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कव्वाली को संगीतबद्ध करने में महारत हासिल थी रौशन को

..पुण्यतिथि 16 नवंबर के अवसर पर ..
मुंबई 15 नवंबर (वार्ता) हिंदी फिल्मों में जब कभी कव्वाली का जिक्र होता है संगीतकार रौशन का नाम सबसे पहले लिया जाता है। रौशन ने वैसे तो फिल्मों में हर तरह के गीतों को संगीतबद्ध किया है लेकिन कव्वालियों को संगीतबद्ध करने में उन्हें महारत हासिल थी।
वर्ष 1960 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म ..बरसात की रात. में यूं तो सभी गीत लोकप्रिय हुये लेकिन रौशन के संगीत निर्देशन में मन्ना डे और आशा भोंसले की आवाज में साहिर लुधियानवी रचित कव्वाली ..ना तो कारवां की तलाश ..और ..मोहम्मद रफी की आवाज में ..ये इश्क इश्क है ..आज भी श्रोताओं के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़े हुए है ।
वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म ..दिल ही तो है.. में आशा भोंसले और मन्ना डे की युगल आवाज में रौशन की संगीतबद्ध कव्वाली ..निगाहें मिलाने को जी चाहता है ..आज जब कभी भी फिजाओं में गूंजता है तब उसे सुनकर श्रोता अभिभूत हो जाते है ।
तत्कालीन पश्चिमी पंजाब के गुजरावालां शहर (अब पाकिस्तान में) 14 जुलाई 1917 को एक ठेकेदार के घर में जन्मे रौशन का रुझान बचपन से ही अपने पिता के पेशे की और न होकर संगीत की ओर था। संगीत की ओर रुझान के कारण रौशन अक्सर फिल्म देखने जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म .पुराण भगत. देखी। फिल्म ..पुराण भगत ..में पार्श्वगायक सहगल की आवाज में एक भजन रौशन को काफी पसंद आया। इस भजन से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुये कि उन्होंने यह फिल्म कई बार देख डाली। ग्यारह वर्ष की उम्र आते..आते उनका रूझान संगीत की ओर हो गया और वह उस्ताद मनोहर बर्वे से संगीत की शिक्षा लेने लगे।
मनोहर बर्वे स्टेज के कार्यक्रम को भी संचालित किया करते थे उनके साथ रौशन ने देश भर में हो रहे स्टेज कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। मंच पर जाकर मनोहर बर्वे जब कहते कि ..अब मैं आपके सामने देश का सबसे बडा गवइया पेश करने जा रहा हूं.. तो रौशन मायूस हो जाते क्योंकि .गवइया. शब्द उन्हें पसंद नहीं था। उन दिनों तक रौशन यह तय नहीं कर पा रहे थे कि गायक बना जाये या फिर संगीतकार।
प्रेम, यामिनी
जारी वार्ता
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