नयी दिल्ली, 17 सितम्बर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की आज 25वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि कोई आकृति या चिह्न मिलने से यह पुष्टि नहीं हो जाती कि विवादित स्थल पर देवता ही थे।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष अपनी जिरह आगे बढ़ाते हुए कहा कि 14 खंबे चाहे ढहाये गये या मिले, इससे मन्दिर होने की पुष्टि कैसे हो सकती है?
विवादित ढांचे से मिली आकृतियों के बारे में न्यायमूर्ति बोबडे के सवाल पर श्री धवन ने कहा कि बाहर रामजन्म स्थान यात्रा का पत्थर लगा है। यह यात्रा 1901 में हुई थी। उन्होंने 1990 में खींची खंबों की तस्वीर लगाई है। कसौटी खंबे कहां से आये? कुछ कहते हैं नेपाल से आये, कुछ श्रीलंका से, कुछ कहते हैं वहीं थे। देवताओं की आकृतियां कहीं नहीं हैं। कमल और फूल तो इस्लामिक आर्ट में भी हर कहीं हैं।
उन्होंने कहा कि कसौटी खंबे छत को मजबूती देने के लिए नहीं, बल्कि सजावटी हैं। सजावटी कलाकृतियों को ही हिन्दू बताया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि वहां नीचे मन्दिर था, यह अलग दलील है, लेकिन यहां बहस राम मन्दिर को तोड़ने को लेकर है। सिर्फ आकृति या चिह्न मिलने से देवता वहां थे इसकी पुष्टि कैसे होती है? यह तो इस पर निर्भर करता है कि अंदर प्रार्थना का तरीका कैसा है? सच्चाई तो यह है कि अंदर मस्जिद और बाहर राम चबूतरा था। अंग्रेजों ने अलग दरवाज़ा बनाकर अमन कायम रखा।'
न्यायमूर्ति भूषण ने श्री धवन से पूछा, “हनुमान द्वार पर द्वारपाल क्यों बने थे? जय विजय?” इस पर उन्होंने कहा, “ये 19वीं सदी के उत्तरार्ध 1873-1877 के बीच जब वहां दोनों तरह की प्रार्थनाएं हो रही थीं, तब की होंगी1”
इस पर न्यायमूर्ति भूषण ने कहा, “जय विजय तो विष्णु मंदिरों के द्वारपाल होते थे। इन जय विजय की मूर्ति वाले कसौटी खंबों का ज़िक्र 1428 में भी मिलता है।“ इस पर धवन ने कहा, “मुझे वे फोटो मैग्निफाइंग ग्लास से देखनी होंगी।”
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सुरेश.श्रवण
वार्ता