नयी दिल्ली 28 जनवरी (वार्ता) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत चीन संबंधों को लेकर आज चीनी नेतृत्व को दो टूक शब्दों में समझाया कि सीमा पर ऐसे हालात के बीच अन्य क्षेत्रों द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य नहीं रखा जा सकता है। दोनों देशों के रिश्ते भविष्य में ‘पारस्परिकता’ के आधार पर ही बढ़ेंगे।
विदेश मंत्री ने यहां अखिल भारतीय चीन अध्ययन सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए चीन की दोहरी नीतियों पर जम कर प्रहार किया। उन्होंने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में सदस्यता को बाधित करने एवं बाजार को खोलने में भी पारस्परिकता का सम्मान नहीं करने, आतंकवादियों को चिह्नित करने और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना कर भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करने के उदाहरण दिये और कहा कि 2017 में अस्ताना में दोनों देशों ने सहमति जतायी थी कि मतभेदों को विवाद में नहीं बदलने देंगे। इसके बाद संबंधों को बढ़ाने के लिए तमाम कदम उठाये गये लेकिन 2020 की घटनाओं ने हमारे संबंधों को अत्यधिक तनावपूर्ण बना दिया।
उन्होंने कहा, “यह स्वाभाविक है कि जिन्होंने चीन का अध्ययन किया है उन्हें हमारे रिश्तों की दिशा के बारे में चिंता होगी। और मैं वास्तव में इस समय इसका पक्का जवाब नहीं दे सकता हूं। चाहे हमारी तात्कालिक चिंताएं हों या दीर्घकालिक संभावनाएं, तथ्य यह है कि हमारे रिश्तों में प्रगति केवल पारस्परिकता पर निर्भर करती है। हमारी तीन पारस्परिकताएं हैं - परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता एवं परस्पर हित। ये ही हमारे संबंधों को निर्धारित करने वाले तत्व हैं। यह सोचना कि सीमा पर कुछ भी स्थिति हो और बाकी सब कुछ सामान्य ढंग से चलता रहे, यथार्थ नहीं है। सीमा क्षेत्रों में टकराव टालने के लिए विभिन्न प्रणालियों के अधीन बातचीत जारी है लेकिन यदि संबंधों में सततता और प्रगति बनाये रखाती है तो नीतियों में बीते तीन दशकों के सबक को शामिल करना होगा।”
डाॅ जयशंकर ने कहा कि पिछले अनुभवों ने हमें सिखाया है कि बदलावों में सामंजस्य बिठाते हुए संबंधों में स्थिरता बनाये रखना महत्वपूर्ण है। इसी से दिशानिर्देशन लेने से दोनों देशों का फायदा है। इन्हें आठ प्रमुख बिन्दुओं के रूप में समझा जा सकता है। पहला एवं प्राथमिक, जो समझौते हो चुके हैं, उनका अक्षरश: एवं उसकी भावना के साथ समग्रता से पालन किया जाये। दूसरा, सीमा मसलों के प्रबंधन में वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से अनुपालन एवं सम्मान हो, यथास्थिति में बदलाव का कोई भी एकतरफा प्रयास एकदम अस्वीकार्य है। तीसरा, सीमा क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता अन्य क्षेत्रों में संबंधों में प्रगति का आधार है। यदि वहां कोई गड़बड़ी होती है तो बाकी क्षेत्रों में रिश्ते भी गड़बड़ाते हैं। हालांकि यह सीमा मसले पर बातचीत में प्रगति से अलग मामला है। चौथा दोनों देश एक बहुध्रुवीय विश्व के प्रति संकल्पित हैं, उसी तर्ज पर एक बहुध्रुवीय एशिया को भी मान्यता मिलनी चाहिए। पांचवा, हर देश के अपने अपने हित, चिंताएं एवं प्राथमिकताएं होतीं हैं लेकिन उनके प्रति संवेदनशीलताएं एकतरफा नहीं हो सकतीं। अंतत: बड़े देशों के बीच संबंध पारस्परिकता के आधार पर होते हैं। छठा, उभरती महाशक्तियाें में प्रत्येक की अपनी आकांक्षाएं होती हैं और उनके लिए प्रयासों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। सातवां, हमेशा ही वैचारिक भिन्नताएं एवं मतभेद होते हैं लेकिन उनका प्रबंधन बहुत ही आवश्यक होता है। आठवां, भारत एवं चीन जैसे देशों को हमेशा दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखना चाहिए।
विदेश मंत्री ने कहा कि यह अक्सर कहा जाता है कि भारत एवं चीन में एशियाई सदी बनाने के लिए मिल कर काम करने की क्षमता है। इस समय, उन कठिनाइयों को समझना भी महत्वपूर्ण है जो इस सपने को तोड़तीं हैं। भारत चीन संबंध आज निश्चित रूप से दोराहे पर हैं। जो भी फैसले लिये जाएंगे उनका व्यापक प्रभाव ना केवल दो देशों बल्कि समूचे विश्व पर होगा। तीन पारस्परिकताओं का सम्मान एवं आठ सिद्धांतों का पालन हमें सही निर्णय लेने में सहायता करेगा।
सचिन
वार्ता