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देश विदेश में विख्यात रटौल आम अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है

देश विदेश में विख्यात रटौल आम अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है

बागपत, 12 मार्च (वार्ता) बढ़ते प्रदूषण और प्रशासन की उपेक्षा के चलते देश विदेश में विख्यात करीब 13 हजार हेक्टेयर में फैला उत्तर प्रदेश के बागपत का रटौल आम आज अपने अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है।

         प्रशासन की उपेक्षा के चलते आम उत्पादक किसानों का मोह अब आम की फसल से भंग हो रहा है। यहां के बागवान और किसान आम की फसल को छोड़कर दूसरी फसल की ओर रुख करने को मजबूर है। रटौल निवासी पूर्व जिला पंचायत सदस्य एवं ग्राम प्रधान पति डा़ जाकिर हसन के अनुसार करीब दो दशक पहले रटौल गांव और उसके आसपास के करीब 13 हजार हेक्टेयर भूमि पर आम के बाग थे।

बागपत जिला बनने के बाद रटोल आम पट्टी का कुछ हिस्सा गाजियाबाद में मोदीनगर इलाके के खिंदौड़ा, पतला और निवाड़ी आदि गांव तक फैला है। तेजी से बढ़ती आबादी के चलते सिमटते सिमटते मात्र दो हजार हेक्टेयर से भी कम क्षेत्र में आम के बाग रह गये हैं।

आम के बाग रटौल गांव के अलावा मुबारकपुर,बड़ागांव, गौना आदि गांव के आसपास थे। आज हालात यह है कि आम की फसल शत प्रतिशत समाप्ति के कगार पर है। क्योंकि जो पेड़ बचे हैं उन पर भी बोर तो आता है लेकिन बढ़ते प्रदूषण और ईंट भट्टों के कारण आम न के बराबर ही आते हैं।

         डॉ0 हसन का कहना है कि रटौल का आम कभी निर्यात तो हुआ नहीं लेकिन यह देश विदेश में अपनी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है । वर्ष 1937 में रटोल निवासी आम उत्पादक इसरार उल हक ने लंदन में बेहतर प्रजाति के लिए पुरस्कार प्राप्त किया था। इसके अलावा सन 1995 में रटौल निवासी आम उत्पादक जावेद अफरीदी ने भी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आम के बेहतर उन्नत प्रजाति का उत्पादन करने के लिए पुरस्कार प्राप्त किया था। श्री हसन ने बताया कि रटौल की मुख्य आम प्रजाति करीब एक दर्जन हुआ करती थी जिनमें मुख्य रूप से दशहरी,सरोली ,दूधिया गौला, रामकेला,खसुलखश, मख्शूश, गुलाबजामुन, चौसा, सुरमई, नीमचा,रटौल,लंगड़ा, जुलाई वाला आदि प्रजाति शामिल है।

          उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र को शासन की ओर से फल पट्टी घोषित किया जा चुका है। जबकि सुविधा के नाम पर आज तक किसानो को कुछ नहीं मिला। फल पट्टी क्षेत्र घोषित होने के बाद भी यहां पर प्रदूषण भारी मात्रा में है। जिसकी वजह इस बेल्ट में लगे करीब 200 से अधिक ईट भट्टे हैं। ईट भट्टों के धुएं से आम के पेड़ों पर न तो बोर आ पाता है और न ही फल। जिसकी वजह से आम उत्पादक भुखमरी के कगार पर हैं। फल पट्टी घोषित होने की वजह से यहां पर न तो उद्योग धंधे लग पा रहे हैं और न ही कोई दूसरे काम धंधे यहां के किसान कर पा रहे हैं। आम उत्पादकों की मांग है कि यहां से फल पट्टी की घोषणा को वापस लिया जाए और नए नए कारखाने खोले जाएं ताकि यहां के लोग अपनी आजीविका चला सके। क्षेत्र के किसानों की ओर से प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी पत्र भेजा है।

          आम उत्पादकों के अनुसार रटौल के आम का आनंद देश विदेश की नामचीन हस्तियां भी ले चुकी हैं आम उत्पादकों का कहना है कि यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह, राष्ट्रीय लोक दल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी, प्रदेश के पूर्व नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खान समेत कई नामचीन हस्तियां यहां आम की दावत में भाग लेकर आम का लुफ्त उठा चुकी हैं। आम उत्पादक चौधरी इरशाद, अशफाक अहमद, जाहिद, नूरु पहलवान, चौधरी तहसीम, बृजलाल गांधी, अशोक पंजाबी आदि आम उत्पादकों का कहना है कि वे प्रशासन की उदासीनता से परेशान होकर आम के बाग कटवा रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने आम के बाग कटवाकर दूसरी खेती करना शुरू कर दिया है।

         किसानो का कहना है कि बागपत की जलवायु अब आम की फसल के लिए मुफीद नहीं है । किसानों का कहना है प्रदूषण के कारण यहां का प्रसिद्ध आम कभी भी निर्यात के काबिल नहीं हुआ। उनका कहना है कि सहारनपुर, शाहजहांपुर, किठौर, हसनपुर गजरौला बेल्ट में जो आम का उत्पादन होता है उसका साइज़ यहां के रटौल आम से बड़ा होता है। यहां का रटौल आम सुगंधित तो है लेकिन उसका साइज बहुत छोटा है, जिससे उसका निर्यात आज तक नहीं हो सका। उधर, प्रदूषण विभाग के पूर्व वैज्ञानिक डॉ चंद्रवीर सिंह राणा का कहना है कि जब तक ईट भट्ठों पर पर्यावरण सुरक्षा सिस्टम नहीं लगाए जाते, तब तक ईट भट्ठों को चालू करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।



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