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नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर बखिरा झील को नहीं मिल सका पर्यटन स्थल का रूतबा

नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर बखिरा झील को नहीं मिल सका पर्यटन स्थल का रूतबा

संतकबीरनगर 19 अप्रैल (वार्ता) पर्यटन उद्योग की तमाम संभावनाओं को समेटे पूर्वी उत्तर प्रदेश में संतकबीरनगर जिले में स्थित बखिरा झील में प्रकृति ने चार चांद लगाये है लेकिन इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के प्रयास किसी सरकार ने नहीं किये।


    पर्यावरण प्रेमियो की शिकायत है कि चुनावी मौसम में झील को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का वादा राजनीतिक दल करते हैं लेकिन चुनाव बीतने के बाद ही इसे भूल जाते हैं। नतीजन, जिला मुख्यालय से लगभग 18 किमी दूर स्थित मोती झील के नाम से प्रसिद्ध बखिरा झील आज भी सुंदरीकरण को तरस रही है।

     वर्ष 1990 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने अधिसूचना जारी कर इस झील को पक्षी विहार घोषित किया था लेकिन लगभग 29 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली इस झील का सीमांकन आज तक नहीं हो सका। विभाग ने यहां रेंजर कार्यालय, नाविक, रूम और टावर की स्थापना की लेकिन इसके आगे नहीं बढ़ सका। इस परियोजना की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रेंजर कार्यालय तक पंहुचने के लिए एक अदद सड़क तक नहीं बन सकी है।

    बखिरा-सहजनवां मार्ग पर जसवल के निकट आधी-अधूरी सड़क बना दी गई है। ऐसे में यह झील पर्यटकों को अपनी तरफ कितना आकर्षित करेगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वहीं पक्षियों का शिकार करने के लिए शिकारी हाइटेक तरीके से पक्षियों का शिकार करते हैं। नशीली दवा झील के आस-पास पत्तों पर छिड़कने के बाद शिकारी पक्षियों को पकड़ लेते हैं। इसके बाद पहले से सेट तस्कर इन पक्षियों को ऊंची कीमत देकर शिकारियों से खरीद लेते हैं।

    वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि इस झील में दर्जनों प्रजाति के पक्षी विचरण करते हैं। यहां आने वाले  विदेशी पक्षियों में लालसर, ह्विलसील, कोचार्ड, सुर्खाब, गोजू, सवल, पिंटेल आदि हैं जबकि स्थानीय पक्षियों में कैमा, वाटरहेन, कारमेंट, बगुला, सारस समेत दर्जनों प्रजाति के पक्षियों की चहचहाट से झील गुलजार रहता है। झील को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की संभावना तलाश करने के लिए केन्द्र सरकार की चार सदस्यीय टीम ने करीब एक साल पहले झील के लिए तैनात विभागीय कर्मचारियों से जानकारी ली थी।

       उन्होने बताया कि टीम के सदस्य नाव पर बैठकर झील के अंदर भी गये थे। झील के अंदर टीम के सदस्यों ने पानी, वनस्पतियों, चिडियों तथा तितलियों को काफी करीब से देखा था। टीम के सदस्यों ने बताया था कि यह झील प्रकृति का वरदान है। इसके अस्तित्व को बचाने की आवश्यकता है। झील को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की काफी संभावनाएं हैं। यह झील मौसम के परिवर्तन को नियंत्रित करने के साथ , कीड़ों के शमन करता है और जलस्तर तथा तापमान को नियंत्रित कर रहा है।इसके बाद भी यह झील उपेक्षित है।

      सूत्राें के अनुसार यहां पर्यटन केंद्र बनने पर क्षेत्र के युवाओं को रोजगार प्राप्त होगा। इसके साथ ही यह झील जंगल की अपेक्षा 10 गुना अधिक कार्बन अवशोषित करता है। पानी में जो पौधे हैं वे अधिक कार्बन सोखते हैं। जलस्तर को ठीक करने के लिये झील का संरक्षण बेहद आवश्यक है। यहां 40-50 फिट पर पानी मिल जाता है वहीं कुछ स्थानों पर जलस्तर इतना नीचे चला गया है कि वहां 500 फिट तक पानी उपलब्ध नहीं है। स्वच्छ जल के लिए झील बेहद जरूरी है।

      इस संबंध में रेंजर अनूप वर्मा ने बताया कि केन्द्रीय टीम ने झील का निरीक्षण करने के बाद क्या योजना बनाई इसकी जानकारी नहीं हो सकी है। झील के संरक्षण की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए चिड़ियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बजट के अभाव में पक्षी विहार का। विकास रुका है। शासन इस पर गंभीरता से विचार कर रहा है।

 

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