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कंस वध से पहले कृष्ण ने बंगलामुखी देवी से लिया था आशीष

मथुरा 20 अक्टूबर (वार्ता) द्वापर युग में विष्णुवतार भगवान कृष्ण ने अपने मामा और मथुरा के राजा कंस का वध करने के पहले बंगलामुखी मन्दिर की देवी से आशीर्वाद लिया था।
बंगलामुखी मन्दिर के सेवायत महन्त वीरेन्द्र चतुर्वेदी उर्फ वीरू पण्डा ने मंगलवार को यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम ने कंस का वध करने से पहले बंगलामुखी मन्दिर की देवी से आशीर्वाद लिया था। पौराणिक महत्व के इस मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में यहां की छटा ही कुछ निराली होती है। हालांकि इस साल वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते देवी मंदिर में अतिरिक्त ऐहतियात बरती जा रही है।
पौराणिक दृष्टान्त का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि बहुत समय पहले एक ऐसा प्रलयंकारी तूफान आया जिसने भगवान की कृति को तहस नहस कर दिया। इसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने बंगलामुखी देवी को स्मरण किया था तो वे सौराष्ट्र के काठियावाड़ क्षेत्र के हरिद्र सरोवर से प्रकट हुईं थी। उनके प्राकट्य पर सभी दिशाएं जगमगा गई थीं। उस समय देवी ने तूफान शांत कर दिया था। उनका मानना है कि सच्चे दिल से व्रजवासियों द्वारा इस नवरात्रि में पूजन करने के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण पर कमी आना लाजमी है।
देवी के चमत्कार का एक अन्य पौराणिक दृष्टान्त देते हुए वीरू पण्डा ने बताया कि मदन नामक राक्षस ने तप करके ’’वाकसिद्धि’’ का वरदान प्राप्त कर लिया था। इसके कारण वह किसी के बारे में जो कहता सही हो जाता। उसने इस वरदान का दुरूपयोग कर लोगों को जब सताना शुरू किया तो उसके इस वरदान से दुःखी देवताओं ने बंगलामुखी की आराधना कर मदन राक्षस से मुक्ति की प्रार्थना की थी। देवी ने राक्षस की न केवल जुबान पकड़ ली बल्कि उसकी बोलने की शक्ति ही रोक दी थी। देवी ने उसे मारने के लिए विचार किया तो उसने देवी से प्रार्थना की कि वह चाहता है कि लोग देवी की पूजा के साथ उसकी भी पूजा इसी रूप में करें। देवी ने उसे ऐसा वरदान दे दिया। देश के कुछ बंगलामुखी मन्दिरों में देवी के इस स्वरूप के दर्शन होते है।
जहां महाविद्या रूप में ये प्राणियेां के लिए मोक्ष प्रदायिनी हैं वहीं अविद्या रूप में वे भोग का कारण हैं। श्री मदभागवत में प्रसंग है कि जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव को आमंत्रित नही किया फिर भी भगवती सती ने जाने का आग्रह किया और रोकने पर वे क्रोधित हुईं तो उनके विकराल रूप को देखकर उन्हें रोकने के लिए भगवान शिव भी भागने लगे। उन्हें रोकने के लिए दशों दिशाओं में उन्होंने अपनी अधौभूता दस देवियों को प्रकट किया था। ये दस देवियां काली, तारा, षोडसी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, छिन्नमस्ता,धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं।
उन्होंने बताया कि महाविद्या होने के कारण भक्तों की मनोकामना यह देवी उसी प्रकार पूरा करती हैं जिस प्रकार उन्होंने कंस का वध करने की श्रीकृष्ण और बलराम की कामना पूरी की थी। बंगलामुखी को पीताम्बरी देवी भी कहा जाता है इसीलिए इनकी आराधना में प्रयोग की जानेवाली सामग्री में पीले रंग का बड़ा महत्व है। पीले फूल, पीले वस़्त्र,सरसो के तेल और पीले टीके से मां प्रसन्न होती हैं।
ऐसा भी कहा जाता है उनके पूर्वजों को देवी ने स्वप्न में वर्तमान स्थान पर होने और निकालकर मन्दिर बनवाने के बारे में बताया था इसके बाद उनके पूर्वजों ने भूमि को खोदकर देवी को निकाला था और फिर मन्दिर बनवाया था। महाविद्या के इसी चमत्कार के कारण श्रद्धालु बगलामुखी देवी दर्शन के लिए चुम्बक की तरह मथुरा के पुराने बस स्टैंड के पास न केवल नवरात्रि में खिंचे चले आते हैं बल्कि वर्ष पर्यन्त यहां आकर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
सं प्रदीप
वार्ता
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