(अशोक कुमार साहू)
रायपुर 31 दिसम्बर(वार्ता)बीत रहा यह वर्ष छत्तीसगढ़ में 15 वर्षो से सत्ता पर काबिज रही भारतीय जनता पार्टी की विदाई एवं विपक्ष में बैठी कांग्रेस के दो तिहाई से भी अधिक बहुमत हासिल कर सत्ता में जोरदार वापसी के लिए याद किया जायेगा।
राज्य गठन के बाद पहली बार 2003 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने लगातार 2008 एवं 2013 में हुए चुनावों में भी सफलता अर्जित की,और सत्ता पर लगातार कब्जा जमाए रखा।जबकि इस बार गत नवम्बर में हुए विधानसभा चुनावों में उसे अप्रत्याशित रूप से राज्य के इतिहास में सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा।इसके साथ ही राज्य में तीसरी ताकत के रूप में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का भी उदय हो गया।
बीते विधानसभा चुनावों में सबसे दिलचस्प रहा कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य में पार्टी का 65 सीटों की जीत का लक्ष्य रखा था लेकिन उनके इस लक्ष्य से भी अधिक 68 सीटे कांग्रेस ने जीत ली और भाजपा महज 15 सीटों पर सिमट गई।राज्य में तीन चुनाव हार कर कांग्रेस जरूर विपक्ष में रही लेकिन विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 38 -39 के पास ही रही।राज्य में पहली बार किसी दल ने दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल कर सरकार बनाई।
राज्य में अब तक भाजपा एवं कांग्रेस की दो दलीय व्यवस्था की स्वीकार्यता रही है।कम्युनिस्ट दलों की स्वीकार्यता लगभग खत्म हो चुकी है।बसपा जरूर एक दो सीटे हासिल करती रही है।इस बार पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कांग्रेस छोड़कर बनाए गए जनता कांग्रेस ने बसपा के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर उसने तथा दो सीटों पर बसपा ने जीत दर्ज की।जनता कांग्रेस को चुनाव आयोग से इसके साथ ही राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता भी मिल गई।
प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता चुनाव जीत गए,जो सरकार के गठन के बाद भी मुश्किल का कारण बना हुआ है।चार दिग्गजों में मुख्यमंत्री के चुनाव में उतनी मुश्किल नही हुई जितनी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मंत्रियों के चयन में हुई।काफी कवायद के बाद मंत्रिपरिषद तो उन्होने गठित कर ली पर इसे लेकर उपजे सन्तोष को दूर करना उनके लिए बड़ा चुनौती बना हुआ है।मुख्यमंत्री पद के दो दावेदारों ताम्रध्वज साहू एवं टी.एस.सिंहदेव तो मंत्रिमंडल मंर जगह पा गए जबकि तीसरे सबसे वरिष्ठ डा.चरणदास महंत को अभी भी समायोजन का इंतजार है।
राज्य में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार मुख्यमंत्री समेत 13 मंत्री ही हो सकते है।इसके चलते अविभाजित मध्यप्रदेश में वरिष्ठ मंत्री रहे सत्यनारायण शर्मा,धनेन्द्र साहू जैसे दिग्गज जहां जगह नही पा सके,वहीं पार्टी के दिग्गज मोतीलाल वोरा के पुत्र अरूण वोरा,अविभाजित मध्यप्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री श्यामा चरण शुक्ला के पुत्र अमितेश शुक्ला,वरिष्ठ आदिवासी नेता रामपुकार सिंह,कई बार से लगातार चुनाव जीत रहे आदिवासी नेता अमरजीत भगत एवं मनोज मंडावी जैसे नेता मंत्री नही बन सके।
मंत्रिमंडल में जगह नही मिलने पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे धनेन्द्र साहू खुलकर आक्रोश जता चुके है।बस्तर के विधायक लखेश्वर बघेल के नाराज समर्थकों ने कई दिन रास्ता जाम कर विरोध जताया है।मंत्रिमंडल में अभी एक जगह रिक्त है,जिसे लेकर दावेदारों की दिल्ली दौड़ जारी है।मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पद लिखकर राज्य की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए राज्य में 15 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत मंत्री नियुक्त करने के लिए संविधान संशोधन का अनुरोध किया है।इसे उनकी वंचित नेताओं के आक्रोश को कम करने का जहां प्रयास बताया जा रहा है,वहीं इस पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने चुटकी भी ली है।
सत्ता परिवर्तन के साथ ही यह वर्ष राजनीतिक टकराव के लिए भी याद किया जायेगा।रमन सरकार के एक मंत्री की कथित अश्लील सीडी मामले में चुनाव अभियान के शुरू होते ही इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल को भी आरोपी बना दिया।श्री बघेल ने इसे राजनीतिक बदले की कार्यवाही बताते हुए अदालत में पेश हुए और जमानत लेने से मना कर दिया।बघेल के जेल जाने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राज्यभर में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया।श्री बघेल को पार्टी नेतृत्व के निर्देश पर आखिरकार जमानत लेनी पड़ी।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा बिलासपुर में तत्कालीन मंत्री अमर अग्रवाल के घर पर प्रदर्शन एवं कथित रूप से कचरा फेंकने की घटना के बाद पुलिस ने जिला कांग्रेस कार्यालय में घुसकर बर्बरतापूर्ण ढ़ग से लाठीचार्ज किया।इस घटना की व्यापक प्रतिकिया हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने भी कांग्रेस कार्यालय में घुसने की पुलिस कार्रवाई को गलत बताया।कांग्रेस ने राज्यभर में इसका विरोध किया।घटना के विरोध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने जाते समय श्री बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई।
राज्य वर्षभर नक्सली वारदातों से जूझता रहा।नक्सली वर्षभर निर्दोष लोगो एवं सुरक्षा बलों का खून बहाते रहे।छिटपुट घटनाओं के इतर जिन बड़ी घटनाओं ने दहलाया उनमें प्रमुख 13 मार्च को नक्सलियों ने एंटी लैंड माइन को विस्फोट से उड़ाने की घटना है जिससे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल(सीआरपीएफ) के नौ जवान शहीद हो गए। 21 मई को दंतेवाड़ा जिले में मदारी नाले के पास सुरक्षा बलों को नक्सलियों ने विस्फोट से उड़ा दिया जिसमें सात जवान शहीद हो गए।27 अक्टूबर को बीजापुर में बारूदी सुरंग विस्फोट से सीआरपीएफ के चार जवान शहीद हो गए।
इसी वर्ष 30 अक्टूबर को दंतेवाड़ा के अरनपुर क्षेत्र में नक्सलियों के घात लगाकर किए हमले मंल सुरक्षा बलों के दो जवानों के साथ ही दूरदर्शन का एक कैमरामैन शहीद हो गया।नक्सलियों ने 08 नवम्बर को दंतेवाड़ा के बचेली में केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल(सीआईएसएफ)का एक जवान एवं चार नागरिक शहीद हो गए।सुरक्षा बलों ने भी कई सफल आपरेशन किए जिसमें बड़ी संख्या में नक्सली मारे गए।
चुनावी वर्ष होने के कारण राज्य में वर्षभर आन्दोलन होते रहे।राज्य के इतिहास में पहली बार पुलिस कर्मियो की विभिन्न मांगों को लेकर उनके परिजन सड़कों पर उतरे।जिलों में आन्दोलन करने के बाद तमाम सुरक्षा प्रबन्धों को धता बताते हुए राजधानी में भी परिजनों ने पहुंचकर विरोध प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी दी। राज्य के दो लाख शिक्षाकर्मी भी संविलियन की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे.सरकार को आखिरकार उनकी मांग माननी पड़ी।
झारखंड की सीमा से जुड़े राज्य के सरगुजा संभाग में पत्थरगढ़ी आन्दोलन भी इस वर्ष के प्रमुख आन्दोलनों में एक है जिसने सरकार एवं पुलिस को परेशान कर दिया।जशपुर जिले के एक गांव से इसकी शुरूआत हुई।आन्दोलनकारियों ने गांव में पत्थर गाड़कर अपना संविधान लागू करने की बात उसमें लिखी। प्रशासन एवं पुलिस ने पत्थर तुड़वा दिया तो लोग विरोध पर उतर आए।पुलिस ने पूर्व आईएएस समेत कई लोगो को गिरफ्तार कर आन्दोलन को सख्ती से दबा दिया।
भारतीय इस्पात प्राधिकरण के भिलाई इस्पात संयंत्र में गैस रिसाव की घटना ने राज्यवासियों को झकझोर दिया। 09 अक्टूबर को हुई इस घटना में 12 कर्मचारियों की मौत हो गई,और 10 से अधिक झुलस गए।घटना में मारे गए लोगो के शव इस कदर झुलस गए थे कि उनकी पहचान डीएनए के जरिए कर परिजनों को शव सौंपे गए। इसी वर्ष 14 अक्टूबर को डोगरगढ़ से देवी दर्शन कर लौट रहे एसयूवी वाहन की ट्रक से हुई टक्कर में 10 लोगो की मौत ने भी लोगो को झकझोर दिया।
वर्ष के आखिरी महीने में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद बनी नई भूपेश सरकार ने शपथ ग्रहण करने के बाद से ही सौगातों की ताबडतोड़ बरसात शुरू कर दी,जिससे किसानों को सबसे बड़ी राहत मिली हैं।शपथ लेने के बाद उसी दिन मंत्रिपरिषद की पहली बैठक में सरकार ने 30 नवम्बर 18 तक के किसानों द्वारा लिए गए 6100 करोड रूपए के अल्पकालीन ऋणों को माफ करने का निर्णय लिया।इसके तहत सहकारी समितियों एवं ग्रामीण बैकों का कर्ज तुरंत माफ करने एवं राष्ट्रीयकृत बैकों से लिए अल्पकालीन कृषि ऋणों को परीक्षण के उपरान्त माफ करने की कार्रवाई करने का निर्णय लिया।
मंत्रिपरिषद ने एक और चुनावी वादा पूरा करते हुए पहली बैठक मे ही समर्थन मूल्य पर 2500 रूपए प्रति क्विंटल धान खरीद करने का निर्णय लिया।केन्द्र सरकार ने समर्थन मूल्य पर धान खऱीद की दर 1750 रूपए प्रति क्विंटल तय की है,शेष 750 रूपए का वहन राज्य सरकार स्वयं करेंगी।इस बैठक में ही बस्तर की झीरम घाटी में 25 मई 2013 में हुए नक्सल हमले में लगभग 30 लोगो के मारे जाने की घटना में कथित राजनीतिक षडयंत्र की जांच के विशेष जांच दल(एसआईटी)गठित करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई।नई सरकार ने कल ही पांच डिसमिल से कम रकबे की खरीदी-बिक्री पर रोक निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों को बड़ी राहत प्रदान की।राज्य सरकार ने इसके साथ ही एक नई शुरूआत करते हुए बस्तर के लोहड़ीगुड़ा में टाटा के लिए अधिग्रहित दो हजार हेक्टेयर जमीन को उद्योग नही लगने के कारण किसानों को वापस करने का भी निर्णय लिया।
वार्ता