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जनप्रतिनिधियों को अधिकार, विशेषाधिकार के साथ कर्तव्य भी जानना चाहिए: नकवी

जनप्रतिनिधियों को अधिकार, विशेषाधिकार के साथ कर्तव्य भी जानना चाहिए: नकवी

लखनऊ 17 जनवरी(वार्ता)केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शुक्रवार को यहां कहा कि जनप्रतिनिधियों को अपने अधिकार, विशेषधिकार के साथ कर्तव्य भी जानना चाहिए।

श्री नकवी ने यहां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र के दो दिवसीय सातवें सम्मेलन के दूसरे दिन विशेष सत्र को संबोधित करते हुये कहा कि जनप्रतिनिधियों को अपने अधिकार, विशेषधिकार के बारे में तो पता होता है, लेकिन कर्तव्य भी जानना चाहिए। यह जनप्रतिनिधियों व जनता दोनों के हित में है। भारतीय संविधान में एक तरफ अनुच्छेद 105 संसद और विधानसभाओं की शक्तियों और विशेषाधिकारों को सुनिश्चित करता है। वही अनुच्छेद 51 ए पर भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों के बारे में बात करता है।

उन्होंने कहा कि जन कल्याण के सवाल उठाना, अनसुलझे सवाल उठाना, भी जरूरी है। कई सदस्य तो पूरे पांच साल तक कारवाई में भाग नहीं लेते या बोलते नहीं। जन प्रतिनिधियों को इस संबंध में आम लोगों के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा देश न केवल सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में उभरा है, बल्कि फल-फूल रही संसदीय प्रणाली के साथ एक जीवंत, बहुसंस्कृति के एक चमकते प्रतीक के रूप में भी है। संविधान में समाज के सभी वर्ग के लोगों को सुरक्षा के अधिकार दिये गये है।

श्री नकवी ने कहा कि संख्या से नहीं प्रभावशाली भूमिका निभाने से सांसद या विधायक की पहचान बनती है। सदन स्थगित करा देने से नुकसान ही होता है। केंद्र सरकार ने 2014 से अब तक 1800 सौ कानून खत्म किये। कई बार कानून इसलिये प्रभावी नहीं हो पाता है क्योंकि इसकी नियमावली विभाग नहीं बना पाते। केंद्र सरकार ने तय किया कि जो विधेयक आयेंगे उनकी नियमावली भी पहले से बनेंगी।

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि अधिकार और जिम्मेदारियाँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों एक साथ चलते हैं। यदि हमारे पास अधिकार हैं, तो उन अधिकारों के लिए हमारी भी कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं। हम जहाँ भी रह रहे हैं, चाहे वह घर, समाज, गाँव, राज्य या देश में हो। अधिकार और जिम्मेदारियां हमारे साथ चलती हैं। उन्होंने कहा कि देश के एक अच्छे नागरिक के रूप में, हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों को जानना और सीखना होगा और उन्हें समाज और देश के कल्याण के लिए जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए। यदि व्यक्तिगत कार्यों के माध्यम से जीवन को बदला जा सकता है, तो समाज में किए गए सामूहिक प्रयास देश और पूरे समाज में सकारात्मक प्रभाव क्यों नहीं ला सकते हैं। समाज और पूरे देश की समृद्धि और शांति के लिए मौलिक कर्तव्यों को पूरा करना आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि प्रभावी कानूनों को पारित करने के लिए विधानमंडलों को अपने सदस्यों की ओर से समय, ऊर्जा, सूचना और विचार की आवश्यकता होती है। विधायी कार्य विधायकों का ध्यान केंद्रित और क्षमता निर्माण संसदीय लोकतंत्र की सफलता में सर्वोपरि महत्व रखता है। उन्होंने कहा जैसा कि हम सभी जानते हैं, आज के युग में नीति-निर्माण कभी भी विकसित हो रहा है और बदलती सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं के मद्देनजर, यह केवल बड़े पैमाने पर सार्वजनिक ही नहीं बल्कि विभिन्न समूहों के काम करने की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होने के लिए विधानों पर निर्भर है।

भंडारी

वार्ता

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