Wednesday, Apr 24 2024 | Time 01:08 Hrs(IST)
image
फीचर्स


गांधी से बहुत कम याद की जाती हैं कस्तूरबा

गांधी से बहुत कम याद की जाती हैं कस्तूरबा

(प्रसून लतांत)

नयी दिल्ली, 11 अप्रैल (वार्ता) दक्षिण अफ्रीका और देश में आजादी के आंदोलन के दौरान साए की तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ रहीं और जनसेवा तथा रचनात्मक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाली कस्तूरबा गांधी को बहुत कम ही याद किया जाता है।

महात्मा गांधी और कस्तूरबा दोनों दक्षिण अफ्रीका और बाद में स्वदेश में आजादी की लड़ाई में हमेशा साथ साथ रहे। गांधी जी ने जब चंपारण में सत्याग्रह किया तब शिक्षा, स्वास्थ्य और सफाई जैसे रचनात्मक कार्यक्रमों में कस्तूरबा ने उनका साथ दिया। चंपारण में कस्तूरबा द्वारा शुरू किया गया स्कूल आज भी चल रहा है। बापू के पीछे कस्तूरबा उनके आश्रमों की देखभाल करती थीं तथा आंदोलनों में भी शामिल होती थीं। भारत छोड़ो आंदोलन के समय गांधी जी मुंबई की जनसभा से एक दिन पहले गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में सवाल था कि जनसभा को अब कौन संबोधित करे तो कस्तूरबा ने आगे बढ़कर कहा कि ‘ मैं करूंगी।’ उन्हें गिरफ्तार कर आगा खां महल में रखा गया, जहां 22 फरवरी 1944 को 74 साल की उम्र में उनका स्वर्गवास हो गया।

गांधी जी पर हजारों किताबें लिखी गईं हैं। हर वर्ष उनकी जयंती मनाई जाती हैं लेकिन कस्तूरबा की जयंती कभी कभार या ना के बराबर ही मनाई जाती हैं। गांधी जी और कस्तूरबा दोनों की डेढ़ सौवीं जयंती जैसे जैसे करीब आ रही है तो गांधीजी के साथ उनकी भी जयंती मनाने और उनके योगदानों की भी चर्चा होने लगी है। वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता रमेश शर्मा कहते हैं कि हमें गांधी जी के साथ कस्तूरबा के योगदानों को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए। कस्तूरबा से देश की महिलाएं भी प्रेरित हो सकेंगी।

कम ही लोगों को पता होगा कि कस्तूरबा महात्मा गांधी से उम्र में छह माह बड़ी थीं और इसे लेकर दोनों में झगड़ा भी हो जाता था। कस्तूरबा पर केंद्रित उपन्यास लिखने वाले गिरिराज किशाेर का कहना है कि बा के बारे में भ्रम है कि वह गांधी की अनुगामिनी थीं जबकि ऐसा नहीं था। बालपन में मोनिया (महात्मा गांधी) और कस्तूर साथ—साथ खेलते थे। मोनिया यह बात मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि कस्तूर उनसे छह महीने बड़ी है। कस्तूर इस बात पर अड़ी रहती थी कि मोनिया उससे छह महीने छोटा है। इस बात पर दोनों में आपस में खेल तक बंद हो जाता था।

कस्तूरबा का जन्म महात्मा गांधी की तरह काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में 11 अप्रैल, 1869 को हुआ था। वह अपने पिता की तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता नहीं था और शादी भी कम उम्र में कर दी जाती थी। कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में उनकी सगाई और तेरह साल की आयु में उनका विवाह हो गया।

महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी शादी के बाद 1888 तक लगभग साथ साथ ही रहे लेकिन गांधी के इंग्लैंड प्रवास के दौरान लगभग अगले बारह वर्ष तक दोनों अलग अलग रहे। इंग्लैंड से लौटने के तुरंत बाद गांधी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। जब 1896 में वह भारत आए तब कस्तूरबा को दक्षिण अफ्रीका ले गए। तब से कस्तूरबा उनके साथ ही रहीं। कस्तूरबा ने गांधीजी की तरह अपना जीवन भी सादा बना लिया था। वह गांधी जी के देश सेवा के महाव्रतों में सदैव उनके साथ रहीं। गांधी जी ने 1932 जब हरिजनों के मुद्दे पर यरवदा जेल में आमरण उपवास शुरू किया, उस समय कस्तूरबा साबरमती जेल में बंद थीं। उस समय वह बहुत बेचैन हो उठीं और उन्हें तभी चैन मिला जब वे यरवदा जेल भेजी गईं।

गिरिराज किशोर कहते हैं कि विवाह के बाद कस्तूरबा ने अपने सभी दायित्व को बखूबी निभाया लेकिन बिना कुछ बोले आत्मसम्मान की रक्षा की। वह पारिवारिक संबंधों को सर्वोपरि रखती थीं। बच्चों की शिक्षा दीक्षा को लेकर भी चिंतित रहती थी। वे व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों पर पुनर्विचार करती थीं। जब एक हरिजन परिवार आश्रम में आकर रहने लगा तो औरों की तरह कस्तूरबा भी नाराज थीं। गांधी को छोड़ कर सब आश्रम से चले गए थे लेकिन कस्तूरबा अपने निर्णय पर विचार करती रहीं। एक दिन हरिजन परिवार की बच्ची को खेलते देख कर उनका मन नहीं माना और उसे गोद में उठा लिया। कस्तूरबा का मन उस बच्ची के कारण बदल गया था।

कस्तूरबा ने अपने पति के आदर्शों और विचारों पर चलने से कभी मना नहीं किया लेकिन उनकी हरेक बात पर विचार जरूर करती थीं। आंख मूंद कर किसी बात को स्वीकार करने के पूर्व पति से बहस करती थीं। दक्षिण अफ्रीका से आते समय गांधी को बहुत से उपहार मिले थे, जिन्हें वह किसी ट्रस्ट को सौंपना चाहते थे लेकिन कस्तूरबा इससे सहमत नहीं थीं। इस पर हुयी बहस में जब गांधी जी ने कहा कि ये उपहार उन्हें उनकी सेवा के कारण मिले हैं तो कस्तूरबा चुप नहीं रही बल्कि सशक्त तरीके से कहा “ तुम्हारी सेवा जगजाहिर है लेकिन सेवा करने के दौरान सहयोग करने में हम तो कभी पीछे नहीं रहे फिर ये उपहार अकेले तुम्हारे कैसे हो गए?”

कस्तूरबा के निधन के बाद महात्मा गांधी उनकी याद करके कहा करते थे कि बा का जबरदस्त गुण महज अपनी इच्छा से उनमें समा जाने का था। यह कुछ उनके आग्रह से नहीं हुआ था बल्कि समय के साथ बा के अंदर ही इस गुण का विकास हो गया था। शुरू के अनुभव के अाधार पर गांधी को बा बहुत हठीली लगती थीं। उनके दबाव डालने पर भी वह अपना चाहा ही करतीं। इसके कारण हमारे दाेनों के बीच थोड़े समय की या लम्बी कड़वाहट भी रहती, लेकिन जैसे—जैसे उनका सार्वजनिक जीवन उज्ज्वल बनता गया, वैसे—वैसे बा खिलती गई और पुख्ता विचारों के साथ उनमें यानी उनके काम में समाती गई। हम दोनों दो भिन्न व्यक्ति नहीं रह गए। वह बहुत दृढ़ इच्छा शक्तिशाली स्त्री थीं।

जय

वार्ता

There is no row at position 0.
image