पुण्यतिथि 14 दिसंबर के अवसर पर
मुंबई 13 दिसंबर (वार्ता) दो दशक से अधिक समय तक करीब 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर व्यक्ति स्वयं को ऐसे समाहित सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो।
अपने गीतों की रचना की प्रेरणा उन्हें मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की कोई साधारण सी बात क्यों न हो वह अपने गीतों के जरिये जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे।
पश्चिमी पंजाब के रावलपिंडी शहर (अब पाकिस्तान) में 30 अगस्त 1923 को जन्मे शंकर दास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र अपने भाईयों में सबसे बड़े थे। उनके बचपन में ही उनका परिवार रावलपिंडी छोड़कर मथुरा चला आया। जहां उनकी माता पार्वती देवी की मौत से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उनका ईश्वर पर से सदा के लिये विश्वास उठ गया।
अपने परिवार की परंपरा को निभाते हुये शैलेन्द्र ने वर्ष 1947 में अपने करियर की शुरुआत मुंबई में रेलवे की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। रेलवे की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। आफिस में अपने काम के समय भी वह अपना ज्यादातर समय कविता लिखने मे ही बिताया करते थे जिसके कारण उनके अधिकारी उनसे नाराज रहते थे।
इस बीच शैलेन्द्र देश की आजादी की लड़ाई से जुड़ गये और अपनी कविता के जरिये वह लोगों में जागृति पैदा करने लगे। उन दिनों उनकी कविता “जलता है पंजाब” काफी सुर्खियों में आ गयी थी। शैलेन्द्र कई समारोह में यह कविता सुनाया करते थे।
गीतकार के रूप में शैलेन्द्र ने अपना पहला गीत वर्ष 1949 में प्रदर्शित राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’ के लिये “बरसात में तुमसे मिले हम सजन” लिखा था। इसे संयोग ही कहा जाये कि फिल्म ‘बरसात’ से ही बतौर संगीतकार शंकर जयकिशन ने अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद शैलेन्द्र राज कपूर के चहेते गीतकार बन गये।
इसके बाद शैलेन्द्र और राज कपूर की जोड़ी ने कई फिल्में एक साथ की। इन फिल्मों में ‘आवारा’ ‘आह’ ‘श्री 420’ , ‘चोरी चोरी’ ‘अनाड़ी’ , ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’ ‘तीसरी कसम’ , ‘एराउंड द वर्ल्ड’, ‘दीवाना सपनों का सौदागर’ और ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी फिल्में शामिल है।
राज कपूर के साथ शैलेन्द्र की मुलाकात एक कवि सम्मेलन के दौरान हुयी थी। राज कपूर को शैलेन्द्र के गाने का अंदाज बहुत भाया और उन्हें उसमें भारतीय सिनेमा का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया। राज कूपर ने शैलेन्द्र से अपनी फिल्मों के लिए गीत लिखने की इच्छा जाहिर की किन्तु शैलेन्द्र को यह बात रास नहीं आयी और उन्होंने उनकी पेशकश ठुकरा दी लेकिन बाद में घर की कुछ जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने राज कपूर से दोबारा संपर्क किया और अपनी शर्तों पर ही राज कपूर के साथ काम करना स्वीकार कर लिया।
राज कपूर के अलावा शैलेन्द्र की जोड़ी निर्माता-निर्देशक विमल राय के साथ भी खूब जमी। शैलेन्द्र अपने करियर के दौरान प्रोग्रेसिव रायटर्स एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बने रहे। वह इंडियन पीपुल्स थियेटर ‘इप्टा’ के भी संस्थापक सदस्यों में से एक थे। शैलेन्द्र को उनके गीतों के लिये तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
शैलेन्द्र के सिनेसफर में उनकी जोड़ी प्रसिद्ध संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ खूब जमी और उनके बनाये गाने जबर्दस्त हिट हुये। शैलेन्द्र ने ‘बूट पालिश’, ‘श्री 420’ और ‘तीसरी कसम’ में अभिनय भी किया था। इसके अलावा
उन्होनें फिल्म ‘परख’ 1960 के संवाद भी लिखे थे।
शैलेन्द्र ने वर्ष 1966 में ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किया लेकिन बॉक्स आफिस पर इसकी असफलता के बाद उन्हें गहरा सदमा पहुंचा उसके बाद उनके मित्रों ने उन्हें किसी प्रकार का सहयोग करने से इनकार कर दिया। मित्रों की बेरूखी और फिल्म तीसरी कसम की असफलता के बाद उन्हें कई बार दिल का दौरा पड़ा।
13 दिसंबर 1966 को अस्पताल जाने के क्रम में उन्होंने राज कपूर को आर के कॉटेज में मिलने के लिये बुलाया जहां उन्होंने राज कपूर से उनकी फिल्म मेरा नाम जोकर के गीत “जीना यहां मरना यहां” को पूरा करने का वादा किया। लेकिन वह वादा अधूरा ही रहा और अगले ही दिन 14 दिसंबर 1966 को उनकी मृत्यु हो गयी। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि उसी दिन राज कपूर का जन्मदिन भी था।
वार्ता