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लोकरुचि


आध्यात्म, वैराग्य और ज्ञान की ऊर्जा सतत प्रवाहित होती है संगम की रेत में

आध्यात्म, वैराग्य और ज्ञान की ऊर्जा सतत प्रवाहित होती है संगम की रेत में

प्रयागराज, 13 जनवरी (वार्ता) पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त:सलीला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के त्रिवेणी की रेत वैराग्य, ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत है।

तीर्थराज प्रयाग की महिमा का कोई अंत नहीं है। अरण्य और नदी संस्कृति के बीच जन्म लेकर ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि के रूप में पंचतत्वों को पुष्पित-पल्लवित करने वाली प्रयागराज की धरती देश को हमेशा ऊर्जा देती रही है। इसके विस्तीर्ण रेती पर न/न जाने कितने ही साधु-संत,पुण्य आत्मा और ऋषि-मुनियों ने अपने पुण्य से सिंचित किया है।

माघ मेला हो या कुम्भ या फिर अर्द्ध कुंभ , यहां पंडालों में रामचरित मानस, श्री कृष्ण लीला, भागवत पाठ आदि का लगातार पाठ चलता रहता है । यहां श्रोता रेत पर ही बैठ कर कथा सुनते हैं । कथा अपने नियत समय पर शुरू होती और समय से ही समाप्त भी होती है।

श्रीदेवरहवा बाबा सेवा आश्रम पीठ के आचार्य रमेश प्रपन्न शास्त्री ने अन्नपूर्ण मार्ग स्थित शिविर में कहा कि संगम का कण-कण यज्ञ मय है। यहां रेत कण में सदियों से ऋषि मुनियों और देवताओं का चरण स्पर्श हुआ है। यहां के रेत कण केवल वैराग्य, ज्ञान और आध्यात्मिक ऊर्जावान ही नहीं है बल्कि यह आध्यात्मिक औषधि भी है। पहले संत-संन्यासी और

कल्पवासी इसी रेत को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करते हैं। उसके बाद त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। उनका मानना है कि उनके गुरू के चरण कभी इसी रेत पड़े हों। श्रद्धालु स्नान करने के बाद यहां की एक मुठ्ठी रेत को ससम्मान अपने साथ लेकर जाते हैं।

पद्मपुराण में प्रयाग क्षेत्र को यज्ञ भूमि कहा गया है। देवताओं द्वारा सम्मानित इस भूमि में थोड़ा भी दान का अनंत फल प्राप्त होता है। यह 88 हजार ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। इसीलिए यहां कल्पवास में भूमि पर शयन की बात कही गयी है। कल्पवासी एक माह तक रेती पर ही शयन करते हैं। इस दौरान संगम की रेत पर एक माह तक हवन, पूजा-पाठ, यज्ञ के साथ निरंतन कुछ न कुछ धार्मिक कार्य होते रहते हैं जिससे यहां की रेत आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी हुई है।

दिनेश विनोद

वार्ता

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