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जल संसाधन की कमी का वैश्विक असर की संभावना

हरिद्वार 26 फरवरी (वार्ता) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की (आईआईटी रुड़की) राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की (एनएचआई रुड़की) के सहयोग से बुधवार को शुरू हुए जल सम्मेलन-2020 (आरडब्ल्यूसी) में जल संसाधन की कमी का वैश्विक प्रभाव पड़ने की संभावना व्यक्त की गयी।
इस तीन दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन वक्ताओं ने कहा कि विकास के शुरुआती दौर से गुजर रहे देशों पर इस जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था मुख्यतया कृषि पर निर्भर होती है। इस द्वि-वार्षिक आयोजन का पहला संस्करण आरडब्ल्यूसी-2020 आईआईटी रुड़की में शुरू हुआ और इसका समापन 28 फरवरी को होगा।
आरडबल्यूसी-2020 के पहले संस्करण का विषय ‘हाइड्रोलॉजिकल आस्पेक्ट्स ऑफ क्लाइमेट चेंज’ है। जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों पर उसके प्रभाव सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक हैं। कई अध्ययनों में यह अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अगले सौ वर्षों में वैश्विक तापमान बढ़ जाएगा। यह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को और अधिक प्रासंगिक बनाता है।
केन्द्रीय जल आयोग के अध्यक्ष आर.के. जैन ने उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर देश में जल संसाधन प्रबंधन की समस्या पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “केवल 2.4 प्रतिशत भूमि क्षेत्र होने के बावजूद भारत के पास दुनिया के ताजे पानी के संसाधनों का लगभग चार प्रतिशत है। यह भारत को वैश्विक औसत की तुलना में एक बेहतर स्थिति प्रदान करता है।”
आईआईटी रुड़की के विशिष्ट विजिटिंग प्रोफेसर और गेस्ट ऑफ ऑनर प्रो. वी. पी. सिंह ने कॉन्क्लेव के अध्यक्ष और सह-अध्यक्ष को बधाई देते हुए कहा,“यह श्रृंखला रुड़की के उत्कृष्ट और समृद्ध संस्कृति को बढ़ाने और बनाए रखने में योगदान देगा, जिसके लिए रुड़की दुनिया भर में जाना जाता आरडब्ल्यूसी का एक खास आकर्षण नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के कार्यों की एक प्रदर्शनी है।”
नमामि गंगे भारत सरकार का एक फ्लैग्शिप प्रोग्राम है। एनएमसीजी आरडब्ल्यूसी के तुरंत बाद अर्थात 29 फरवरी और एक मार्च, 2020 को स्कूली छात्रों के लिए दो दिवसीय प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा।
एनआईएच रुड़की के निदेशक डॉ. शरद के. जैन ने कहा, “प्रत्याशित ग्लोबल वार्मिंग और पेय-जल स्रोत पर इसका परिणामी प्रभाव एक गंभीर चुनौती है, जिसका वैश्विक आबादी पर व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका है।”
आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत के. चतुर्वेदी ने कहा,“आरडब्ल्यूसी का पहला दिन थीम पर केंद्रित था और मुझे खुशी है कि भारत तथा दुनियाभर से आए विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये।”
सं.संजय
वार्ता
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