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चुनाव-नारा भूमिका दो प्रयागराज

श्री मिश्र ने बताया कि लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा, जब राजनीतिक दलों के नारों मेें आकर्षण रहा करता था। आजादी के बाद से लेकर 90 के दशक तक राजनीतिक दलों के नारे ऐसे हुआ करते थे जो मतदाताओं के दिलों को छू जाते थे।
इसका नतीजा यह होता था कि देश में सत्ता परिवर्तन हो जाता था। फिर चाहे इंदिरा गांधी रही हों या मोरार जी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी या विश्वनाथ प्रताप सिंह, चुनावी नारों का सहारा लेकर ही ये नेता सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे। हालांकि अब परिस्थितियां बदल गई हैैं। अब चुनावी नारे कहीं खो से गए हैैं और राजनीति क्षेत्रवाद, जातिवाद जैसे मुद्दों पर आकर टिक गई है।
श्रीमती इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान डा़ मुरली मनोहर जोशी, सत्य प्रकाश मालवीय, राम नरेश यादव और जनेश्वर मिश्र आदि के साथ जेल की सजा काट चुके समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता के के श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1952 से 1969 तक चुनावी नारों का कोई अधिक महत्व नहीं था। प्रत्याशी जनसंपर्क, भोंपू और बिरहा आदि गाकर प्रचार करते थे। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1971 में “गरीबी हटाओ, देश बचाओ” से चुनावी नारों की शुरूआत किया था।
हालांकि वर्ष 1965 में पाकिस्तान युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया था। इसका उद्देश्य युद्ध और खाद्य संकट के दौर में देश का मनोबल बढ़ाना और एकजुट करना था। आजादी के बाद पहला चर्चित चुनावी नारा था।
दिनेश प्रदीप
चौरसिया
जारी वार्ता
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