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देश के सर्वाधिक घड़ियाल और मगरमच्छ चम्बल में मौजूद

देश के सर्वाधिक घड़ियाल और मगरमच्छ चम्बल में मौजूद

औरैया, 25 जून (वार्ता) उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के ठेठ बीहड़ों के बीच विचरण करने वाली स्वच्छ नदी चंबल में भारी संख्या में घड़ियालों और मगरमच्छों ने अपना आशियाना बना लिया है।

औरैया, जालौन, इटावा, भिंड की सीमा पर पचनद तीर्थस्थल है, यहाँ पाँच नदियों यमुना, चम्बल, क्वारी, सिंध और पहुज का संगम होता है। अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव भीम ने यहां भगवान शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी। पचनद की एक नदी चम्बल जिसका पानी अन्य चारों नदियों से ज्यादा साफ और गहरा है। स्वच्छ पानी के चलते ही इस क्षेत्र में चम्बल नदी में बड़ी संख्या में घडियालों, मगरमच्छों, डॉल्फिनों को आसानी से देखा जा सकता है।

मगरमच्छ और घड़ियाल कभी-कभी नदी से बाहर तलहटी में आ जाते है, अंडे भी बाहर ही करते है। जानकारों की माने तो पचनद से लेकर इटावा के चकरनगर तक चम्बल नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ देश में सबसे ज्यादा यहीं पाये जाते है। अकेले इस क्षेत्र (पचनद से चकरनगर) की चम्बल नदी में 300 से ज्यादा घड़ियाल और मगरमच्छ पाये जाते है।

हाल ही में मादा घड़ियालों ने लगभग 240 घडियालों को जन्म दिया है। घड़ियालों और मगरमच्छों के डर से सामान्य लोग इस क्षेत्र में चम्बल के किनारे नहीं जाते है। मगरमच्छों और घडियालों का रैन बसेरा हमेशा स्वच्छ और गहरे पानी में ही होता है, इसलिये इनके रहने और विचरने की सीमा पचनद के पहले ही समाप्त हो जाती है क्योंकि चम्बल के अलावा अन्य चारों नदियां प्रदूषित है।

पर्यावरणविद दीपक विश्नोई का कहना है कि पचनद क्षेत्र का वातावरण बहुत ही सुरम्य और सुंदर है। चंबल राजस्थान से मध्य प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश में यमुना में मिलती है, जहां यह मिलती है उस क्षेत्र को पचनद कहते हैं क्योंकि यहीं पर सिंधु, पहुच और क्वारी नदी भी यमुना में मिलती है। पचनद मुख्य रूप से औरैया इटावा, जालौन व भिंड जनपद की सीमाओं पर स्थित है।

उन्होंने बताया कि पिछले 7-8 सालों में चंबल नदी में पानी का बहाव लीन पीरियड (ग्रीष्म काल व शीत ऋतु) में गिरता जा रहा है, जिसका मुख्य कारण मध्यप्रदेश में कई स्थानों गांवों व शहरी क्षेत्र में जलापूर्ति के लिए चंबल का जल लगातार लिया जा रहा है।

विश्नोई ने कहा जिस कारण जलीय जीव जंतुओं को जल का आवश्यक उत्प्रवाह, जिसे मिनिमम एनवायरमेंट फ्लो भी कहते हैं वो नहीं मिल पा रहा है। शायद उस उत्प्रवाह का अध्ययन या विश्लेषण न हुआ हो, जबकि उसका अध्ययन या विश्लेषण करके वो ही फ्लो चंबल में सदैव मेंनटेन रहना चाहिए ताकि यहां के जलीय जीव जंतुओं की पूरी सुरक्षा की जा सके। कोटा बैराज से कितना फ्लो छोड़ा जाना चाहिए उसका मुख्य रूप से अध्ययन होना चाहिए और कोटा बैराज से उतना फ्लो सदैव चंबल में छोड़ा जाना चाहिए, विशेष कर लीन पिरियड में यह उत्प्रवाह बेहद जरूरी है।

पर्यावरणविद ने बताया कि 1979 में भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र को सेंचुरी घोषित किया गया था। चंबल नदी के पूरे सेंचुरी क्षेत्र (पचनद से वाह आगरा) में लगभग 18 सौ घड़ियाल, 600 मगरमच्छ और सौ के करीब डॉल्फिन हैं, जलीय जीव जंतुओं का यह एक तरह से केन्द्र है। यहां भारत की किसी भी नदी से ज्यादा घड़ियाल हैं, इनको संरक्षित तभी किया जा सकता है जब पानी का प्रवाह लगातार रहे और इनका शिकार न हो।

उन्होंने बताया कि पचनद पर कालेश्वर महादेव का सिद्ध मंदिर है जिस कारण यहां का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। यहां पर अन्य कई छोटे बड़े तीर्थ स्थल भी हैं। ये क्षेत्र महाभारत काल से भी जुड़ा है, किंवदंती है कि कालेश्वर महादेव की स्थापना पांडव भीम ने पूजा अर्चना कर की थी। यहां की और भी कई कहानियां प्रचलित हैं, बकासुर का वध भी यही पर हुआ था जिस कारण एक स्थान का नाम बकेवर है जो इटावा में है। धार्मिक के साथ-साथ जलीय जीव जंतुओं के प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पचनद का ये क्षेत्र है।

सं प्रदीप

वार्ता

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