नयी दिल्ली 22 सितम्बर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र की जेलों में विशेष अधिनियमों के तहत बंद कैदियों को कोरोना महामारी के कारण अंतरिम जमानत पर रिहा किये जाने संबंधी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट की संयोजक मेधा पाटकर की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि कोरोना महामारी के नाम पर प्रत्येक मामले में अंतरिम जमानत की अनुमति नहीं दी जा सकती।
खंडपीठ ने कहा, “मौजूदा विकल्प कोरोना महामारी वायरस के कारण जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए दिया गया था। लेकिन इस तरह का आदेश सभी प्रकार के अपराधों में बंद कैदियों पर लागू नहीं किया जा सकता।”
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने अधिकतम सात साल जेल की सजा वाले कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था तथा ऐसे मामलों के निर्धारण के लिए राज्य सरकारों को एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने को कहा था।
मेधा पाटकर ने उच्चाधिकार समिति द्वारा कैदियों के लिए किये गये वर्गीकरण को चुनौती दी थी और कहा था कि सभी प्रकार के कानूनों के तहत बंद कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहाई का आदेश दिया जाना चाहिए।
मेधा पाटकर ने मकोका, पीएमएल, एमपीआईडी, एनडीपीएस और यूएपीए आदि जैसे सख्त कानूनों के तहत जेल में बंद कैदियों को अंतरिम जमानत के निर्देश देने का अनुरोध किया था, जिसे तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने ठुकरा दिया।
सुरेश,जतिन
वार्ता