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प्रकृति दे रही लॉकडाउन को धन्यवाद

प्रकृति दे रही लॉकडाउन को धन्यवाद

झांसी 04 जून (वार्ता) दुनिया और देशभर में कोविड -19 के कहर के कारण मची हाहाकार के बीच इससे निपटने के लिए लगाये गये देशव्यापी लॉकडाउन ने इंसान को जहां बंदिशों में रखा वहीं प्रकृति को फिर से सजने और संवरने का मौका दिया है। लॉकडाउन प्रकृति के लिए नायाब तोहफे की तरह आया जिसमें विभिन्न प्रकार के प्रदूषण पर लगी रोक ने पर्यावरण को खुद से खुद को ठीक करने का सुनहरा मौका दिया। 

बुंदेलखंड का जाे इलाका मई -जून के समय गर्मी से जलने लगता था और पानी के लिए त्राहिमाम मच जाता था। यहां पेड़ों के नाम पर पत्तीविहीन लकड़ी के ढूंढ ही नजर आते थे लेकिन इस लॉकडाउन के कारण यहां नजारा आजकल कुछ और ही है। लॉकडाउन के दौरान वाहन संचालन बहुत हद तक कम होने , उद्योग -धंधों पर रोक लगने से वायु प्रदूषण में, घरो और विभिन्न संस्थानों में एयरकंडीशनों के इस्तेमाल पर रोक से तापमान में जबरदस्त गिरावट आयी और अत्यधिक जल का इस्तेमाल करने वाली उद्योगों के बंद होने साथ ही उनसे निकलने वाले जहरीले रसायनों के रिसकर जमीन में जाने पर लगी रोक से भूजल का स्तर उतना नीचे नहीं गया जितना हमेशा जाता था। 

जाने माने समाजवेत्ता और पर्यावरणविद् उदयशंकर पांडेय ने यूनीवार्ता से खास बातचीत में कहा कि इंसान के लालच से छिन्न भिन्न हुई प्रकृति द्वारा भेजा गया काल है “ नोवल कोरोना वायरस” जिसके द्वारा वह मनुष्य को संदेश देना चाहती है कि सुधर जाओ नहीं तो अगर मैंने क्रोध दिखाया तो इस संपूर्ण धरती से जीवन खत्म हो जायेगा। हमने विकास की अंधी दौड में बेतहाशा पेड़ काटे ,वर्षों पुराने पेड़ों को काटकर हमने नाकाफी संख्या में पौधे लगाये और उसमें से कुछ संख्या में ही पौधों को बचा पाये । पृथ्वी पर नदी और पहाड़ का जो संतुलन था उसे हमने बिगाड़ कर रख दिया। 

श्री पांडेय ने कहा कि जहां तक हमारे देश की बात है तो हमारे पास दुनिया की कुल आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा है जबकि धरती पर मौजूद जल का मात्र ढाई प्रतिशत हमारे पास है ऐसे में हमारे देश में तो पानी का प्रबंधन बहुत ही आवश्यक है। यही पानी मानव जीवन का आधार है ,जल ही जीवन है । आधुनिकता और विकास की दौड़ से पनपनी हमारी कल्पनाओं को पूरा करने की ताकत प्रकृति के पास नहीं है प्रकृति केवल हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है हमारी कल्पनाओं को नहीं। इस कोरोना काल में प्रकृति ने यह बात साबित भी करके दिखायी कि अगर इंसान उसके अधिकाधिक दोहन के लालच पर रोक लगा ले तो वह खुद ही स्वयं में आये विकारों को ठीक करने की क्षमता आज भी रखती है।

पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने में मनुष्य की सबसे बड़ी भूमिका पर झल्लाते हुए पर्यावरणविद् ने कहा कि प्रकृति इंसान से आज कह रही है कि तुम कहते थे कि गंगा साफ नहीं होगी ,मैं गंगा साफ कर दूंगी। तुम कहते हो सूख चुके पेड हरे भरे नहीं हो सकते हैं मैं तुम्हारे पेड हरे भरे कर दूंगी बस तुम चिमनियों और गाडियों से उगलते धुंए को रोक लो लॉकडाउन के दौरान सभी इंसानी गतिविधियों पर रोक लगने के बाद हवा साफ हो गयी, प्रदूषण से लगातार मर रही नदियों में नवप्राण का संचार हुआ, ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगने से खुद इंसान को विभिन्न तरह की बीमारियों से निजात मिली या उनकी परेशानी काफी हद तक कम हुई। 

बुंदेलखंड की बात करें तो मई के माह में पारा लगातार चढ़ने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती थी लेकिन इस साल कोरोना काल में पृथ्वी के तापमान में काफी गिरावट आयी और बुंदेलखंड में भी गर्मी का प्रकोप वैसा नहीं रहा जैसे पिछले वर्षों में देखा गया। मई और जून में लगभग पूरा बुंदेलखंड हरा भरा है झांसी से बांदा या खजुराहो के रास्ते में पलाश के हरे भरे पेड़ स्वागत करते नजर आते हैं। लॉकडाउन में यहां लोगों को गर्मी का उतना एहसास नही हुआ जितना पहले होता था। दुर्घटनाओ ,अस्पताल में और दूसरे कारणों से जो मौते होती थीं उनका ग्राफ भी लॉकडाउन के कारण नीचे आया है तो सही अर्थों में देखें तो यदि काेविड-19 को प्रकृति का क्रोध भी माना जाए तो इस क्रोध में भी प्रकृति ने मानव प्रेम बनाये रखा है और इंसान की उम्र को बढ़ाने का काम किया है। 


पर्यावरणविद् ने कहा कि इंसान में मन ,कर्म और वचन की शुद्धता नहीं रह गयी है उसे हर जगह पैसा नजर आने लगा है और इसी सोच का खामियाजा पूरे पर्यावरण को , हर जैव अजैव को भुगतना पड़ रहा है। 

“ हर खेत में मेढ़ और हर मेढ़ पर पेड़ ” के नारे से बुंदेलखंड के सूखे इलाके के बड़े क्षेत्र में हरियाली लाने और जलगाम बनाने का अविश्वसनीय काम करने वाले श्री पांडेय ने कहा कि यदि इंसान अपने भौतिक जीवन में उन्नयन की कल्पना को छोड़ दे तो प्रकृति के साथ पूरे सामंजस्य के साथ रहते हुए इस ग्रह पर जीवन लगातार बना रहेगा । लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया भर के देश हर साल “ पयार्वरण दिवस” या ऐसे ही अन्य मौकों को एकत्र होकर आज की बदतर हाल के लिए एक दूसरे को कोसते ही नजर आते हैं । कोई भी पर्यावरण की भयावह स्थिति के लिए खुद को जिम्मेदार मानने का तैयार नहीं है। विकसित देश विकासशील देशों पर प्रदूषण फैलाने का दोष मंढते नजर आते हैं और विकासशील देश तकनीक के अभाव में प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं कर पाने का रोना रोते रहते हैं। हर कोई पूरी ताकत से यह साबित करने के प्रयास में लगा है कि पृथ्वी पर जीवन को लेकर जो गंभीर संकट पैदा हुआ है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। 

दूसरी ओर प्रकृति ने इस लॉकडाउन में दिखा दिया कि उसे खुद को ठीक करने के लिए किसी इंसान की मदद की जरूरत नहीं । इंसान केवल प्रकृति की इतनी मदद कर दे कि भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए जारी अंधी विकास की दौड़ की रफ्तार कुछ समय भर के लिए थाम ले तो वह अपना काम खुद कर लेगी । इस संदेश को इंसान को पूरी गंभीरता से समझने की दरकार है लेकिन अगर हम अब भी नहीं संभले तोे मानवजाति के विनाश की जिम्मेदारी हमारी ही होगी।

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