राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Sep 22 2021 7:03PM योगी व प्रधान करेंगे महंत दिग्विजयनाथ की प्रतिमा का अनावरण
गोरखपुर, 22 सितम्बर (वार्ता) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान बृहस्पतिवार 23 सितम्बर को यहां ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की रामगढ़ताल के निकट बने स्मृति पार्क में साढ़े बारह फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण करेंगे।
गौरतलब है कि वर्ष 1935 से 1969 तक नाथपंथ के विश्व विख्यात गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 52वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में गोरखनाथ मंदिर में साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह जारी है। प्रतिदिन राष्ट्र व समाजहित में समाज के मार्गदर्शक संतों व राष्ट्रीय स्तर के विषय विशेषज्ञों के मंथन सार से लोग रूबरू हो रहे हैं। ब्रह्मलीन महंत की पावन स्मृति को इस बार गोरखपुर एक विशेष आयोजन से भी नमन करने जा रहा है। रामगढ़ताल के समीप बने स्मृति पार्क में स्थापित महंत दिग्विजयनाथ की साढ़े बारह फीट ऊंची प्रतिमा उनके यशस्वी व्यक्तित्व व कृतित्व की याद दिलाकर लोगों को प्रेरित करेगी। इस प्रतिमा का अनावरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कल करेंगे।
ब्रह्मलीन महंतश्री के नाम को समर्पित इस पार्क में प्रतिमा अनावरण से पूर्व दीवारों पर उकेरी गई म्यूरल पेंटिंग उनके जीवन यात्रा का दर्शन कराने वाली है।
महंत दिग्विजयनाथ की स्मृतियों के जीवंत होने के इस अवसर पर यह जानना भी प्रासंगिक है कि उन्हें युगपुरुष क्यों कहा जाता है। महंत जी न केवल गोरखनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप के शिल्पी रहे बल्कि उनका पूरा जीवन राष्ट्रए धर्म,अध्यात्म, संस्कृति, शिक्षा व समाजसेवा के जरिये लोक कल्याण को समर्पित रहा। तरुणाई से ही वह देश की आजादी की लड़ाई में जोरदार भागीदारी निभाते रहे तो देश के स्वतंत्र होने के बाद सामाजिक एकता और उत्थान के लिए। इसके लिए शैक्षिक जागरण पर उनका सर्वाधिक जोर रहा।
महंत दिग्विजयनाथ का जन्म वर्ष 1894 में वैशाख पूर्णिमा के दिन चित्तौड़ मेवाड़ ठिकाना ककरहवां (राजस्थान) में हुआ था। उनके बचपन का नाम नान्हू सिंह था। पांच वर्ष की उम्र में 1899 में इनका आगमन गोरखपुर के नाथपीठ में हुआ। अपनी जन्मभूमि मेवाड़ की माटी की तासीर थी कि बचपन से ही उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति और स्वाभिमान से समझौता न करने की प्रवृत्ति कूट कूटकर भरी हुई थी। उनकी शिक्षा गोरखपुर में ही हुई और उन्हें खेलों से भी गहरा लगाव था।
15 अगस्त 1933 को गोरखनाथ मंदिर में उनकी योग दीक्षा हुई और 15 अगस्त 1935 को वह इस पीठ के पीठाधीश्वर बने। वह अपने जीवन के तरुणकाल से ही आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेते रहे। देश को स्वतंत्र देखने का उनका जुनून था कि उन्होंने 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कूल छोड़ दिया। उन पर लगातार आरोप लगते थे कि वह क्रांतिकारियों को संरक्षण और सहयोग देते हैं। वर्ष 1922 के चौरी-चौरा के घटनाक्रम में भी उनका नाम आया लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता के सामने ब्रिटिश हुकूमत को झुकना पड़ा और उन्हें रिहा कर दिया गया।
अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर के निर्माण को लेकर हुए आंदोलनों में गोरक्षपीठ की महती भूमिका से सभी वाकिफ हैं। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ इस आंदोलन में नींव के पत्थर हैं। 1934 से 1949 तक उन्होंने लगातार अभियान चलाकर आंदोलन को न केवल नई ऊंचाई दी बल्कि 1949 में वह श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के नेतृत्वकर्ता भी रहे। पांच सौ वर्षों के इंतजार के बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। ऐसे में जब भी मंदिर का जिक्र होगाए ब्रह्मलीन महंतश्री आप ही स्मरित होंगे।
उदय त्यागी
जारी वार्ता