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इटावा मे नौ को होगा रावण वध

इटावा मे नौ को होगा रावण वध

इटावा, 8 अक्टूबर (वार्ता) देश भर मे बेशक मंगलवार को दशहरा पर्व की धूम मची हो लेकिन उत्तर प्रदेश में इटावा के जसंवतनगर मे बुधवार को रावण वध किया जायेगा ।

रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव गुप्ता ने बताया प्रकांड पंडित और बलशाली होने के कारण लंकाधिपति का वध बुधवार को होगा जब चंद्र सूर्य की नक्षत्रीय दिशाए पंचक मुहूर्त मे आएगी। रामलीला महोत्सव की ख्याति विश्वव्यापी होने की वजह से रामलीला समिति का प्रबंधन उसमे नयापन लाने के भरपूर प्रयास में है। इसलिए इस बार ज्यादा जोर पात्रों के संवाद और ड्रेसों पर दिया गया है। रावण की ड्रेस तो विशेष तौर से जयपुर से मंगाई गई है।

रामलीला में सभी पात्र कंठस्थ चौपाइयां याद करके उनका भावार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं फिर भी अभी सुधार की और जरूरत है। राम ,लक्ष्मण और सीता की ड्रेसें हर वर्ष नई बनती हैं,मगर इस बार लंकाधिपति रावण की ड्रेस उसके प्रोटोकाल के अनुरूप मंगाई गई है। सीताहरण की महत्वपूर्ण लीला के दौरान रावण ने जो ड्रेस पहनी, उसने सबको आकर्षित किया। पूरी जडाऊ, इस ड्रेस का कपड़ा भी सम्भवतः पहली बार सिलकन और सनिल मिक्स है। पिछले सालों में ड्रेस का स्तर घटिया दिखता था।

व्यवस्थापक अजेंद्र सिंह गौर ने बताया है कि इस ड्रेस को जयपुर के कारीगरों से बनवाया गया है । आगरा में भी इस पर जडाऊ काम मूंगा,मोतीआदि का हुआ है। इस ड्रेस को लेने और इसमें राजसी चमक लाने के लिए प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू ने ड्रेस बनाने वालों से काफी माथा-पच्ची की।

ड्रेस की देखरेख और रखरखाव के लिए एक नवयुवक निखिल गुप्ता को विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई है । ड्रेस की कीमत के बारे में पूंछे जाने पर कई हजार बताई गई। राम और रावण की लड़ाई इस बार करीब 9 घंटे चलेगी , इसलिए 7-8 हट्टे-कट्टे युवक रावण की भूमिका निभाने के लिए तैयार किये गए हैं। श्री गौर ने बताया कि अपने दिवंगत पिता विपिन बिहारी पाठक द्वारा 20 वर्ष तक रामलीला में रावण की भूमिका निभाने की परंपरा को उनके पुत्र धीरज पाठक इस वर्ष भी निभाएंगे। अमित शुक्ला भोले,विशाल गुप्ता, रतन शर्मा, अंकित शर्मा आदि युवक भी रावण की भूमिका में युद्ध करते दिखेंगे।

मृत्यु के वक्त परम्परागत रूप से 15 वर्षों से रावण की भूमिका निभा रहे 55 वर्षीय बालकृष्ण शर्मा ही इस बार रावण रोल में होंगे। यहां की रामलीला में रावण की आरती उतारी जाती है और उसकी पूजा होती है हालांकि ये परंपरा दक्षिण भारत की है, लेकिन फिर भी उत्तर भारत के कस्बे जसवंतनगर ने इसे खुद में क्यों समेटा हुआ है ये अपने आप में ही एक अनोखा प्रश्न है। जानकार बताते हैं कि रामलीला की शुरुआत यहां 1855 में हुई थी लेकिन 1857 के ग़दर ने इसको रोका, फिर 1859 से यह लगातार जारी है।

यहां रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण ताम्बे, पीतल और लोह धातु से निर्मित मुखौटे पहनकर मैदान में लीलाएं करते हैं। शिवजी के त्रिपुंड का टीका भी इनके चेहरे पर लगा होता है। जसवंतनगर के रामलीला मैदान में रावण का लगभग 15 फीट ऊंचा रावण का पुतला नवरात्र की सप्तमी को लग जाता है। दशहरे वाले दिन रावण की पूरे शहर में आरती उतारकर पूजा की जाती है और जलाने की बजाय उसके पुतले को मार-मारकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं और फिर वहां मौजूद लोग रावण के उन टुकड़ों को उठाकर घर ले जाते हैं। जसवंतनगर में रावण की तेरहवीं भी की जाती है।

दशहरे पर जब रावण अपनी सेना के साथ युद्ध करने को निकलता है तब यहां उसकी धूप-कपूर से आरती होती है और जय-जयकार भी होती है। दशहरे के दिन शाम से ही राम और रावण के बीच युद्ध शुरू हो जाता है जो कि डोलों पर सवार होकर लड़ा जाता है । रात 10 बजे के आसपास पंचक मुहूर्त में रावण के स्वरूप का वध होता है, पुतला नीचे गिर जाता है। एक और खास बात यहां देखने को मिलती है जब लोग पुतले की बांस की खप्पची, कपड़े और उसके अंदर के अन्य सामान नोंच-नोंचकर घर ले जाते हैं। उन लोगों का मानना है कि घर में इन लकड़ियों और सामान को रखने से भूत-प्रेत का प्रकोप नहीं होता।

जसवंतनगर की रामलीला में लंकापति रावण के वध के बाद पुतले का दहन नहीं होता है, बल्कि उस पर पत्थर बरसाकर और लाठियों से पीटकर धराशायी कर देते हैं। इसके बाद रावण के पुतले की लकड़ियां बीन-बीन कर घरों में ले जाकर रखते हैं। लोगों की मान्यता है कि इस लकड़ी को घर में रखने से विद्वता आती है और धन में बरकत होती है। इस लोक मान्यता का असर यह है कि रावण वध के बाद पुतले की लकड़ी के नाम पर मैदान में कुछ नहीं बचता है। दूसरी खास बात यह है कि यहां रावण की तेरहवीं भी मनाई जाती है, जिसमें कस्बे के लोगों को आमंत्रित किया जाता है।

सं प्रदीप

वार्ता

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