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आधी आबादी : मुद्दे बड़े, नेतृत्व कम

भोपाल, 15 नवंबर (वार्ता) मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार आधी आबादी को लेकर सुरक्षा और रोजगार के अवसर समेत कई मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर महिलाओं की सभी दलों पर नजर है।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या दो करोड़ 40 लाख 76 हजार 693 है। दूसरी ओर मौजूदा विधानसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने 230 विधानसभा क्षेत्रों के बीच 24 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने 27 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है।
भाजपा की ओर से इस बार दाे महिला मंत्रियों के टिकट भी काट दिए गए हैं। प्रदेश की वरिष्ठ मंत्री माया सिंह और कुसुम मेहदेले के स्थान पर इस बार नए चेहरों को मौका दिया गया है। वहीं दो मंत्रियों यशोधराराजे सिंधिया और अर्चना चिटनिस को फिर से मौका दिया गया है।
इस बीच दोनों ही दल महिलाओं की समस्याओं को लेकर अपने-अपने दावे कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता राजो मालवीय ने कहा कि भाजपा ने महिलाओं के लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण की व्यवस्था की है, जिसकी बदौलत प्रदेश में आठ नगरीय निकायों में महापौर के पद पर महिलाएं काबिज हुईं। उन्होंने लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम होने का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ते हुए कहा कि कांग्रेस की ही वजह से महिला आरक्षण विधेयक अब तक लंबित है।
दूसरी ओर कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ ने इस बारे में पूछे जाने पर संवाददाताअों से कहा कि पार्टी ने महिलाओं को टिकट जीतने की क्षमता के आधार पर दिया है।
प्रदेश में चुनाव के पहले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट भी प्रासंगिक हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश महिलाओं के खिलाफ होने वाले सभी प्रकार के अपराधों के मामलों में देश के आला चार राज्यों में शामिल है। इसी रिपोर्ट के अांकड़ों में मध्यप्रदेश दुष्कर्मों के मामले में देश में सबसे पहले नंबर पर है।
हालांकि दोनों ही दलों की ओर से इतनी कम महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिए जाने पर आधी आबादी के बीच उम्मीद की किरण कम है।
राजधानी में महिलाओं के बीच काम करने वाले एक सामाजिक संगठन की प्रमुख ब्रीज त्रिपाठी इतने कम प्रतिनिधित्व पर निराशा व्यक्त करते हुए कहती हैं कि ये तस्वीर राजनीतिक दलों का महिलाओं को मात्र वोटबैंक समझने की मानसिकता प्रदर्शित करती है। महिलाएं घरों के बाहर निकल कर रोजमर्रा में सैकड़ों समस्याओं का सामना कर रही हैं, पर उनकी अावाज सुनने वाला प्रतिनिधित्व गिना-चुना है। जो महिलाएं निर्वाचित होती हैं, वे भी अमूमन अपने-अपने दलों के हाथों की 'कठपुतली' ही बन कर रह जाती हैं।
वहीं सागर से आकर राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहीं कॉलेज छात्रा यशस्वी ताम्रकार सुरक्षा को सबसे अहम मानती हैं। देर रात कोचिंग से लौटने वाली यशस्वी का कहना है कि महिलाओं की सुरक्षा जैसे विषय तब ही अहमियत पाएंगे, जब आला नेतृत्व अौर संवैधानिक पदों पर बैठने वाला प्रतिनिधित्व आधी आबादी के हाथों में प्रमुखता से होगा।
गरिमा प्रशांत
वार्ता
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