नयी दिल्ली 09 दिसम्बर (वार्ता) भारतीय भाषाओं के लिए काम करने वाले भारतीय भाषा समूह ने दिल्ली सरकार के योजना विभाग के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण को केवल अंग्रेजी भाषा में कराये जाने को भाषाई पूर्वाग्रह करार देते हुए इसे हिन्दी, उर्दू और पंजाबी भाषा में भी कराने की मांग की है।
समूह ने आज एक बयान जारी कर कहा कि दिल्ली सरकार एक एप के माध्यम से राजधानी में एक सामाजिक – आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है लेकिन इसकी प्रश्नावली केवल अंग्रेजी भाषा में ही है। इसे केवल अंग्रेजी में कराया जाना भाषाई पूर्वाग्रह है और समूह इसकी कड़ी निंदा करता है। इससे दिल्ली सरकार के आभिजात्य चरित्र एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बोली जाने वाली अन्य राजभाषाओं के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
समूह ने कहा है कि दिल्ली में हिंदी के अलावा उर्दू एवं पंजाबी बोलने वाले लोग भी बडी संख्या में रहते हैं और केवल अंग्रेजी में सवाल पूछे जाने से न सिर्फ संग्रहित आंकड़ों के सही होने पर पर सवालिया निशान लगता है, बल्कि इसके आधार पर बनायी जाने वाली नीतियों को लागू करने के इरादों की असफलता का भी अंदेशा पैदा होता है। समूह का कहना है कि यही नहीं यह कदम गैर– अंग्रेजी भाषा-भाषी लोगों के लिए रोजगार के अवसर को संकुचित करता है। यह घोर विडम्बना है और सरकार के उन खोखले दावों की पोल खाेलती है जो जो राजधानी के सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है लेकिन उनकी भाषाओं का अपमान कर रही है। समूह राज्य सरकार की इस अज्ञानता और आभिजात्यपूर्ण व्यवहार की कड़ी आलोचना करता है।
समूह ने सवाल पूछा है कि यह कैसी राजनीति है कि सरकार के मंत्री लोगों से वोट के लिए उनकी भाषा में संवाद करते हैं लेकिन जब नीतियां तैयार करने के इरादे से आंकड़े जमा करने होते हैं तो देश की गुलामी के दौरान राज करने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं।
समूह का कहना है कि यह एक सामाजिक–आर्थिक सर्वेक्षण है, जिसमें प्रत्येक परिवार के सदस्यों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आय, सामाजिक स्थिति एवं सुरक्षा से जुड़ी सूचनाएं एकत्रित की जायेंगी। यह जानकारी ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए सरकार द्वारा नीति–निर्माण एवं संसाधनों के आवंटन का आधार बनेगी। संस्था का कहना है कि भारतीय चुनाव आयोग ने इस सर्वेक्षण को भले ही राजनीतिक वजहों से खारिज किया हो, लेकिन हिंदी, उर्दू अैर पंजाबी आदि भारतीय भाषा बोलने लोग इस सर्वेक्षण को उसके भाषाई पूर्वाग्रह के कारण खारिज करते हैं और इसमें इन भाषाओं को भी शामिल करने की मांग करते हैं।
संजीव.संजय
वार्ता