊ भी है। ऐसे में आम की खेती करना आसान है लेकिन प्रदूषित वातावरण और प्राकृतिक आपदा का खामियाजा पेड़ों को भी भुगतना पड़ता है। इसके लिए कुछ काम जरूर करना होगा ताकि इसे आगे भी बचाया जा सके

आम को फलों का राजा कहा जाता है। मालदह की एक ख़ास किस्म राजधानी पटना के दीघा इलाके में उपजती है और इलाके के नाम पर ही इसका नाम भी दीघा मालदह है। कहा जाता है कि आम की इस अनोखी प्रजाति को दूध से सींचा गया था इसलिए नाम पड़ा दुधिया मालदह। दीघा में होने वाले मालदह आम की ख़ासियत यहां की मिट्टी की वजह से और ज़्यादा बढ़ जाती है। यहां की सोंधी और उपजाऊ मिट्टी मालदह आम की मिठास और खुशबू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वैसे तो बिहार में दूसरे राज्यों के आम भी आते हैं, लेकिन मालदह आम की मांग सबसे ज्यादा होती है। दूसरे राज्यों में भी इसकी आपूर्ति जाती है। बिहार के भागलपुर और कुछ अन्य जिलों में भी मालदह आम की पैदावार होती है, लेकिन दीघा घाट के दुधिया मालदह का स्वाद इससे काफी अलग होता है।

दीघा का मालदह आम अपने मिठास, खास रंग, गंध, ज्यादा गूदा और पतली गुठली और पतले छिलके के कारण मशहूर है। दीघा के मालदह आम की खुशबू और मिठास के दीवानें देश-विदेश तक फैले हैं।इस आम की खेप को विदेशों में भी भेजी जाती है। इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, राजकपूर सहित कई बड़ी शख्सियतों को दुधिया मालदह का स्वाद दीवाना बना चुका है। अंग्रेजी शासन के दौरान यहा से बड़े पैमाने पर दीघा का दूधिया मालदह लदन जाता था।

आजादी के बाद भी देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना के सदाकत आश्रम से बड़े पैमाने पर दूधिया मालदह दिल्ली भेजा जाता था। पूर्व प्रधानमत्री इंदिरा गाधी तो दीघा के दूधिया मालदह को विशेष रूप से पसद करती थीं।वर्ष 1952 में महान फिल्मकार राजकपूर और गायिका सुरैया भी दीघा के बगीचे में आए थे और टोकरी भर कर दूधिया मालदह मुंबई लेकर गए थे।दूधिया मालदह को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले कई प्रदर्शिनियों में पहला स्थान मिला। वर्ष 1997 में सिंगापुर में हुई आम प्रदर्शनी में पटना के दीघा आम की खुशबू ने पहला स्थान प्राप्त किया था।

देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद को दीघा मालदह बहुत पसंद था। जब वह दिल्ली में थे तो वे अक्सर दीघा मालदह को याद किया करते थे। वर्ष 1962 में वे पटना लौटे उस साल दीघा मालदह की बहुत अच्छी फसल हुई थी। सदाकत आश्रम के आगे काफी दूर तक सड़क के दोनों ओर आम के बगीचे थे। उस वक्त भी लोग बागानों से कच्चे आम तोड़वा कर लाते थे और उसे घर में कागज पर या चावल की बोरियों में रखकर पकाते थे। हर साल देश के प्रमुख मंत्रियों, नेताओं, उद्योगपतियों व सेलिब्रेटी को यहां से आम की खेप भेजी जाती है।जून का महीना आते ही पहले जिस लजीज आम की खुशबू बाजार में फैल जाती थी आज वो खुशबू धीरे-धीरे गायब हो रही है।


कहा जाता है कि लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन पाकिस्तान के इस्लामाबाद के शाह फैसल मस्जिद के इलाके से आम की इस खास प्रजाति का पौधा लेकर आए थे। नवाब ने दीघा रेलवे क्रॉसिंग एवं उसके आसपास के इलाके में मालदह आम के 50 से ज्यादा पेड़ लगाए थे। कहा जाता है कि नवाब साहब के पास बहुत से गायें भी थीं। जब इनका दूध बच जाता था तो उन्हें आम की जड़ों में डाल दिया जाता था। कुछ दिन बाद आम के पेड़ में फल आए तो उसमें से दूध जैसा पदार्थ निकला। इसके कारण आम का नाम दुधिया मालदह पड़ गया।

दीघा स्थित आम के बगीचों का कारोबार ठेके के आधार पर होता है। मंजर आने से पहले दवाओं का छिड़काव एवं देखभाल करनी पड़ती है। आम के बगीचे अब संत जेवियर कॉलेज परिसर का हिस्सा हैं। इस परिसर को तीन भागों में बांटा गया है जिसमें आत्मदर्शन, तरुमित्र एवं संत जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी आते हैं।संत जेवियर कॉलेज में दूधिया मालदह के पेड़ हैं, जिस पर आम के गुच्छे लदे दिखते हैं।

राजधानी पटना के राजीव नगर की रहने वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती मधु मंजरी ने बताया कि दीघा और कुर्जी इलाका में उनके पिता नंद लाल मेहता और उनके ताऊ रामलखन मेहता के मालदाह आम के बगीचे हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि बगीचे के आम कोलकाता भेजे जाते थे फिर वहां से अन्य शहरों में उसकी आपूर्ति हुआ करती थी। 26 मई से बगीचे से आम को तोड़ने का काम शुरू हो जाता था। इसके बाद उन आमों को टोकरी में अखबार और बोरा के उपर रखकर कमरे में तीन दिन तक पकने के लिये छोड़ दिया जाता था। जब आम पक जाते थे तो उसे वैसे ही बेचने के लिये भेज दिया जाता।

श्रीमती मधु मंजरी ने कहा कि बचपन में अप्रैल का महीना आते ही पूरा दीघा इलाका मालदह आम की मीठी खुशबू से महकता था। अब समय के साथ आम के कुछ बगीचे ही अतीत की निशानियों को बचाए हुए हैं।बगीचे में दूर-दूर से लोग मई और जून के महीने में आम खरीदने पहुंचते हैं। कई दिन पहले ही आम का ऑर्डर दे दिया जाता है। 30 मई से लेकर 30 जून तक मालदाह आम का बेस्ट सीजन है। उन्होंने कहा कि सरकार को भी दुधिया मालदह पेड़ों के संरक्षण करने की जरूरत है। समय रहते यदि इनका संरक्षण नहीं किया गया तो दीघा का मालदाह आने वाले समय में बस याद बनकर रह जायेगा।


दीघा के पूर्व मुखिया एवं स्थानीय किसान 70 वर्षीय चंद्रवशी सिंह दूधिया मालदह के सरक्षण में जुटे रहे हैं। उनका कहना है उन्होंने काफी आम खाया, लेकिन दूधिया मालदह की कोई तुलना नहीं। उन्होंने बताया कि देश भर में आम की कई किस्में मौजूद हैं लेकिन दूधिया मालदह आम का कोई जोड़ नही। लखनऊ में दशहरी आम लोग चाव से खाते हैं लेकिन एक बार कुछ यूं हुआ कि लखनऊ से आये उनके एक मित्र को जब उन्होने दूधिया मालदह आम खिलाया तो वह भी यह कहने पर मजबूर हुये कि वाकई दूधिया मालदह का कोई जवाब नही। दूधिया मालदह अपने रंग, सुगध एव स्वाद के लिए सभी आमों पर भारी है। दूधिया मालदह की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसका छिलका काफी पतला होता है। गुठली भी बहुत पतली होती है। सबसे ज्यादा गूदा होता है। यदि एक पक्का आम किसी कमरे में रख दिया जाए तो पूरा कमरा सुवासित हो उठेगा।

श्री सिंह ने दीघा का दूधिया मालदह आम से जुड़ा एक किस्सा शेयर करते हुये कहा कि एक बार संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊके दशहरी आम की तारीफ करते हुये कहा था कि यह आम फलों की रानी है। वहीं उस समय तत्कालीन कृषि मंत्री अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दूधिया मालदाह आम को फलों का राजा बताया था। श्री सिंह ने बताया कि आज से लगभग 500 वर्ष पहले दीघा में सोन एव गंगा का सगम हुआ करता था। इसी सगम की मिट्टी पर पैदा हुआ दूधिया मालदह। विशेषज्ञों का कहना एक तरफ गगा के पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा होती है, वहीं सोन का पानी में कैल्सियम भरपूर होता है। कैल्सियम एव आयरन के मिश्रण के कारण दीघा की मिट्टी आम के लिए काफी अनुकूल मानी जाती है। यही कारण है कि अन्य आमों की प्रजाति से दीघा के दूधिया मालदह आम का स्वाद अलग होता है।

कुर्जी के रहने वाले धर्मेन्द्र मुखिया ने बताया कि पहले आम किलो के भाव नहीं गिनती से बेचे जाते थे। हम बच्चे तो यूं ही आम के बगानों में घुसकर चोरी-छिपे मन भर आम तोड़ लाते थे। गर्मी की छुट्टियों में हम सभी भाई-बहन सब दूधिया मालदह के फलने का इंतजार करते थे। अप्रैल से ही कच्चे आम तोड़ने लगते थे। मई तक आम की सुगध से पूरा इलाका महकने लगता था। तब दूर दराज से लोग दीघा के बगान में सिर्फ दूधिया मालदह लेने आते थे।

प्रेम सूरज

वार्ता

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