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दिल्ली में प्रदूषण पराली जलाने से नहीं अरावली के क्षय होने से हो रहा है-बघेल

दिल्ली में प्रदूषण पराली जलाने से नहीं अरावली के क्षय होने से हो रहा है-बघेल

जयपुर, 18 फरवरी (वार्ता) पर्यावरण संरक्षण के लिये लम्बे समय से काम कर रहे प्रसिद्ध पर्यावरणविद हरित ऋषि विजयपाल बघेल ने कहा है कि दिल्ली में जो प्रदूषण होता है वह पराली जलाने या दिवाली पर पटाखे चलाने से नहीं बल्कि राजस्थान के अरावली पर्वतमाला के लगातार क्षय होने के चलते हो रहा है।

श्री बघेल ने मंगलवार को यहां पत्रकारों से कहा कि दिल्ली में प्रदूषण के लिये पराली को दोष दिया जाता है, जबकि पराली जलाने से मात्र आठ प्रतिशत प्रदूषण होता है, पांच प्रतिशत पटाखे और अन्य कारणों से प्रदूषण होता है। सरकार सारा दोषी किसानों पर डालकर पराली जलाने पर उन्हें जेल में डाल देती है, जबकि 27 प्रतिशत वाहनों और शेष पेड़ों के घटने की वजह से हो रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण की मुख्य वजह राजस्थान में अरावली पर्वतमाला को तहस नहस करना है। अरावली पर्वतों को बुरी तरह खोद डाला गया है।

श्री बघेल ने कहा कि यह समस्या 20-25 वर्ष पहले नहीं थी। दरअसल प्रदूषण की मुख्य वजह अफगानिस्तान से आने वाली धूल है। अफगानिस्तान से हवा के सहारे आने वाली धूल राजस्थान से गुजरते हुए दिल्ली और एनसीआर की ओर जाती है। यह धूल राजस्थान में अरावली पर्वतमाता से टकराकर रुक जाती थी। इससे प्रदूषण नियंत्रित रहता था, लेकिन अरावली पर्वतमाला के तहस नहस होने से धूल निर्बाध दिल्ली की ओर जाती है, इससे दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति तक बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण के चलते आक्सीजन की मात्रा करीब 12 प्रतिशत रह गयी है जबकि 21 प्रतिशत होनी चाहिए। चिंताजनक स्थिति यह है कि आक्सीजन छह प्रतिशत से कम होने पर सांस नहीं ली जा सकती। यह भयावह स्थिति है।

श्री बघेल ने प्रदूषण घटाने का उपाय बताते हुए कहा कि उनके सुझाव पर केंद्र सरकार अफ्रीकी देशों की तर्ज पर ग्रीन वाल ऑफ इंडिया बनाने की 10 वर्षीय परियोजना पर काम कर रही है। इसके लिये सर्वे शुरु हो गया है। 1600 किलोमीटर लम्बी ग्रीनवाल पोरबंदर से कुरुक्षेत्र तक बनाने की योजना है। इस योजना के पूरी होने से अरावली की आठों नदियां पुनर्जीवित होंगी। इससे पर्यावरण का सिस्टम भी ठीक हो जायेगा।

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही लोगों को अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिये भी प्रेरित किया जा रहा है। पेड़ आक्सीजन का मुख्य स्रोत हैं। फिलहाल विश्व में पेड़ों की संख्या प्रति व्यक्ति 422 है, जबकि हमारे देश में मात्र 28 ही है। पेड़ों के संरक्षण के लिये जरूरी है कि पेड़ों को जीवित प्राणी का दर्जा दिया जाये। जनगणना के साथ ही पेड़ों की भी गणना की जाये चाहिए, आधार कार्ड की तरह उनका भी कार्ड बनाया जाये।

श्री बघेल ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिये वह 19 दिसम्बर पोरबंदर ये पांच करोड़ी पगयात्रा पर रवाना हुए थे, उनकी पगयात्रा 100वें दिन कुरुक्षेत्र में 21 मार्च को समाप्त होगी।

सुनील

वार्ता

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