राज्य » अन्य राज्यPosted at: Jul 15 2019 8:12PM उत्तराखंड एनआईटी को लेकर चौंकाने वाला खुलासानैनीताल 15 जुलाई (वार्ता) उत्तराखंड स्थित राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के स्थायी परिसर के मामले को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान सोमवार को बेहद चौकाने वाला तथ्य सामने आया। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार की युगलपीठ में सोमवार को एनआईटी के स्थानांतरण के मामले में सुनवाई चल रही थी। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि एनआईटी के श्रीनगर स्थित अस्थायी परिसर में काफी दिक्कते हैं। राष्ट्रीय महत्व के इस संस्थान की कक्षायें पॉलिटेक्निक काॅलेज में संचालित होती हैं जबकि छात्रों को प्रयोगशाला के प्रयोग के लिये आईटीआई काॅलेज के परिसर में जाना पड़ता है। इस मामले को अदालत ने बेहद गंभीरता से लिया और राज्य सरकार को फटकार लगायी। इस तथ्य के सामने आने के बाद उच्च न्यायालय ने एनआईटी के निदेशक को इस मामले में दो सप्ताह में विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है। अदालत ने निदेशक से पूछा है कि एनआईटी से श्रीनगर स्थित पॉलिटेक्निक कालेज और आईटीआई परिसर के बीच की दूरी कितनी है और छात्र वहां जाने के लिये किस साधन का उपयोग करते हैं। यह जानकारी याचिकाककर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने दी। अदालत आज एनआईटी के पूर्व छात्र जसबीर सिंह की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इससे पहले अदालत ने विगत 09 जुलाई को राज्य सरकार को एनआईटी के अस्थायी परिसर की जर्जर व्यवस्था को तय समय में सुधारने को लेकर जवाब देने को कहा था। श्री नेगी ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि अस्थायी परिसर में व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने के लिये 52 करोड़ और 72 करोड़ रुपये के दो प्रस्ताव तैयार किये गये लेकिन इसमें समय सीमा को कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इसके बाद उच्च न्यायालय ने केन्द्र के साथ ही राज्य सरकार और एनआईटी उत्तराखंड को आज फिर से जवाब पेश करने को कहा था। अदालत ने विगत सात मई को केन्द्र सरकार को निर्देश दिया था कि एनआईटी के श्रीनगर स्थित स्थायी परिसर की उपयुक्तता के मामले में वह तीन माह में निर्णय लेकर एक रिपोर्ट अदालत में पेश करे। अदालत ने इस मामले में आईआईटी रूड़की से की मदद लेने को कहा था और राज्य सरकार को भी निर्देश दिया था कि श्रीनगर स्थित अस्थायी कैम्पस की जर्जर व्यवस्थाओं को सुधारने को लेकर के लिये वह एक रिपोर्ट अदालत में पेश करे। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया था कि 2013 में आयी आपदा के दौरान अस्थायी परिसर को काफी नुकसान हुआ था और कक्षाओं में मलबा घुस गया था। याचिकाकर्ता की ओर से एनआईटी के स्थायी परिसर को कहीं अन्यत्र स्थानांतरित करने की मांग की गयी थी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दस वर्ष बीत जाने के बाद भी एनआईटी को स्थापित नहीं कर पाये हैं। उन्होंने कहा सुमाड़ी स्थित भूमि एनआईटी के स्थायी परिसर के लिये उपयुक्त नहीं है। रवीन्द्र, उप्रेतीवार्ता