नयी दिल्ली, 16 दिसम्बर (वार्ता) भारत अभी दुनिया में ऑनलाइन गेमिंग का पाँचवा सबसे बड़ा बाजार है, जिसका कारण यहाँ की युवा और टेक्नोलॉजी की जानकार आबादी, इंटरनेट की बढ़ी हुई पहुँच और किफायती स्मार्टफोन्स हैं। बीसीजी-सिकोइया इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में गेमिंग का पैमाना काफी बड़ा, यानि 1.5 बिलियन डॉलर का है, जिसकी वैश्विक हिस्सेदारी लगभग 1% है। और “मोबाइल-फर्स्ट’’ की क्रांति के चलते इसके साल 2025 तक तिगुना होकर 5 बिलियन डॉलर से ज्यादा का बाजार बनने की अपेक्षा है।
भारी वृद्धि के बावजूद ऑनलाइन गेमिंग के सेक्टर में धारणा को लेकर काफी अस्पष्टता है। जानकारी के अभाव के कारण ऑनलाइन स्किल गेमिंग और गेम्बलिंग के बीच भ्रम भी है। कुछ राज्यों ने ऑनलाइन गेमिंग को प्रतिबंधित करने के लिये कदम उठाये हैं, जिसके पीछे यह विचार है कि ऑनलाइन गेमिंग जुआ है। इसका एक मामला हाल ही में बने कर्नाटक पुलिस (संशोधन) बिल 2021 का है, जो पैसों की हिस्सेदारी वाले सभी प्रकारों के ऑनलाइन गेम्स को निषेध करता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और असम जैसे कई राज्य विगत समय में ऑनलाइन गेमिंग को प्रतिबंधित कर चुके हैं।
दूसरी ओर, ऑनलाइन रमी, फैंटेसी स्पोर्ट्स और ई-स्पोर्ट्स जैसे गेम्स को भारत में विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने कुशलता के खेल माना है। उनके फैसलों ने रमी, शतरंज, फैंटसी और दूसरे स्किल गेम्स को स्पष्ट रूप से कुशलता के खेलों के रूप में स्थापित किया है। सबसे हाल ही में, केरला हाई कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट ने क्रमश 27 सितंबर, 2021 और 3 अगस्त, 2021 के अपने फैसलों में ऑनलाइन स्किल गेम्स की वैधता को दोहराया है।
प्रतिबंध के सभी मामलों में वैधता के अलावा विवाद इस बात पर रहा है कि उपभोक्ताओं की सुरक्षा को देखते हुए ऐसे प्रतिबंधों का प्रभाव कितना है। ई-गेमिंग फेडरेशंस के सीईओ समीर बरडे का मानना है कि राज्य सरकारों को व्यापक प्रतिबंधों की बहाली के बजाए ऑनलाइन गेमिंग को रेगुलेट करने वाली नीतियाँ लानी चाहिये, क्योंकि ऐसे कठोर उपायों से केवल अविश्वसनीय ऑपरेटर्स को फायदा होगा और गेमिंग की गैर-कानूनी गतिविधियाँ बढ़ेंगी तथा सरकार जिन प्लेयर्स को बचाना चाहती है, उन पर बुरे प्रभाव होंगे।
बरडे ने आगे कहा, “हमने पिछले साल ऐसे मामले के बारे में पढ़ा है, जिसमें एक राज्य की सरकार ने साल 2017 से ऑनलाइन गेमिंग को प्रतिबंधित किया था और फिर ऑनलाइन गेमिंग का एक घोटाला सामने आया, जिसके तार चीन से जुड़े थे। वह घोटाला 1200 करोड़ रूपये का था।”
सेल्फ रेगुलेट को आसान बनाने और उसके लिये प्रोत्साहित करने के एक प्रयास में ई-गेमिंग फेडरेशन (ईजीएफ) ने ऑनलाइन गेमिंग के परितंत्र को सुचारू रखने के लिये एक आचार संहिता के रूप में एक मानक संरचना का निर्माण किया है। सोसायटीज रेगुलेशन एक्ट के अंतर्गत संस्थापित यह गैर-लाभकारी संस्था गेमर्स की सुरक्षा के लिये ‘जिम्मेदार खेल’ को बढ़ावा देती है और उन्हें अपने साधनों के बाहर या लंबे समय तक खेलने से सीमित करने या रूकने की अनुमति देती है।
ईजीएफ द्वारा प्रमाणित ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स प्लेयर्स के लिये जिम्मेदारी से खेलने के फीचर्स की पेशकश करते हैं, जो ऑनलाइन गेमिंग का एक निष्पक्ष और सुरक्षित अनुभव सुनिश्चित करने के लिये हैं और प्लेयर्स को ऑनलाइन गेमिंग के बुरे परिणामों से बचाते हैं। यह फेडरेशन प्लेयर्स के लिये एक सुरक्षित, पारदर्शी और जिम्मेदार माहौल सुनिश्चित करने के लिये प्रमाणन जारी करने से पहले अपनी मेम्बर कंपनियों की ऑडिटिंग भी करता है।
भारतीय ऑनलाइन गेमिंग के बाजार में भारी वृद्धि की संभावना है और अगले चार वर्षों में इस सेक्टर के तिगुना होने की अपेक्षा है। इंडस्ट्री की वृद्धि के इस समय में एक संरचित विनियामक रूपरेखा और कानून का दायरा परिभाषित करने वाली ऑनलाइन गेमिंग पॉलिसी भारत में ऑनलाइन गेमिंग को वैध बनाने में सहायक होगी।
समीर ने आगे कहा, “हम पूरे गेमिंग सेक्टर और विशेषकर स्किल गेमिंग सेक्टर को विनियमित करने के लिये कठोर विनियमनों को निर्धारित करने हेतु एक संयुक्त समिति स्थापित करने की अनुशंसा दोहराते हैं।” गेमिंग इंडस्ट्री पूरे ऑनलाइन स्किल गेमिंग सेक्टर के लिये विनियमनों के मानकीकरण हेतु एक विनियामक क्रियाविधि के विकास के लिये सरकार के साथ काम करने को उत्सुक हैं। इससे न केवल प्लेयर्स का फायदा होगा, बल्कि सरकार के राजस्व में भी बढ़त होगी और इस सेक्टर की संभावित वृद्धि सुनिश्चित होगी।
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