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जलवायु परिवर्तन से 32 लाख टन घटेगा दूध का उत्पादन

जलवायु परिवर्तन से 32 लाख टन घटेगा दूध का उत्पादन

(अरूण कुमार सिंह से)


नयी दिल्ली, 14 फरवरी (वार्ता) जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा तापमान में वृद्धि से केवल कृषि क्षेत्र पर ही नहीं बल्कि दुधारु पशुओं पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा जिसके चलते दूध उत्पादन में 2020 तक 32 लाख टन की कमी होने का अनुमान है।

वैज्ञानिक अध्ययनों में कहा गया है कि तापमान में हो रही वृद्धि के कारण गाय और भैंस के दूध देने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा जिससे अगले दो साल में दूध का उत्पादन 32 लाख टन तक की कमी अा सकती है । दूध की वर्तमान कीमत से यह नुकसान सालाना 5000 करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है ।

वातावरण में आये बदलाव का सबसे अधिक प्रभाव वर्ण संकरित गायों पर होगा जिनमें जर्सी और हालस्टीन फ्रीजियन शामिल है। इसके बाद इसका असर भैंस पर होगा । इसके कारण पशुओं की न केवल प्रजनन क्षमता प्रभावित होगी बल्कि दूध उत्पादन भी कम होगा । वर्ण संकरित गायों में गर्मी सहन करने की क्षमता कम होने के साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है । इससे उनके सबसे अधिक प्रभावित हाेने की आशंका है। देश में वर्ण संकरित गायों की संख्या करीब चार करोड़ है।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 19 करोड़ गोपशु है जिनमें से 20 प्रतिशत विदेशी नस्ल की गायें हैं जबकि 80 प्रतिशत देसी नस्ल की हैं । देश में कुल दूध उत्पादन में विदेशी नस्ल की गायों का योगदान 80 प्रतिशत है जबकि देसी नस्ल का 20 प्रतिशत है। सरकार ने 2020..21 तक 27.5 करोड़ टन दूध उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है ।

भारत विश्व में सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और यहां प्रति व्यक्ति 355 ग्राम दूध उपलब्ध है लेकिन दुधारु पशुओं की उत्पादकता विदेश की तुलना में काफी कम है । विश्व में दुधारु पशुओं की सालाना औसत उत्पादकता 2206 किलोग्राम है जबकि यहां 1698 किलोग्राम ही है ।

देसी नस्ल की गायों में प्राकृतिक गर्मी सहन करने की क्षमता अधिक है जिसके कारण वे जलवायु परिवर्तन का दबाव झेलने में सक्षम हैं। इसके साथ ही इनकी शारीरिक संरचना ऐसी है जिससे उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक है । इसके साथ ही इनमें परजीवी कीटों के हमले को सहन करने की शक्ति अधिक है ।

अमेरिका , अास्ट्रेलिया , ब्राजील जैसे देशों ने अपनी गायों को तापमान में वृद्धि से बचाने के उपाय करने के लिये बड़े पैमाने पर शोध कार्य शुरु किया है। इसके लिये उन्होंने भारतीय नस्ल की गायों का आयात किया है और उन पर लगातार अनुसंधान कर रहे हैं । इससे इन देशों के दुधारु पशुओं के दूध उत्पादन क्षमता में भारी वृद्धि हुयी है ।

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को देखते हुए देश में 40 देसी नस्ल गायों और 13 नस्ल की भैंसों के वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण एवं विकास के लिए राष्ट्रीय गाेकुल मिशन चलाया जा रहा है । इस कार्यक्रम के तहत पशुओं के आनुवांशिक सुधार पर विशेष बल दिया जा रहा है ।

 

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