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लोकरुचि


चंबल के बीहड़ों में दस्यु सुंदरियों को मातृत्व सुख पाना चुनौती भरा रहा

इटावा, 12 मई (वार्ता) चंबल के बीहड़ों में मजबूरी के चलते डाकू बनी महिलाओं के लिए मातृत्व सुख पाना कम चुनौतीपूर्ण नहीं था, फिर भी कई ऐसी महिलाओं ने तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए यह सुख हासिल किया।

बीहड़ों में आवागमन के साधनों के अभाव में पैदल ही दौड़ धूप करने से लेकर पुलिस दवाब के चलते बार बार स्थान बदलना इन गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत कष्टदायक समय रहा। इन महिलाओं ने नौ माह तक सभी बाधाओं को पार करते हुए शिशुओं को जन्म दिया।

चंबल में डाकुओं के नामों के साथ दस्यु सुंदरियों के नामों की भी चर्चायें आम होती रहती है जिनके नाम से चंबल एवं आसपास के लोग थर्राते थे। कई डाकू अपने एकाकी जीवन में महिलाओं को साथ रखते थे। यह बात दीगर है कि कुछ को जबरन जबकि कुछ को प्रेम वश बीहड़ों में डाकूओं के साथ रहना पड़ा था।

चंबल घाटी में डाकुओं का सिक्का हमेशा से अकेला नहीं चला है। उनके साथ कुछ ऐसी महिलाएं रही हैं, जिनके नाम से इलाके के लोग कांपते रहे हैं और आज भी उनके नाम की चर्चाएं होती रहती हैं। हाथों मे बदूंक थामना वैसे तो हिम्मत और साहस की बात कही जाती है, लेकिन जब कोई महिला बंदूक थामकर बीहड़ों में कूदती है तो उसकी चर्चा बहुत ज्यादा होती है। चंबल के बीहडों में सैकडों की तादाद में महिला डाकुओं ने अपने आंतक का परचम लहराया है।

इस दरम्यान कुछ महिला डकैत पुलिस की गोली खाकर मौत के मुंह मे समा गईं तो कुछ गिरफ्तार कर ली गई या फिर कुछ महिला डकैतों ने आत्मसमर्पण कर दिया । इनमें से ऐसी ही कुछ महिला डकैत आज भी समाज में अपने आप को स्थापित करने में लगी हुई हैं । साथ ही ये महिला डकैत अपने बच्चों को भी समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने की जद्दोजहद कर रही हैं।

सं प्रदीप

जारी वार्ता

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